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ताओ उपनिषद भाग ५
चाल चलो-कि समझाओ इस आदमी को कि तुम ठीक नहीं हो, गलत हो। सालों इससे विवाद करो, झंझट खड़ी करो। और फिर भी पक्का भरोसा नहीं, किसी दिन बदल जाए। तो वे कहते हैं, इस झंझट में हम नहीं पड़ते। वे तो मस्तिष्क को साफ कर देते हैं, ब्रेन-वाश कर देते हैं। खोपड़ी में बिजली लगा कर तेजी से दौड़ा देते हैं, बिजली के तेजी से दौड़ने से सब अस्तव्यस्त हो जाता है। इलेक्ट्रिक शॉक हम पागल आदमी को देते हैं; वे उनको देते हैं जो उनके विपरीत हैं।
पागल आदमी को इलेक्ट्रिक शॉक देने से फायदा क्यों होता है?
इसीलिए फायदा हो जाता है कि उसकी स्मृति के तंतु झनझना जाते हैं, उसकी याद खो जाती है कि मैं पागल हूं, और पुराना हिसाब धुंधला हो जाता है। बीच में एक अंतराल आ जाता है। वह फिर से अ, ब, स से शुरू करने लगता है। इसलिए जिसको भी इलेक्ट्रिक शॉक देते हैं, उसका कुल इतना प्रयोजन है कि उसका मस्तिष्क ऐसी दशा में आ गया है कि अब उसको उसके मस्तिष्क से तोड़ लेना जरूरी है। शॉक में उसकी आत्मा अलग हो जाती है, मस्तिष्क अलग हो जाता है। थोड़ी देर को ही, फिर वापस जुड़ जाता है, लेकिन उतने में अंतराल पड़ गया। बीच में बाधा आ गई। बीच में एक दीवार खड़ी हो गई। अब वह याद न कर सकेगा।
लेकिन चीन और रूस में, जो विपरीत हैं साम्यवाद के, उनको वे बिजली के शॉक दे देते हैं।
स्मृति खो जाती है। बड़े से बड़ा पंडित, बिजली के शॉक दे दिए जाएं, छोटे बच्चे जैसा हो जाता है। फिर उसको अ, ब, स से सीखना पड़ेगा। निरीह हो जाता है; उसे कुछ याद नहीं रहता। वह अपनी शक्ल भी आईने में नहीं पहचान सकता, क्योंकि पहचान के लिए स्मृति जरूरी है। कैसे पहचानोगे कि यह मेरा ही चेहरा है? याद चाहिए कि हां, ऐसा ही चेहरा मेरा पहले भी था; उन दोनों की तुलना से ही पहचानोगे। उसको फिर से याद करना पड़ता है।
मैं यह कह रहा हूं कि स्मृति तो शरीर का हिस्सा है, आत्मा का नहीं। इसलिए शास्त्र तो शरीर तक ही जा सकते हैं, शब्द भी शरीर तक जा सकते हैं। तुम्हारे कान सुन रहे हैं; तुम्हारे कान में मेरी वाणी पड़ रही है; तुम्हारे कान से तुम्हारी स्मृति में जा रही है। तुम्हारी स्मृति में तुम चाहो तो संगृहीत हो सकती है; तुम न चाहो तो वह दूसरे कान से । बाहर निकल जा सकती है। लेकिन तुम्हारी आत्मा का कैसे स्पर्श होगा इन शब्दों से? शब्द तो पौदगलिक है, मैटीरियल है, पदार्थ है। पदार्थ का पदार्थ से संपर्क हो सकता है। तुम्हारी आत्मा तो पुदगल नहीं है।
हम एक पत्थर फेंकते हैं आकाश में। आकाश से टकरा कर वापस नहीं गिरता पत्थर; क्योंकि आकाश और पत्थर का मिलन नहीं हो सकता। आकाश शून्य है; पत्थर पदार्थ है। एक वृक्ष में फेंको, तो टकरा कर वापस लौट आता है। अगर आकाश में फेंकते हो, वापस लौटता है, तो इसलिए नहीं कि आकाश ने वापस फेंक दिया; तुमने जितनी शक्ति दी थी फेंकते समय वह चुक गई, तब गिर जाएगा। लेकिन आकाश से टकराता नहीं।
अगर आकाश से टकराहट होती तो तुम चल ही नहीं सकते थे; चलना-फिरना मुश्किल हो जाता। क्योंकि आकाश की दीवार तो चारों तरफ है। हाथ हिलाना मुश्किल हो जाता। शब्द जाता है, तुम्हारे शरीर से टकराता है, कंपित करता है तुम्हारी कान की इंद्रिय को, स्मृति को कंपित करता है। चाहो तो स्मृति में संगृहीत हो सकता है, न चाहो तो दूसरे कान से वापस निकल जाता है। लेकिन तुम्हारी आत्मा को थोड़े ही कंपित करता है!
और इसको अगर तुमने इकट्ठा कर लिया तो तुम बड़े पंडित हो जाओगे। अदम ने चखा होगा एक फल; तुमने पूरा वृक्ष पचा लिया है। लेकिन तुम इससे ज्ञानी न हो पाओगे। ज्ञानी होने का रास्ता तो शब्द को भूलना और शून्य में उतरना है। निशब्द की यात्रा है ज्ञान की यात्रा।
यहां तुम मेरे पास अगर कुछ सीखने आए हो तो तुम गलत आदमी के पास आ गए। तुम देर मत करो, भाग . जाओ। क्योंकि मैं यहां तुम्हें कुछ सिखाने को नहीं हूं। मैं कोई शिक्षक नहीं हूं। शिक्षक और गुरु का यही फासला है।