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________________ सत्य कह कर भी नहीं कहा जा सकता तुम्हारी थकी आंखें उसे न देख पाएंगी। और तुम कहां आंखों को थका रहे हो, कभी तुमने खयाल ही नहीं किया। रास्ते के किनारे दीवारों पर लगे-हमदर्द दवाखाना-उसको पढ़ रहे हो। कितनी बार पढ़ चुके हो? उसी दीवार से बार-बार गुजरते हो; उसी को बार-बार पढ़ते हो। कचरा, कूड़ा-कबाड़; अखबार बैठते हो पढ़ने, कचरा, कूड़ा-कबाड़, उसको तुम रोज पढ़ रहे हो। कुछ भी बोले प्रधानमंत्री, तुम उसको पढ़ रहे हो, बिना इसकी फिक्र किए कि कभी प्रधानमंत्री में कोई बुद्धिमान आदमी हुआ है। कभी एकाध प्रधानमंत्री ने भी कोई ऐसी बात कही जिसमें कोई सार हो। लेकिन उसको ऐसे आत्मसात कर रहे हो जैसे वेद-वचन है। सुबह से लोग एकदम अखबार की तलाश में लग जाते हैं। अगर थोड़ी देर हो जाए तो बड़ी खलबली मच जाती है। क्या पढ़ रहे हो? और पढ़ना साधारण बात नहीं है, क्योंकि उतनी क्षमता व्यय हो रही है। आंख उतनी थक रही है। क्या देख रहे हो? कुछ भी देख रहे हो। रास्ते पर कुछ भी हो रहा है-मदारी खड़ा डमरू बजा रहा है, बंदर नचा रहा है वहीं खड़े हो। ये आंखें परमात्मा को कैसे देख पाएंगी जो बंदर का नाच देख रही हैं। यह बुद्धि अभी बड़े नीचे तल पर है। इस बुद्धि को अभी कुतूहल के ऊपर उठने का मौका नहीं मिला। तो मदारी भी जानता है कि सिर्फ डमरू बजा दो, एक बंदर को नचा दो, बंदर इकट्ठे हो जाएंगे। आदमी किसलिए इकट्ठा होगा? बंदर नाच रहा हो, इसमें क्या देखने जैसा है? सारी दुनिया बंदरों से भरी है। सभी बंदर नाच रहे हैं। सभी जगह मदारी हैं, तरह-तरह के डमरू बजा रहे हैं। वहां भीड़ लगी है। हजार काम छोड़ कर लोग खड़े हो जाते हैं। कहीं दंगा-फसाद हो रहा है, दो आदमी एक-दूसरे को गाली दे रहे हैं। तुम बड़ी उत्सुकता से खड़े हो। दवा लेने जा रहे थे पत्नी के लिए, वह काम गौण हो गया। बच्चे के लिए दूध खरीदने जा रहे थे, वह अभी थोड़ी देर ठहर सकता है। लेकिन यह घटना देखने जैसी है। और कभी अगर ऐसा हो जाता है कि दो आदमी लड़ने के बिलकुल करीब आ गए और फिर अलग हो गए, तुम बड़े उदास लौटते हो कि कुछ भी न हुआ। बेकार ही खड़े रहे। खून बह जाए, सिर खुल जाएं, थोड़ा रस आता है। तुम्हारे भीतर की हिंसा थोड़ी तृप्त होती है। तुम जो करना चाहते थे, दूसरे ने कर दिया तुम्हारे एवज। थोड़ा सुख मिलता है। तुम थोड़े हलके होकर घर जरा तेज कदम से कोई फिल्मी गीत गुनगुनाते हुए लौटते हो। जिंदगी में रस आ जाता है। तुम्हारा रस क्या है, क्या तुम देखते हो, क्या तुम सुनते हो, उस सब में तुम्हारी जीवन-ऊर्जा बह रही है। यहां कुछ भी मुफ्त नहीं है। हर चीज के लिए चुकाना पड़ रहा है। कचरा भी खरीदोगे, उसके लिए भी चुकाना पड़ रहा है। क्योंकि जीवन-ऊर्जा जा रही है, समय जा रहा है। प्रतिपल हाथ से जीवन का जल गिरा जा रहा है। थोड़ी ही देर में मुट्ठी खाली हो जाएगी। फिर तुम पछताओगे। लेकिन फिर पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत! जब जीवन जा चुका, फिर पछताने से क्या होगा? जब तक जीवन हाथ में है, कुछ बचा लो। अगर तुम आंख से देखने का उतना ही उपयोग लो जितना जरूरी है, तो तुम पाओगे तुम्हारे भीतर तीसरी आंख का जन्म शुरू हो गया। लोग मुझसे पूछते हैं कि तीसरी आंख कैसे खुले? मैं उनसे कहता हूं, पहले दो आंखें थोड़ी बंद करो। तीसरी आंख को खोलने की और क्या जल्दी है? कुछ और उपद्रव देखना है? दो से तृप्ति नहीं हो रही? तुम दो को थोड़ा कम करो, तीसरी अपने आप खुलती है। क्योंकि जब तुम्हारे भीतर देखने की क्षमता प्रगाढ़ हो जाती है, उस प्रगाढ़ता की चोट से ही तीसरी आंख खुलती है। और कोई उपाय नहीं है। इन दो को तुम व्यय कर दो; तीसरी कभी न खुलेगी। जीवन में एक व्यवस्था है; भीतर एक बड़ी सूक्ष्म यंत्र की व्यवस्था है। जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाए उसकी ऊर्जा ऊपर की तरफ अपने आप बहनी शुरू हो जाती है। क्योंकि इकट्ठी होती है ऊर्जा, कहां जाएगी? नीचे जाना बंद हो गया। अपने आप ऊर्जा ऊपर चढ़ने लगती है। अपने आप उसके भीतर के नए चक्र खुलने शुरू हो जाते हैं और नए अनुभव के द्वार। तुम चक्रों को खोलना चाहते हो, वह ऊर्जा पास नहीं है। 189
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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