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________________ 155 शि शुवत चरित्र ताओ का लक्ष्य है । पुनः बच्चे की भांति हो जाना, स्रोत की तरफ लौट जाना, मूल के साथ एक हो जाना; उस अवस्था को फिर पा लेना, जब भेद नहीं था । पहले हम शिशु की धारणा को समझ लें । तीन अवस्थाएं हैं। एक अवस्था है भेद-पूर्व, द्वैत - पूर्व, जब दो का पता न था, अबोध, अज्ञानी की। दूसरी अवस्था है द्वैत की, जब भेद हुआ, जब हमने दो को जाना, जब सब चीजें टूट कर विभाजित हो गईं। यह दशा है तथाकथित ज्ञानी की। और फिर एक तीसरी दशा है कि पुनः टूटी हुई चीजें जुड़ गईं। जो अलग-अलग हो गया था, वापस एक हो गया; जो लयबद्धता छिन्न हो गई थी, वह फिर छंद में बंध गई। फासले समाप्त हुए। अद्वैत का पुनर्भाव हुआ। फिर एक दिखाई पड़ने लगा। यह अवस्था है परम ज्ञानी की। परम ज्ञानी शिशुवत है। परम ज्ञान अज्ञान जैसा है। अज्ञान से बड़ा भिन्न, फिर भी अज्ञान जैसा । भेद है परम ज्ञान का, उसका विवेक, भेद है उसकी बोध की अवस्था, भेद है जानते हुए एक को जानना । शिशु भी एक को ही जानता है, लेकिन जानता नहीं। पहचान नहीं है। दो को करने की क्षमता नहीं है, इसलिए एक को जानता है। उसकी अवस्था अबोध है। उसे पता ही नहीं कि दो होता है। अभी विभाजन नहीं हुआ । विभाजन होगा; चीजें टूटेंगी। सब चीजें भिन्न-भिन्न दिखाई पड़ने लगेंगी। मैं और तू का पता चलेगा। मैं अलग हूं, तू अलग है, इसका पता चलेगा। सफलता-असफलता में भेद पैदा होगा। धन-मिट्टी में फर्क दिखाई पड़ेगा। सोना अलग हो जाएगा, हीरे अलग हो जाएंगे, कंकड़-पत्थर अलग हो जाएंगे। सुख और दुख भिन्न होंगे। स्वर्ग और नरक का फासला हो जाएगा। यह मैं पाना चाहता हूं, यह मैं नहीं पाना चाहता हूं; वासना जगेगी, सारा संसार खड़ा होगा। बालक तो मिटेगा; मिटने को है । मिटने के पूर्व की दशा है। बालक तो पाप में उतरेगा, उतरना ही पड़ेगा । क्योंकि पाप के बिना कोई प्रौढ़ता नहीं । बालक तो खोएगा इस निर्दोष स्वभाव को, क्योंकि यह निर्दोष स्वभाव अन-अर्जित है, यह मुफ्त मिला है। और ध्यान रखना, जो मुफ्त मिलता है वह तुम्हारा कभी भी न हो पाएगा। जो तुमने कमाया है वही तुम्हारा होगा। बालक का संतत्व मुफ्त मिला है; उसने कमाया नहीं है । वह प्रकृति का दान है । उसे छोड़ना पड़ेगा। इसे बहुत गहरे समझ लेना कि जो तुम कमाओगे अपने ही श्रम, अपने ही बोध, अपनी ही जीवन-ऊर्जा से, केवल वही तुम्हारा होगा। बाकी सब धोखा है। आज है, कल नहीं होगा। बालक का संतत्व धोखा है। क्योंकि जा रहा है, जा रहा है; अभी गया, अभी गया। देर नहीं है। क्षण भर है। नींद जैसा है, जो टूटेगी। कब तक सोए रहोगे ? सुबह हर क्षण करीब आ रही है; नींद टूटेगी। नींद में तो पापी भी पुण्यात्मा जैसा हो जाता है। नींद में तो असाधु भी साधु जैसा शांत रहता है; न हिंसा करता, न हत्या करता, न चोरी
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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