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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ तुम बटन दबाते हो, बिजली नहीं जलती। बिजली चाहिए भी तो, बहनी भी तो चाहिए, होनी भी तो चाहिए भीतर जुड़े तारों में। वह प्रवाह वहां न हो तो क्या होगा? जब दो आंख धीरे-धीरे, धीरे-धीरे शांत होने लगती हैं...। तुम एक छोटा सा प्रयोग करो। जब भी तुम अकारण बैठे हो, कोई काम नहीं है, मत आंख को खोलो। और तुम पाओगे, तुम्हारे भीतर एक शक्ति का जन्म हो रहा है। तुम जल्दी ही पाओगे कि तुम्हारे भीतर एक नई शक्ति और एक नई क्षमता इकट्ठी हो रही है। तुम चीजों को पैना देखने लगोगे, गहरा देखने लगोगे। कल जो चीज ऊपर से उथली-उथली दिखाई पड़ती थी, अब तुम गहरा देख सकोगे। तुम मुझे सुनोगे उसके बाद, तब तुम पाओगे कि तुम उस मेरे सुनने में कुछ और देखने लगे जो तुमने कभी न देखा था। मेरे शब्द वही थे, मैं वही था, लेकिन तुम्हारी देखने की क्षमता गहरी हो गई। जितनी बड़ी ऊर्जा हो उतनी गहरी जाती है। अभी तुम्हारी देखने की क्षमता सुई की तरह है; अगर तुम इकट्ठा करो तो तलवार की तरह हो जाती है। तब बड़े गहरे तक उसकी चोट होती है। तब तुम देख कर कुछ चीजें देख लोगे जो तुम पहले हजार बार उपाय करते सोच कर तो भी नहीं सोच पाते थे। सोचने का सवाल नहीं है, देखने का सवाल है; दृष्टि पैनी चाहिए। वह पैनी होती है, उसमें निखार आता है, जितना तुम संजोओगे, जितना इकट्ठा करोगे। जब तुम व्यर्थ हो, कुछ नहीं कर.रहे हो, आंख की कोई जरूरत नहीं है, मत खोलो। कार में बैठे हो, ट्रेन में बैठे हो, बस में सवार हो; तुम्हारी आंख की क्या जरूरत है? वह काम ड्राइवर कर रहा है। तुम नाहक ही अपनी आंख को दुखा रहे हो खिड़की में झांक-झांक कर। सड़क पर चलते हुए चेहरे, जिनका कोई प्रयोजन देखने का नहीं है। तुम आंख बंद कर लो। तुम मत देखो। तुम सिर्फ शांत रहो। और एक खयाल करो। एक बहुत पुरानी तिब्बतन विधि है जो बड़े काम की है। जब भी तुम खाली बैठे हो, अगर आंख खोलनी भी पड़े, तो बहुत आहिस्ता खोलो। जैसे कोई पर्दा उठाया जा रहा है, बड़े धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, ऐसी तुम्हारी पलक उठे। फिर जब तुम पलक झपकाओ तो वैसी ही वापस धीरे-धीरे जाए, जैसे कोई पर्दा गिराया जा रहा है। और तुम एक बड़ी गहन शांति अनुभव करोगे। क्योंकि तुम्हारी आंख जितनी जल्दी खुलती है, जितनी जल्दी बंद होती है, उतना ही तनाव तुम्हारे भीतर के मस्तिष्क पर पड़ता है। तुम हमेशा पाओगे, जब भी कोई व्यक्ति शांत होगा तो उसकी आंख की पलकें, तुम पाओगे, बड़ी आहिस्ता से गिरती हैं, आहिस्ता से उठती हैं। अशांत व्यक्ति की आंखें बड़ी तेजी से। बहुत बेचैन आदमी की आंखें अगर तुम नींद में भी देखोगे तो पाओगे कि हिल रही हैं पलकें, तनाव अभी भी बाकी है, कंपन जारी है। इंद्रियां हैं छिद्र, उन्हें भर दो। उन्हें भरने का एक ही उपाय है कि उनकी ऊर्जा को व्यर्थ मत बहाओ; वही ऊर्जा उन्हें भर देगी। 'इसके द्वारों को बंद कर दो।' तुम्हारे मस्तिष्क में उठने वाली वासना हैं द्वार। जैसे ही मन में कोई वासना उठती है वैसे ही सजग हो जाओ, उसको ज्यादा देर साथ मत दो। क्योंकि ज्यादा देर साथ देने का अर्थ है कि उसकी जड़ें फैल जाएंगी। राह से तुम गुजरते हो, देखते हो एक बड़ा भवन। एक वासना मन में उठती है, ऐसा मकान अपना भी हो। इस पर अगर तुम ज्यादा देर सोचते रहे तो यह वासना जड़ें जमा लेगी। और जब वासना की जड़ें जम जाती हैं तो इंद्रियां उसका अनुगमन करती हैं। करना ही पड़ता है। क्योंकि शरीर तुम्हारा अनुगामी है। तो पहले वासना का द्वार खुलता है, फिर इंद्रियों के छिद्र खुल जाते हैं। अगर तुम्हारे मन में मकान की वासना आ गई तो जहां भी तुम्हें मकान दिखाई पड़ेंगे वहीं तुम गौर से देखोगे। अगर तुम्हारे मन में कोई भी चीज की वासना आ गई, जिस चीज की वासना आ गई, उसी पर तुम्हारी सारी इंद्रियां संलग्न हो जाएंगी। अगर तुमने भोजन को मन में जगह दे दी, रूप को मन में जगह दे दी, तो उसी तरफ तुम्हारी सारी इंद्रियां भागने लगेंगी। 190
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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