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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ लेकिन वह खाली मरेगा। वह खाली मरेगा, क्योंकि उसे खाली होना न आया। उसने सारी जिंदगी भरने की कोशिश की, और खाली मरेगा। क्योंकि जो भी उसने इकट्ठा किया, वह शरीर में रह गया; वह आत्मा तक तो पहुंचता नहीं। वह खोपड़ी में रह गया; खोपड़ी तो यहीं पड़ी रह जाएगी। तुम्हारा मस्तिष्क यहीं पड़ा रह जाएगा। अभी तुम पढ़ते हो कि खून का बैंक है अस्पतालों में जहां तुम अपना खून दान कर देते हो। आंख का बैंक है जहां तुम अपनी आंख दान कर देते हो। अब हृदय के भी बैंक हैं जहां तुम अपना हृदय दान कर देते हो। अब आगे का कदम वे सोच रहे हैं : मस्तिष्क के बैंक। जहां मरते वक्त तुम अपना मस्तिष्क भी दान कर दोगे। क्योंकि वह भी साथ तो जाता नहीं। चिता पर जल जाता है; व्यर्थ खराब हो जाता है। सत्तर साल मेहनत की, और फिर आग में जल गया। जैसे अभी तुम खबरें पढ़ते हो कि हृदय के ट्रांसप्लांटेशन हो गए हैं, कि हृदय को, एक आदमी के हृदय को दूसरे आदमी के हृदय में लगा दिया गया है, अब वे जल्दी इस बात की कोशिश में हैं कि एक आदमी का मस्तिष्क भी दूसरे आदमी में लगा दिया जाए। क्योंकि क्यों खराब करना? सत्तर-अस्सी साल की मेहनत पानी में चली जाती है। कितनी मुसीबत! रात-रात जागे, परीक्षाएं पास की, बड़ी मुश्किल से ज्ञान इकट्ठा किया; फिर सब-चले खाली हाथ। तुम्हारी खोपड़ी यहीं रह जाती है। तुम तो वैसे ही जाते हो जैसे आए थे। कुछ पाया नहीं, कुछ कमाया नहीं; शायद कुछ गंवाया भला हो। चले! खोपड़ी में तुम्हारी स्मृति रह जाती है। जो भी तुमने जाना, वह तुम्हारे मस्तिष्क के कंप्यूटर में पड़ा रह जाता है। उसका कोई दूसरा उपयोग कभी न कभी करने लगेगा। और तब एक बड़ी अदभुत घटना घटेगी। आइंस्टीन मर जाए तो उसकी खोपड़ी को हम एक छोटे बच्चे पर ट्रांसप्लांट कर देंगे; उसके मस्तिष्क को निकाल लेंगे और एक छोटे बच्चे के मस्तिष्क में डाल देंगे। यह बच्चा बिना . पढ़े-लिखे आइंस्टीन जैसा पढ़ा-लिखा होगा। इसको स्कूल भेजने की जरूरत न होगी। इसने जो गणित कभी नहीं सीखा, वह बोलेगा और करेगा। जो भाषा इसने कभी नहीं जानी, वह यह बोलेगा और निष्णात होगा। इसको किसी विश्वविद्यालय में पढ़ने की कोई जरूरत न होगी। यह जन्म से ही नोबल प्राइज विनर होगा। यही हम कर रहे हैं छोटे पैमाने पर। जो अतीत में जाना गया है वही तो हम स्कूलों, विद्यालयों में बच्चों को । सिखा रहे हैं। मस्तिष्क को ही ट्रांसप्लांट कर रहे हैं पुराने ढंग से। एक-एक इंच-इंच कर रहे हैं। पूरा का पूरा इकट्ठा नहीं कर पाते, बीस-पच्चीस साल मेहनत करके बच्चे को हम वैज्ञानिक बना पाते हैं। यह पुराना ढंग है। नए ढंग में यह ज्यादा देर टिकेगा नहीं। लेकिन क्या तुम्हारे ऊपर अगर सारी दुनिया का मस्तिष्क भी लगा दिया जाए तो तुम ज्ञानी हो जाओगे? मस्तिष्क बाहर से लगाया जा रहा है। जो बाहर से लगाया जा रहा है वह बाहर का है। जो बाहर का है वह कभी तुम्हारे भीतर नहीं पहुंचता। तुम्हारा भीतर का आकाश अछूता रह जाता है। तो लाओत्से कहता है, एक तो विद्यार्थी है ज्ञान का, शब्दों का, सूचनाओं का; वह दिन ब दिन संग्रह करता है, आयोजन करता है सीखने का। ताओ का विद्यार्थी दिन ब दिन खोने का आयोजन करता है। और एक विद्यार्थी है परम ज्ञान का। एक विद्यार्थी है आत्मा का, परमात्मा का, सत्य का। वह रोज-रोज छोड़ने की कोशिश करता है। वह अपने भीतर खोजता रहता है, और कुछ मिल जाए, उसको भी छोड़ दूं। वह अपने भीतर से खाली करने में लगा रहता है। वह मस्तिष्क को उलीचता है। क्योंकि जितनी तुम्हारे भीतर बदलियां कम हो जाएं, उतना ही नीला आकाश दिखाई पड़ने लगता है। जैसे-जैसे विचार का जाल कम होता है, विचार के पीछे छिपा हुआ अंतराल दिखाई पड़ने लगता है। वहां परम शून्य विराजमान है। तुम बदलियों में खोए हो, और बदलियों की कीमत पर आकाश को गंवा बैठे हो। और आकाश से कम में काम न चलेगा; क्योंकि उससे कम में तुम सदा ही बंधे-बंधे अनुभव करोगे। आकाश ही तुम्हारा सहज घर है। उतनी 10
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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