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________________ शिशुवत चरित्र ताओ का लक्ष्य हूँ लाओले कहता है, जीवन में संशोधन करना अशुभ है। 'टु इम्प्रूव अपान लाइफ इज़ काल्ड एन इल ओमेन।' वह यह नहीं कहता कि तुम अपने चरित्र को सम्हालो, संशोधन करो, शुद्ध करो, चरित्रवान बनो, नैतिक बनो। वह कहता है, यह सब तो अशुभ लक्षण है, क्योंकि यह सब ऊपर-ऊपर होगा। तुम फिर से जन्मो। इम्प्रूवमेंट नहीं, रिबर्थ; सुधार नहीं, नया जन्म। सुधार से कुछ भी न होगा। वह तो घर को सजाना है; उससे आत्मा में कोई क्रांति न होगी। तुम कितने ही अच्छे हो जाओ, सज्जन से सज्जन हो जाओ, तो भी तुम संत न हो सकोगे। दुर्जन न रहोगे, सज्जन हो जाओगे। दुर्जन भी मरते हैं, सज्जन भी मरते हैं। क्योंकि दोनों की संपदा बाहर है। दुर्जन फिर पैदा होते हैं; सज्जन फिर पैदा होते हैं। क्योंकि दोनों की संपदा बाहर है। सिर्फ भीतर की संपदा का आदमी फिर पैदा नहीं होता। तो तुम सुधार में मत लगना। क्रांति से कम में काम न चलेगा। आमूल रूपांतरण चाहिए। टोटल, समग्र ट्रांसफार्मेशन। रत्ती भर कम से काम नहीं चलेगा। तुम ऊपर से रंग-रोगन मत लगाना। क्रोध को दबा कर तुम करुणा मत दिखाना। लोभ को थोड़ा काट कर दान मत कर देना। इससे कुछ भी न होगा। तुम्हारा नया जन्म चाहिए। तुम पूरे के पूरे ही गलत हो। तुम ऐसे मकान नहीं हो कि जिसमें थोड़ा सा यहां पलस्तर बदल दिया और वहां थोड़ा डंडा खड़ा कर दिया और खंभा बदल दिया और सब ठीक हो गया। रिनोवेशन से काम न चलेगा। तुम बिलकुल जीर्ण-जर्जर भवन हो। तुम खंडहर हो। कितना ही तुम्हें ऊपर-ऊपर से सुधारें, तुम सुधरोगे न। और जब तक एक कोने को ठीक कर पाओगे, पाओगे दूसरा कोना बिगड़ गया। दूसरे कोने को ठीक करने जाओगे, पहला तब तक जराजीर्ण हो चुका होगा। नहीं, इस पूरे भवन को गिरा देना है। पुनर्जन्म चाहिए। इस भवन को बिलकुल ही गिरा देना है; नये आधार रखने हैं। तुम जैसे हो, इसको सुधारने की चिंता मत करो। वही तो सज्जन लोग सारी दुनिया में कर रहे हैं। तुम पूरे नए भवन को बनाने का विचार करो। उसी का नाम संन्यास है। संन्यास का अर्थ है कि मैं आमूल बदलने को तत्पर हुआ हूं। संन्यास क्रांति है, सुधार नहीं। संन्यास कपड़े बदल लेना नहीं है। संन्यास नाम बदल लेना नहीं है। संन्यास आमूल क्रांति है; सब बदल देना है। रत्ती भर इसमें से बचाने योग्य नहीं है। यह सब जहरीला है जो तुम्हारे पास है। यह सब विषाक्त हो गया है। तुम्हारा क्रोध ही बुरा नहीं है, तुम्हारे प्रेम तक में तुम्हारा क्रोध घुस गया है। वह भी विषाक्त हो गया है। तुम्हारी घृणा तो बुरी है ही, तुम्हारे प्रेम में भी तुम्हारी घृणा की छाया पड़ गई है। वह भी नष्ट हो गया है। तो तुम अगर सोचो कि घृणा को काट दें, प्रेम को बचा लें, तो तुम गलती में हो। उस प्रेम में तुम्हारी घृणा बच जाएगी। उस पर छाया पड़ गई है। वह प्रेम तुम्हारी घृणा को काफी सोख गया है। बहुत दिन से साथ-साथ रहे हैं; वे दोनों ही विकृत हो गए हैं। तुम्हारा बुरा तो बुरा है ही, तुम्हारा जिसको तुम भला कहते हो वह भी बुरा हो गया है। इसलिए आमूल! लाओत्से कहता है, 'जीवन में संशोधन करना अशुभ लक्षण है।' इस भूल में तुम पड़ना ही मत। क्योंकि इसमें जीवन गंवाओगे, कुछ होगा नहीं। अशुभ लक्षण है। 'और मनोवेगों को राह देना आक्रामक है।' लेकिन इसका तुम यह मतलब भी मत समझ लेना कि जो भी बुरा है उसको राह देनी है। लाओत्से कहता है, क्रोध को काटने से कुछ भी न होगा। क्रोध को काट-काट कर करुणा न आएगी। लेकिन लाओत्से तत्क्षण यह भी कहता है कि इसका यह मतलब नहीं है कि तुम क्रोध करने में लग जाना। क्योंकि कर-करके भी कोई करुणा न आएगी। 171
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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