SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ को भी कहने की कोशिश करता है जो कही नहीं जा सकती। लेकिन इसकी करुणा के कारण रुक भी नहीं सकता, बिना कहे रह भी नहीं सकता। _ 'जो जानता है वह बोलता नहीं; जो बोलता है वह जानता नहीं।' इसका एक और अर्थ है, वह भी खयाल में ले लेना। इसकी एक और भाव-भंगिमा है। जो जाना जाता है, जो सत्य, जो अनुभव, जो प्रतीति, वह नहीं कही जा सकती; लेकिन कैसे जानी जाती है वह प्रतीति, वह कहा जा सकता है। इसलिए ज्ञानी विधियों की बात करते हैं। मंजिल की बात नहीं करते, मार्ग की बात करते हैं। साध्य की बात नहीं करते, साधन की बात करते हैं। और पंडित हमेशा मंजिल की बात करते हैं। तुम उससे फर्क समझ लोगे। पंडित हमेशा ब्रह्म की चर्चा करेगा; ज्ञानी ध्यान की। पंडित तर्क जुटाएगा और सिद्ध करेगा कि ईश्वर है, क्यों ईश्वर को मानो। ज्ञानी न कोई तर्क जुटाएगा, न ईश्वर की बहुत चर्चा करेगा। प्रासंगिक बात और, अन्यथा सीधा ईश्वर से कुछ लेना-देना नहीं है। ज्ञानी चर्चा करेगा उस विधि की कि कैसे ईश्वर जाना जाता है, किस मार्ग से मिलती है झलक, किस द्वार से होती है प्रतीति, कैसे तुम उठाओ पैर कि पहुंच जाओ वहां। पंडित तर्क देता है, प्रमाण देता है। ज्ञानी विधि देता है; न तर्क देता, न प्रमाण देता। और विधि से अनुभव होगा। बुद्ध ने कहा है, मैं तो वैद्य की भांति हूं, मैं तुम्हें औषधि देता हूं कि तुम्हारी बीमारी हट जाए। स्वास्थ्य की व्याख्या कैसे करूं? औषधि देता हूं, बीमारी मिटा दूंगा। स्वास्थ्य तुम जान लेना। तुम आज पूछो कि स्वास्थ्य कैसा होगा? मैं तुम्हें कैसे समझाऊं! स्वास्थ्य की कोई भी तो परिभाषा नहीं है। सब परिभाषाएं बीमारियों की हैं। दुख की परिभाषा हो सकती है, आनंद की कोई परिभाषा नहीं। क्योंकि दुख की सीमा है, आनंद की कोई सीमा नहीं। दुख छोटा है, क्षुद्र है; परिभाषा से बंध जाता है। आनंद विराट है, विस्तीर्ण है; सब परिभाषाएं छोटी पड़ जाती हैं, आनंद बहता चला जाता है, आगे निकल जाता है। परिभाषा का अर्थ है: जिसको बांधा जा सके शब्द के धागे से। तो बुद्ध कहते हैं, मैं स्वास्थ्य की बात ही न करूंगा, और तुम मुझसे स्वास्थ्य की बात पूछना ही मत। मैं तो एक वैद्य हूं, निदान कर दूंगा बीमारी का, औषधि का इंतजाम कर दूंगा। तुम औषधि लेने की तैयारी दिखाना, बस इतना काफी है। बीमारी जब मिट जाएगी तो जो शेष रहेगा वही स्वास्थ्य है। जब तुम मिट जाओगे तो जो शेष रहेगा वही परमात्मा है। प्रमाण कहां हो सकता है? और तुम जो मांग रहे हो प्रमाण, तुम्हीं बाधा हो, तुम्ही उपद्रव हो, जिसके कारण परमात्मा की प्रतीति नहीं हो रही। तुम खोज रहे हो परमात्मा को, और तुम्ही अवरोध हो। और तुम पूछते हो कि तर्क, सिद्ध करो, प्रमाण दो, तब मैं आगे बढ़ेगा। तुम्हारे आगे बढ़ने की जरूरत ही नहीं है। सब तर्क, सब प्रमाण तुम्हारे अहंकार को ही परिपोषित करेंगे। और अहंकार को खोए बिना कौन कब उसे जानता है? ज्ञानी नहीं देता तर्क, नहीं देता प्रमाण, ज्ञानी तो संक्रामक है। ज्ञानी को तो स्वास्थ्य लग गया, जैसे तुम्हें बीमारी लग गई। ज्ञानी संक्रामक है, स्वास्थ्य देता है। लेकिन स्वास्थ्य को देने का और तो कोई उपाय नहीं। बीमारी काटो, बीमारी हटाओ, मिटाओ; स्वास्थ्य बच रहता है। जो सदा बच रहता है सब हट जाने पर, वही परमात्मा है। जब तुम नहीं हो, विचार नहीं है, मन नहीं है, भाव नहीं है, शून्य निर्मित हो गया, भीतर कोई भी नहीं है, एक गहन सन्नाटा है, तब जो बच रहा, जो सदा शेष है, वही परमात्मा है। जो सदा शेष है वही सत्य है। क्योंकि फिर उसको मिटाया नहीं जा सकता। जो-जो मिटाया जा सकता है, जो-जो काटा जा सकता है, काट दो; जो-जो हटाया जा सकता है, हटा दो। और जब तुम ऐसी घड़ी में आ जाओ कि तुम पाओ, अब हटाने को कुछ बचा ही नहीं, घर बिलकुल खाली है; अब कोई फर्नीचर नहीं है जिसको हटाएं, 186
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy