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धर्म है समय के स्वास्थ्य की खोज
शाका
ज्ञानी का न तो गांव से कुछ लेना है, न परिवार से कुछ लेना है।
जैनों की कथा है, और कथा का कारण है। क्योंकि जैनों के तेईस तीर्थंकर क्षत्रियों के घर में पैदा हुए तो जैनियों की धारणा है कि तीर्थंकर क्षत्रिय के घर में ही पैदा होता है। तो बड़ी मीठी कथा है, नासमझी की भी है, मीठी भी है, और आदमी के मन को समझने के लिए उपयोगी है। महावीर एक ब्राह्मणी की कोख में आए। तो कहते हैं, बड़ी मुश्किल, बड़ा तहलका मच गया देवताओं में कि यह तो सब गड़बड़ हो जाएगा। कहीं कोई तीर्थंकर ब्राह्मण के घर में कभी पैदा हुआ है? और जैनी तो ब्राह्मण के विरोधी हैं। और ब्राह्मण के घर में तीर्थंकर पैदा हो जाए तो सब गड़बड़ हो जाएगा। क्षत्रिय के घर में पैदा होता है तीर्थंकर। सदा से ऐसा हुआ है। तो कहानी है कि देवता बड़े बेचैन हुए। फिर कोई उपाय न देख कर उन्होंने एक बड़ी सर्जरी की। गर्भ को ब्राह्मणी की कोख से निकाला और राजा की पत्नी की कोख में जाकर रखा, और उसकी कोख में जो लड़की थी उसको निकाला और उसको जाकर ब्राह्मणी के गर्भ में रखा। फिर तृप्ति, शांति हुई। क्योंकि फिर महावीर क्षत्रिय के घर पैदा हो सके।
अब यह कहानी जिन्होंने गढ़ी है वह ब्राह्मणों के अपमान के लिए गढ़ी है कि कहीं ब्राह्मणों के घर में कोई तीर्थंकर हुआ? ब्राह्मण यानी भिखमंगे। इनके घर में कभी कोई तीर्थंकर हुआ है? कोई ज्ञानी कभी हुआ है इनके घर में? पंडित-पुरोहित, भीख मांगने वाले लोग, इनका क्या बल है कि तीर्थंकर को पैदा करें! भूल-चूक हो गई तो उसे ठीक कर लेना जरूरी हो गया।
न तो कुल से कुछ लेना-देना है, न गांव से कुछ लेना-देना है। इस तरह मत सोचना, सीधा देखना। व्यक्ति को सीधा देखना, परिवार को सीधा देखना, गांव को सीधा देखना। पूर्व-धारणाएं मत रखना।
'राज्य के चरित्र के अनुसार राज्य को परखो।'
मगर कोई परखता नहीं। हम परखते अपनी धारणाओं के अनुसार हैं। तुमने कभी खयाल किया? हिंदुस्तान और चीन की दोस्ती थी तो हिंदी-चीनी भाई-भाई चाऊ एन लाई और नेहरू दोनों दोहराते थे। और सारा बड़ा सब ठीक था। फिर दुश्मनी हो गई। फिर चीन राक्षसों का देश हो गया। फिर हिंदुस्तानी नेता चिल्लाने लगे कि ये तो राक्षस हैं, ये तो दानव हैं, ये तो बड़े भ्रष्ट हैं। एक घड़ी पहले भाई-भाई थे। और चीनी नेता वहां चिल्लाने लगे कि भारतीयों को तो नष्ट करना ही पड़ेगा, ये ही तो पूंजीवाद की जड़ हैं एशिया में। इनको मिटाना पड़ेगा, ये महारोग हैं। एक क्षण में सब बदल जाता है। और सारा मुल्क दोहराने लगता है। और कभी तुम सोचते भी नहीं कि पूरे मुल्क को दानव कहना नासमझी है। दोस्ती-झगड़ा एक बात है; बनती बिगड़ती है। लेकिन यह अतिशय पैदा हो जाता है तत्क्षण।
. जो आदमी कल तक मित्र था, उससे अच्छा आदमी नहीं था, आज वह शत्रु हो गया, उससे बुरा आदमी नहीं है। एक दिन में यह हो कैसे गया? जो स्त्री कल तक बड़ी सुंदर मालूम पड़ती थी, आज बनाव बिगड़ गया, बस वह कुरूप हो गई। अब उससे ज्यादा डायन इस दुनिया में कोई है ही नहीं। पूरे समूह, पूरे राष्ट्र इस तरह जीते हैं। और पूरे राष्ट्र को तुम छापा लगा देते हो कि यह बुरा या अच्छा।
सीधे-सीधे देखना। यह धारणाओं का जाल उचित नहीं है। इससे तुम्हारी आंखें धुएं से भर जाएंगी, और तुम कभी सीधे देखने में समर्थ न हो पाओगे। दुश्मन भी अच्छा हो सकता है।
जरूरी नहीं है कि रावण राक्षस रहा हो। वह राम के मानने वालों की धारणा है। और अब अगर उन्होंने राम के पुतले जला दिए दक्षिण में तो बड़ी बेचैनी फैलती है। और तुम पुतले जलाते रहे रावण के और अभी भी जलाओगे
और जरा भी बेचैनी नहीं फैलती। रावण राक्षस रहा हो, ऐसा जरूरी नहीं है। राक्षस कोई भी नहीं है। दुश्मन हमेशा राक्षस मालूम होता है; मित्र अच्छे मालूम पड़ते हैं, शत्रु राक्षस मालूम होता है। तो तुम फिर विकराल मूर्तियां रावण की बनाते हो। जरूरी नहीं है कि विकराल रहा हो। संभावना तो बहुत है कि बहुत सुंदर आदमी रहा होगा। क्योंकि डर
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