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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ शिशु थकता नहीं। उसकी ऊर्जा सदा बहती रहती है। मां-बाप थक जाते हैं, पूरा घर थक जाता है; एक छोटा सा बच्चा सबको नचा डालता है, थका डालता है अच्छी तरह से। और जब वे थक कर विश्राम के लिए जा रहे हैं तब भी वह अपने बिस्तर पर बैठा है, अभी उसे नींद नहीं आ रही। अब उसको सुलाने की भी कोशिश करनी पड़ती है। क्या कारण होगा उसकी इस अथक ऊर्जा का? लाओत्से कहता है, वही सूत्र बना लो। और जिसकी ऊर्जा लोचपूर्ण है, और जिसकी ऊर्जा सरल है, और जिसकी ऊर्जा निर्दोष है, उस पर कोई आक्रमण नहीं करना चाहता। तुम्हारी कोई जेब भी काट ले, बच्चे की कोई जेब नहीं काटता। और बच्चे को तुम एक रुपया हाथ में दे दो और वह चला जाए, गिर जाए रुपया, तो चोर भी पास में खड़ा हो तो वह भी ढूंढ़ कर उसका रुपया उसको दे देता है। बच्चा खो जाए तो लोग उसे कंधे पर रख कर घूमते हैं कि भई, किसका बच्चा है! मिठाई खिलाते हैं, खिलौना खरीद देते हैं। इस बच्चे में मामला क्या है? यही बच्चा अगर बड़ा होता तो इसकी ये ही आदमी जेब काट लेते। बच्चे पर लोग आक्रमण नहीं करते। रहस्य कहां है? अगर वह दिख जाए तो तुम उस रहस्य को कुंजी की तरह उपयोग कर सकते हो। क्योंकि बच्चा किसी पर आक्रमण नहीं करता। बच्चा अनाक्रामक है। इसलिए उस पर करुणा आती है, इसलिए उस पर दया का प्रवाह होता है, इसलिए उस पर प्रेम उपजता है। वह अहिंसात्मक है। वह किसी को कुछ नुकसान नहीं करना चाहता। इसलिए किसी का भी मन उसका नुकसान करने का नहीं होता है। तुम इसीलिए नुकसान उठाते हो, क्योंकि तुम किसी का नुकसान करना चाहते हो। यह भी हो सकता है, आज तुम न करना चाहते होओ नुकसान, पीछे कभी किया हो। इसलिए तो हिंदू कहते हैं कि जो भी किया है उसका निबटारा करना होता है। कभी पीछे नुकसान किया हो तो भी उसका फल भुगताना पड़ेगा। या कभी आगे करने की योजना बना रहे होओ तो भी उसका फल भुगताना पड़ेगा। अभी तुम बिलकुल निरीह चले जा रहे हो रास्ते से, किसी का नुकसान करने का अभी इरादा भी न हो, खयाल भी न हो, लेकिन तुम आदमी नुकसान करने वाले हो। तुम पर किसी को प्रेम नहीं आता। तुम गिर पड़ो तो लोग हंसते. हैं, प्रसन्न होते हैं। तुम हार जाओ तो लोग मिठाइयां बांटते हैं। एक बच्चा गिर पड़ता है तो कोई नहीं हंसता; लोग उसे दौड़ कर उठा लेते हैं। क्या है बच्चे का राज? वही राज तुम्हारी साधना का सूत्र हो जाना चाहिए। अनाक्रामक! उसकी ऊर्जा अपने में है, वह किसी पर हमला नहीं करना चाहता। वह अपने में जीता है। न किसी के लेने में है, न किसी के देने में है। न माधो का लेना, न साधो का देना। अपने में काफी है। छोटे बच्चे की एक पर्याप्तता है, वह अपने में पूरा है। कोई कमी नहीं है। वासना की कोई दौड़ नहीं है। कोई भविष्य नहीं है। इसी क्षण में पूरा का पूरा जी रहा है। तितली के पीछे दौड़ रहा है तो बस यह दौड़ना ही सब कुछ है। कंकड़-पत्थर नदी के किनारे बीन रहा है तो यह बीनना ही सब कुछ है। इस क्षण में उसकी समग्रता है, उसका पूरा अस्तित्व लीन है। इस पर प्रेम उपजेगा। और जिस दिन तुम शिशुवत हो जाओगे, तुम पर भी प्रेम उपजेगा। इसलिए संतों पर बड़ा प्रेम आता है। उनके पास होना ही, और उनके प्रति प्रेम से भर जाना हो जाता है। कोई अंतस का एक संबंध जुड़ने लगता है। तुम बचाना चाहोगे। तुम संत के साथ ऐसा ही व्यवहार करोगे जैसे वह छोटा बच्चा है। उसके तुम चरणों में भी झुकोगे, क्योंकि उसकी ऊंचाई अनंत; और तुम उसे पंख फैला कर अपने में बचा भी लेना चाहोगे, क्योंकि वह शिशुवत है। इसलिए संत के प्रति बड़ी अनूठी प्रतीति होती है। श्रद्धा की, प्रेम की, करुणा की, सबकी सम्मिलित अनुभूति होती है। जो जानता है वही जानता है। न तुम्हें वैसी अनुभूति हुई हो तो बड़ा कठिन हो जाएगा। तुम संत को छिपा लेना चाहोगे, बचाना चाहोगे, उसे कांटा न गड़ जाए, पत्थर न लग जाए। क्योंकि वह शिशुवत हो 164
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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