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Chapter 55
THE CHARACTER OF THE CHILD
Who is rich in character is like a child.
No poisonous insects sting him, no wild beasts attack him, And no birds of prey pounce upon him. His bones are soft, his sinews tender, Not knowing the union of male and female, yet his organs are complete, Which means his vigour is unspoiled.
yet.
his grip is strong,
Crying the whole day, yet his voice never runs hoarse, Which means his (natural) harmony is perfect.
To know harmony is to be in accord with the eternal, (And) to know eternity is called discerning. (But) to improve upon life is called an ill-omen;
To let go the emotions through impulse is called assertiveness.
(For) things age after reaching their prime; That (assertiveness) would be against Tao. And he who is against Tao perishes young.
अध्याय 55
शिशु का चरित्र
A
जो चरित्र का धनी हैं, वह शिशुवत होता हैं।
जहरीले कीड़े उसे दंश नहीं देते, जंगली जानवर उस पर हमला नहीं करते,
और शिकारी परिन्दे उस पर झपट्टा नहीं मारते।
यद्यपि उसकी हड्डियां मुलायम हैं, उसकी नसें कोमल, तो भी उसकी पकड़ मजबूत होती हैं।
यद्यपि वह नर और नारी के मिलन से अनभिज्ञ हैं, तो भी उसके अंग-अंग पूरे हैं।
जिसका अर्थ हुआ कि उसका बल अक्षुण्ण हैं।
दिन भर चीखते रहने पर भी उसकी आवाज भर्राती नहीं है,
जिसका अर्थ हुआ कि उसकी स्वाभाविक लयबद्धता पूर्ण हैं।
लयबद्धता को जानना शाश्वत के साथ तथाता में होना है, और शाश्वतता को जानना विवेक कहलाता हैं।
लेकिन जीवन में संशोधन करना अशुभ लक्षण कहाता है, और मनोवेगों को मन की राह देना आक्रामक हैं।
क्योंकि चीजें अपने यौवन पर पहुंच कर बुढ़ाती हैं, वह आक्रामक दावेदारी ताओ के खिलाफ हैं। और जो ताओ के खिलाफ हैं वह युवापन में ही नष्ट होता हूँ।