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सत्य कह कर भी नहीं कहा जा सकता
पनहा हा
जब तुम उसे पाओगे तब तुम जानोगे कि ज्ञानियों ने जो भी कहा, इससे इसका कोई भी संबंध नहीं है। लेकिन जब तुम जानोगे तब! तब तुम पाओगे कि ज्ञानी तुतला रहे थे और जो कहना चाह रहे थे वह कह नहीं पा रहे थे। सभी ज्ञानी तुतला रहे हैं। और एक अर्थ में यह सही भी है। क्योंकि ज्ञानी का अर्थ ही है। जिसका नया जन्म हुआ। जैसे छोटे बच्चे तुतलाते हैं; कुछ कहना चाहते हैं, कुछ निकलता है। और तुम कुछ समझ ही नहीं पाते कि वे क्या कह रहे हैं। वे काफी कहें भी तो भी कुछ पकड़ में नहीं आता।
तुम फिर क्या करते हो? एक मां क्या करती है छोटे बच्चे के साथ? जब वह कुछ-कुछ कहता है तो वह इसकी फिक्र नहीं करती कि वह क्या कह रहा है, वह यह समझने की कोशिश करती है कि उसका इशारा क्या है-भूख लगी है? प्यास लगी है? वह उसका इशारा समझने की कोशिश करती है। वह पानी नहीं कहता, वह कहता है पम्मा। वह पानी कह नहीं सकता अभी। वह प्यास लगी है, यह कहना बहुत मुश्किल है। लेकिन मां उसकी समझ लेती है कि वह क्या कह रहा है। वह जो कह रहा है उससे नहीं समझती, वह जो उस दशा में प्रकट कर रहा है उससे समझती है। धीरे-धीरे शब्दों की जरूरत नहीं रह जाती। धीरे-धीरे मां उसका इशारा समझने लगती है।
ज्ञानी भी फिर से हो गए बच्चे हैं। वे किसी और ही प्यास और किसी और ही पानी और किसी और ही परमात्मा की बात कर रहे हैं। उन्होंने फिर तुतलाना शुरू कर दिया है। और पहले बचपन का तुतलाना था, वह तो किसी दिन ठीक भी हो जाता है। क्योंकि वह बचपन आता है और चला जाता है। यह बचपन न जाने वाला बचपन है। यह अब सदा रहेगा। इससे ऊपर उठने का कोई उपाय नहीं है। ज्ञानी तुतलाते ही रहेंगे। वे जो भी कहेंगे वह हमेशा इशारा ही होगा; इससे ज्यादा नहीं हो सकता। क्योंकि ज्ञानी ने अब उस निर्दोष बालपन को पा लिया जो सदा रहेगा, जो शाश्वत है। इस तुतलाहट के ऊपर उठने का कोई उपाय नहीं है।
तो तुम ज्ञानी का इशारा समझना। ज्ञानी क्या कहता है, यह कम फिक्र करना; ज्ञानी क्या है, इसकी तुम ज्यादा फिक्र करना। इसीलिए तो श्रद्धा का इतना मूल्य है। क्योंकि अगर तुम श्रद्धा से न सुन पाओगे तो तुम कहोगे, यह सब बकवास है। क्योंकि तुम्हारी कुछ समझ में नहीं आएगा। जो समझ में न आए वह बकवास है। छोटे बच्चे की मां तो समझ लेती है, लेकिन इस छोटे बच्चे को दूसरा आदमी अगर बिठा दो तो वह परेशान हो जाएगा। वह कहेगा, हटाओ इस उपद्रव को! यह क्या बक रहा है, कुछ पता भी नहीं चलता। क्योंकि मां का तो प्रेम है इसलिए वह समझने की कोशिश करती है। इसका कोई प्रेम तो है नहीं। वह यह कहेगा कि जो कहना है ठीक से बोल, नहीं बोल सकता है, चुप बैठ।
. तो जब तक गुरु से कोई प्रेम का संबंध न जुड़ जाए, जब तक कोई ऐसा हृदय का नाता न हो जाए कि वह जो भी कह रहा है उसे समझने की एक आतुरता हो, एक तैयारी हो, एक त्वरा, तीव्रता हो, तो ही तुम समझ पाओगे। अन्यथा वह बकवास मालूम पड़ेगी। अनेक समझदारों ने बुद्धों को बकवासी समझ कर छोड़ दिया है। क्योंकि लगता है कि बातचीत ही करते हैं। क्या कहना चाहते हैं, कुछ साफ नहीं है। खुद को भी साफ नहीं मालूम पड़ता, क्योंकि
कहते हैं, ज्ञानी बोलता नहीं है। - इसको मैं तुतलाहट कहता हूं। यह उस शाश्वत बालपन का हिस्सा है, उस निर्दोषता का, जो ज्ञानी को उपलब्ध होती है। उसका पुनर्जन्म हुआ है। श्रद्धा से तुम सुनोगे-श्रद्धा से सुनने का अर्थ है हृदय से सुनना। शब्दों पर बहुत जोर नहीं देना, उनका बहुत मूल्य नहीं है। तर्क और विचार से नहीं, वरन एक लगाव से, एक लगाव से कि शायद कुछ हो। खोज की तैयारी से, आतुरता से। जब तुम ज्ञानी के साथ श्रद्धा से जुड़ोगे तभी तुम थोड़ा-बहुत समझ पाओगे। और तब तुम यह भी समझ लोगे कि इस आदमी की कठिनाई क्या है। यह ऐसी कुछ बात कहना चाहता है जो कही नहीं जा सकती। तब तुम यह भी समझ पाओगे कि इस आदमी की करुणा कैसी है कि उस बात
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