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ताओ उपनिषद भाग ५
'व्यक्ति के चरित्र के अनुसार व्यक्ति को परखो। परिवार के चरित्र के अनुसार परिवार को परखो। गांव के चरित्र के अनुसार गांव को परखो।'
क्योंकि होता क्या है, परिवार की भी धारणा होती है। खयाल होता है कि फलां परिवार कुलीन है; तो उसमें जो पैदा होगा वह कुलीन होगा। फलां परिवार बुरा है। यहूदी जीसस को स्वीकार न कर पाए, क्योंकि जीसस का जो गांव था, बेथलहम, ऐसी धारणा थी वहां कि बेथलहम में कभी कोई ज्ञानी हुआ है? हुआ भी नहीं था पहले। तो लोग जीसस से सवाल पूछते थे कि बेथलहम में कभी कोई ज्ञानी हुआ है जो तुम हो गए?
बेथलहम की वैसी ही दशा थी जैसी हिंदुस्तान में भी कुछ गांव हैं; जैसे पंजाब में होशियारपुर है। होशियारपुर में लोगों की धारणा है कि सिर्फ गधे रहते हैं। और इसीलिए उन्होंने नाम होशियारपुर रख लिया है छिपाने के लिए। अगर कोई आदमी होशियारपुर रहता है और तुम उससे पूछो, कहां रहते हो? तो वह झगड़े पर उतारू हो जाता है। वह कहता है, क्या मतलब है आपका पूछने से? क्या चाहते हैं? आपको क्या जरूरत? कहीं रहते हों। वह सीधा नहीं बताता कि होशियारपुर रहता है। क्योंकि जैसे ही उसने कहा कि होशियारपुर रहता है कि आपने धारणा बना ली कि...।
ऐसी कथा है कि अकबर के जमाने में होशियारपुर के लोगों ने प्रार्थना की अकबर को कि हम नाहक बदनाम हैं और हम बड़े लज्जित होते हैं कि हम जहां भी...बता नहीं सकते कि कहां रहते हैं। क्योंकि जिसको हमने बताया होशियारपुर रहते हैं कि बस वह मुस्कुराने लगता है। तो आप जांच-पड़ताल करवाएं और यह भ्रांति तुड़वाएं।
अकबर ने कहा कि बात ठीक है, सुना तो मैंने भी है। वह भी सुन कर होशियारपुर मुस्कुराने लगा। उसने एक कमीशन, एक आयोग बिठाया। सात आदमी भेजे, विचारशील आदमी, कि तुम जाकर पता लगाओ, कुछ दिन रहो वहां, जांच-पड़ताल करो कि यह बात कहां तक सच है।
होशियारपुर के लोगों ने बड़ी तैयारी की, क्योंकि तैयारी करनी जरूरी थी। यह कमीशन का आखिरी फैसला है। एक दफा अकबर कह दे तो मामला ठीक हो जाए। तो उन्होंने रत्ती भर भूल-चूक न की। ऐसा स्वागत किया कि वे लोग भी दंग हो गए। बहुत ज्यादा जब कोई सावधानी से करे, जब कोई अतिशय सावधानी से करे, तो अतिशय सावधानी भी चिंता बन जाती है। सब ठीक गया, सब ठीक गुजर गया। तीसरे दिन आयोग बड़ा प्रसन्न और विचार करके कि नहीं, यह बात गलत है, लोग नाहक इनको बदनाम करते हैं, वापस लौटा। गांव के बाहर दूर तक होशियारपुर के लोग पहुंचाने आए।
जब कमीशन विदा हो गया बड़ा तृप्त, सब लोग गांव वापस लौटे। और उन्होंने कहा, भाई, कोई भूल-चूक तो नहीं हुई? अभी कुछ नहीं बिगड़ा है, अभी कमीशन पास ही है। अगर कोई भूल-चूक हुई हो तो माफी मांग लें। तब रसोइए ने बताया कि मैं जीरा डालना भूल गया सब्जी में। कहीं ऐसा न हो कि वे समझें कि ये गधे जीरा ही खाना नहीं जानते। क्योंकि लोग कहते हैं न, बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद! तो उन्होंने कहा, यह तो भारी भूल हो गई, जीरा भूल गया। अब क्या करना? गांव भर से, जितना जीरा था, गाड़ियों में भर कर, घोड़ों पर लाद कर भागे एकदम। जाकर बीच में बड़ी चीख-पुकार मचाई कि रुको, रुको, रुको! आप यह मत समझना कि हमें जीरे का स्वाद नहीं है। कतारें गाड़ियों की बंधी हैं, घोड़ों पर, गधों पर जीरा लदा है, कि आप देख लो।
वह कमीशन बिलकुल तय कर लिया था कि ठीक है। उसने कहा, नहीं, गड़बड़ ही हैं। ये हैं ही गधे, इसमें किसी का कोई कसूर नहीं है। अब ये जीरा लाने की इतनी क्या जरूरत थी?
अतिशय कभी भूल हो जाती है। ऐसा बेथलहम के संबंध में खयाल था लोगों का कि बेथलहम में कभी कोई ज्ञानी हुआ? तो जीसस से जगह-जगह लोग पूछते, अच्छा आप बेथलहम में पैदा हुए। बेथलहम में कभी कोई ज्ञानी पैदा हुआ जो आप हो गए?
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