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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ तुम्हें दो ही रास्ते दिखाई पड़ते हैं : या तो क्रोध करो या क्रोध दबाओ। अगर कोई कहता है, मत दबाओ! तुम फौरन समझते हो, करो। क्योंकि तुम्हें तीसरे विकल्प का पता नहीं है। वही तीसरा विकल्प नव-जीवन का सूत्र है: तुम साक्षी बनो। न तो तुम करो और न तुम दबाओ। क्योंकि दोनों में तुम कर्ता हो जाते हो। और कर्ता ही तुम्हारा रोग है। अहंकार ही तुम्हारा रोग है। ऐसा हुआ कि सिकंदर भारत की तरफ यात्रा पर आ रहा था। तो उसे खबर मिली एक मरुस्थल को पार करते समय कि एक मरूद्यान, शिवा नाम के मरूद्यान में एक छोटा सा मंदिर है और उस मंदिर का पुजारी बड़ा अनूठा पुरुष है। सिकंदर अपने से अनूठा तो किसी को मानता नहीं था। जब बार-बार लोगों ने खबर दी कि सच ही अनूठा पुरुष है, इसके दर्शन कर ही लेने चाहिए, तो वह दर्शन करने गया। संत को यूनानी भाषा नहीं आती थी। सिकंदर के आदमियों ने पहुंच कर उसे थोड़ी यूनानी भाषा पहले सिखाई कि सिकंदर आ रहा है तो आप कम से कम कुछ शब्द तो उससे बोल दें। संत ने बहुत कहा कि बोलने से हमेशा भूल होती है, मैं चुप रहना ही पसंद करता हूं। क्योंकि चुप रहने में, कम से कम जो मैं हूं वही तुम देखोगे। शब्द बोलने में खतरा है, तुम अपनी व्याख्या करोगे। लेकिन उन लोगों ने नहीं माना। उन्होंने कहा, सिकंदर आता है, वह अगर कुछ पूछ बैठा, और कम से कम स्वागत में तो दो शब्द कहने ही पड़ेंगे। संत राजी हो गया। संत सदा ही राजी है। उसने कहा, ठीक। तो उन्होंने कुछ शब्द सिखा दिए। सिकंदर आया। तो संत को आदत थी कहने की किसी को भी, जब वह बोलना था तो कहता था, मेरे बेटे! वत्स! तो ग्रीक में शब्द है मेरे बेटे के लिए पायदीयान। तो जब सिकंदर आया, अपनी अकड़...सिकंदर अपनी अकड़ कहां छोड़ कर आएगा? अकड़ के अलावा उसमें कुछ है भी नहीं। अकड़ ही तो उसकी सब संपदा है। वह आया अपने दरबारियों के साथ, नंगी तलवारों के साथ, अपना मुकुट लगाए हुए। फकीर ने कहा, पायदीयान! कि मेरे बेटे! सिकंदर बड़ा प्रसन्न हो गया और उसने कहा, अब कुछ और कहने की जरूरत नहीं। जो मैं सुनने आया था सुन लिया। क्योंकि सिकंदर ने समझा, वह कह रहा है: पायदीयाज।। पायदीयाज का मतलब होता है सन ऑफ गॉड, ईश्वर के बेटे। उसने कहा था, मेरे बेटे, पायदीयान। और सिकंदर ने समझा कि वह कह रहा है, ईश्वर के बेटे, ईश्वर के पुत्र, पायदीयाज। ___ जरा ही सा फर्क है पायदीयान और पायदीयाज में। और सिकंदर को फिर लोगों ने बहुत कहा कि नहीं, उसने पायदीयान कहा था। उसने कहा, अपनी जबान बंद! नहीं तो जबान खिंचवा दूंगा। पायदीयाज कहा था, लिखो! और उसके इतिहासकारों ने लिखा है कि ठीक, पायदीयाज कहा था। तुम वही सुन लेते हो जो तुम सुनना चाहते हो। तुम वही समझ लेते हो जो तुम समझना चाहते हो। अहंकार सुधार के लिए तो राजी होता है, क्रांति के लिए राजी नहीं होता। क्योंकि सुधार से अहंकार को और आभूषण मिलेंगे; अहंकार और अहंकारी हो जाएगा। चरित्र भी तो आभूषण बन जाता है। तुम सत्य बोलते हो, ईमानदार हो, साधु हो, चोरी नहीं करते, बेईमानी नहीं करते, तुम कोई भ्रष्टाचारी नहीं हो, तो अहंकार की अपनी अकड़ हो जाती है। साधुओं का अहंकार हो जाता है। जयप्रकाश को किसी ने पटना में पूछा कि अगर इंदिरा गांधी मिलना चाहें तो आप तैयार हैं? तो उन्होंने कहा, हां, मैं तैयार हूं। और अगर इंदिरा गांधी मिलना चाहें तो मैं दिल्ली आने को तैयार हूं, क्योंकि मैं उतना बड़ा आदमी नहीं हूं कि इंदिरा गांधी को पटना आना पड़े। लेकिन यह बात ही खयाल में आनी कि मैं उतना बड़ा आदमी नहीं हूं! और जिस ढंग से कही गई बात! कोई पूछ ही नहीं रहा था कि तुम कितने बड़े आदमी हो या नहीं हो। यह बात ही कहां थी? लेकिन मैं उतना बड़ा आदमी 172
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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