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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ हैं। गर्मी आती है, वर्षा आती है, शीत आती है; फिर गर्मी लौट आती है। यह जो तुम्हें मौसम की बदलाहट दिखाई पड़ती है, पृथ्वी के चक्कर के कारण। तुम्हारी चेतना भी ऐसे ही वर्तुलाकार में घूम रही है। इससे तुम बच्चे होते हो, जवान होते हो, बूढ़े होते हो। वे तुम्हारे मौसम हैं। सूरज चक्कर लगा रहा है किसी महासूर्य के किसी अज्ञात केंद्र का। पच्चीस सौ वर्ष में उसका एक चक्कर पूरा होता है। तो चेतना के उस परम जगत में भी बचपन आता है, जवानी आती है, बुढ़ापा आता है। हर पच्चीस सौ वर्षों में जगत की चेतना अपनी आखिरी ऊंचाई पर पहुंचती है। उस समय जैसे द्वार खुले होते हैं; जो प्रवेश कर जाए, कर जाए। उस समय तुम बाढ़ के साथ जा सकते हो। उस समय भयंकर लहरें जा रही हैं परमात्मा की तरफ, उनके साथ तुम बह सकते हो। उस समय बुद्ध पैदा होते हैं, महावीर पैदा होते हैं, कृष्ण, पतंजलि पैदा होते हैं, जरथुस्त्र। उनकी प्रगाढ़ धारा में कोई भी बह जा सकता है। इन आने वाले पच्चीस वर्षों में, इस सदी के पूरे होते-होते, वैसी प्रगाढ़ता का क्षण आएगा। तुम्हारे साथ मेहनत उसी क्षण के लिए तुम्हें तैयार करने को कर रहा हूं कि उस क्षण तुम्हें वह समय तैयार पाए। और इसलिए मैं इतनी जल्दी में हं, क्योंकि वह समय आ सकता है और हो सकता है तुम सुनते ही बैठे रहो, तुम विचार ही करते रहो, द्वार खुले और बंद हो जाए। सभी चीजें वर्तुल में घूमती हैं; जहां से शुरू होती हैं वहीं वापस पहुंच जाती हैं। तुम्हारी चेतना भी अगर बढ़ती ही जाए, बढ़ती ही जाए, तो फिर बालवत, शिशुवत हो जाएगी। तुम अगर बहुत आगे निकल जाओ तो तुम वहीं पहुंच जाओगे जहां से तुम आए थे। इसलिए जब तुम पूछते हो कि लाओत्से को मान कर पीछे लौट रहे हैं, तो यह आगे जाना है? आगे जाएं कि पीछे लौटें? तुम ठीक से आगे चले जाओ तो तुम पीछे पहुंच जाओगे। तुम ठीक से पीछे पहुंचने को सम्हाल लो तो तुम आगे निकल जाओगे। वहां विरोध नहीं है। वर्तुल में कोई विरोध नहीं है। वर्तुल से चूकता वही है जो बैठा है और चलता ही नहीं; कहीं भी नहीं जाता—न पीछे, न आगे। _ 'जो चरित्र का धनी है वह शिशुवत होता है। जहरीले कीड़े उसे दंश नहीं देते, जंगली जानवर उस पर हमला नहीं करते और शिकारी परिन्दे उस पर झपट्टा नहीं मारते।' शिशु पर हमला करना मुश्किल है। नहीं कि हमला नहीं किया जा सकता; मुश्किल है। क्या कारण है? कई बार तुम देखते हो, ऐसा होता है कि मकान में आग लग गई, सब मर गए; एक छोटा बच्चा बच गया। मकान से, ऊंचाई से एक छोटा बच्चा गिरता है और जरा भी चोट नहीं लगती। लोग कहते हैं, जाको राखे साईयां मार सके न कोय! नहीं, परमात्मा को इसमें कुछ करना नहीं पड़ता। साईयां का इसमें कुछ हाथ नहीं है, कुछ लेना-देना नहीं है। यह शिशुवत होने में कुछ खूबी है। शिशु गिरते हैं, टूट नहीं पाते। क्योंकि गिरने की उन्हें समझ नहीं है। वे जब गिर रहे हैं तब भी वे खेल ही समझ रहे हैं। तन नहीं गए हैं, घबड़ा नहीं गए हैं, हड्डियां खिंच नहीं गईं, मस्तिष्क में तनाव नहीं है। क्योंकि तुम जब पृथ्वी से जाकर टकराओगे खिड़की से गिर कर तो पृथ्वी नहीं मारेगी तुम्हें, तुम्हारा तनाव मारेगा। अगर तुम बहुत तने हुए हो तो तुम्हारे तनाव पर पड़ी चोट को तुम झेल न पाओगे, टूट जाओगे। _ कड़ी चीज टूट जाएगी, मुलायम चीज क्षण भर को झुकेगी, फिर अपनी जगह आ जाएगी। जितनी कोमल चीज होगी उतनी ही लोचपूर्ण होती है। शिशु लोचपूर्ण है। वह चोट खा जाएगा, टूटेगा नहीं। तूफान आता है; छोटे पौधे झुक जाते हैं, अपनी जगह खड़े हो जाते हैं। तूफान को हरा दिया उन्होंने, झुकने में उनकी कला थी। बड़े वृक्ष गिर जाते हैं, फिर उठ नहीं पाते। क्योंकि बड़े वृक्ष पहले तो लड़ते हैं, पहले तो पूरी कोशिश करते हैं तूफान के खिलाफ खड़े रहने की; उस लड़ाई में, उस प्रतिरोध में, उस रेसिस्टेंस में ही जड़ें उखड़ जाती हैं। कहां तूफान? छोटे पौधे इस 162
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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