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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ यह दर्शन जैसी घटना हिंदुस्तान के बाहर कहीं भी नहीं घटी है। क्योंकि इस राज को वे पहचान ही न पाए कि संत एक अहर्निश वर्षा है, एक तृप्ति है, एक परितोष है; जहां कोई कमी नहीं है, जहां सब भरा-भरा है। और जिसका भराव इतना है कि ऊपर से बह रहा है। एक बाढ़ आई है। तुम कहां पूछने जा रहे हो? तुम सिर्फ बैठ जाओ और बाढ़ में थोड़े नहा लो, थोड़ी सुगंध से भर जाओ। संत बंट रहा है-तुम थोड़ा बांट लो, और अपने साथ ले जाओ। यह जो घटना घटती है, तभी घटती है, जब भीतर के स्त्री-पुरुष का मिलन हो जाता है। तब फिर से बच्चा पैदा हो गया; एक नया जन्म हुआ। यह द्विज की अवस्था है, जिसको जीसस ने रिबर्थ कहा है। निकोडेमस से जीसस ने कहा कि जब तक तू फिर से पैदा न हो जाए तब तक तू मेरे परमात्मा के राज्य में प्रविष्ट न हो सकेगा। निकोडेमस ने कहा, तो फिर से पैदा होने का तो मतलब हुआ कि मरना पड़े, फिर जन्म लेना पड़े। जीसस ने कहा कि नहीं, जीते जी मरने की विधि है। तब जन्म होता है, तब फिर से बच्चा आया संसार में। इसके बाल सफेद होंगे, इसके चेहरे पर झुर्रियां होंगी। लेकिन नहीं, इस जगत ने इससे बड़ा सौंदर्य नहीं देखा है। जब कोई बूढ़ा फिर से बच्चा हो जाता है तब अप्रतिम सौंदर्य का जन्म होता है। क्योंकि यह सौंदर्य अब भीतर का है। चरित्र भीतर का था, अब यह सौंदर्य भी भीतर का है। अब कुछ भी बाहर का नहीं है। अब यह लेता नहीं, अब यह सिर्फ देता है। अब यह सिर्फ बांटता है। यह अनंत के स्रोत से जुड़ गया। जितना बांटता है उतना बढ़ता है। संत एक सतत प्रसाद है। वह बांट रहा है, बंट रहा है। जो भी ले सकते हैं वे ले लें। जो भी देख सकते हैं वे देख लें। जो भी सुन सकते हैं वे सुन लें। _ 'लयबद्धता को जानना शाश्वत के साथ तथाता में होना है।' और जैसे ही भीतर लय हो जाती है बाहर सब विसंगीत खो जाता है। जो अपने से जुड़ गया वह परमात्मा से जुड़ गया। इसलिए तो याद आती है बचपन की बार-बार; बार-बार पछताते हो कि कहीं बचपन थोड़ी देर और टिक जाता। बार-बार सपना देखते हो कि कैसे प्यारे दिन थे बचपन के! एक-एक क्षण कैसी गरिमा से भरा था! न कोई चिंता थी, न कोई संताप था, न कोई दायित्व था, न कोई विचार पीड़ित करते थे। हर घड़ी कितनी आनंदपूर्ण थी! . बचपन की तरफ बार-बार लौट कर तुम देखते हो। उस लौट कर देखने में कुछ सार नहीं। एक और बचपन आगे प्रतीक्षा कर रहा है, जो पहले बचपन से बहुत बड़ा है। जिस दिन तुम उस बचपन को जान लोगे उस दिन पहला बचपन एकदम फीका पड़ जाएगा। वह जैसे केवल दूसरे आने वाले परम बचपन का संकेत मात्र था, सिर्फ सूचना मात्र थी, सिर्फ एक झलक थी। तुम जब तक अपने पीछे लौट कर देख रहे हो तब तक तुम्हें पता नहीं कि आगे एक और बचपन आ सकता है। तुम्हारे हाथ में है वह घड़ी। अगर तुम उस बचपन को पा लिए तो फिर तुम्हारा कोई जन्म-मरण न होगा। अगर तुमने उसे न पाया, फिर आएगा बचपन जो तुम मांग रहे हो, लेकिन वह फिर बाहर से आएगा। जब तक तुम भीतर से न ला सकोगे बचपन को तब तक तुम्हें बाहर से बचपन आता रहेगा। और जब तक तुम भीतर से न ला सकोगे मृत्यु को तब तक बाहर की मृत्यु तुम्हें झेलनी पड़ेगी। तब तक तुम पैदा होओगे, मरोगे; आवागमन जारी रहेगा। जिस दिन तुम भीतर से ले आओगे बचपन को, फिर बाहर के बचपन की कोई जरूरत न रही। तुम खुद ही गर्भ बन गए और तुमने स्वयं को ही स्वयं से जन्म दे दिया। तुम स्वयंभू हो गए। तुम न केवल अपने बच्चे हो, अपने मां-बाप भी हो गए। अब तुम पूरे हो गए। अब कुछ कमी न रही। अब तुम्हें मरने की कोई जरूरत नहीं। अब तुमने अमृत को पा लिया। 'शाश्वतता को जानना विवेक कहलाता है। लेकिन जीवन में संशोधन करना अशुभ लक्षण है; और मनोवेगों को मन की राह देना आक्रामक है।' 170
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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