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धर्म हुँ समय के स्वास्थ्य की खोज
रही है। इस क्षण को तुम मत खो देना। इस क्षण का अगर तुम ठीक उपयोग कर लोगे तो तुम्हें सिर्फ बह जाना है, लहर ले जाएगी। यह क्षण खो गया तो फिर तुम्हें तैरना होगा। फिर लहर न ले जाएगी।
इसलिए जब भी यह क्षण आता है तब ऐसे ज्ञानी पैदा होते हैं जो कहते हैं : लेट गो, छोड़ दो। जब यह लहर नहीं होती, बीच के पच्चीस सौ वर्षों में ऐसे ज्ञानी आते हैं जो कहते हैं : बड़ा श्रम करना पड़ेगा। अगर तुम बीच के पच्चीस सौ वर्षों में पड़ जाओ तो पतंजलि रास्ता है; अगर तुम पच्चीस सौ वर्ष के किनारे पड़ जाओ तो लाओत्से रास्ता है। इसलिए मैं तुमसे निरंतर कह रहा हूं कि प्रयास का बड़ा सवाल नहीं है, समर्पण की बात है। संकल्प की कोई जरूरत नहीं है। तुम छोड़ दो। अभी तैयार हो रही है लहर, और जल्दी ही यह किनारा छोड़ देगी लहर। तुम अगर छोड़ने को तैयार हो गए तो बह जाओगे। सुगम है अभी।
इसलिए दो धाराएं हैं धर्मों की। एक धारा है जो मध्य के काल में पैदा होती है, पच्चीस सौ वर्ष के बीच में। वह धारा सदा जोर देती है: श्रम, संकल्प, योग, हठ। दूसरी धारा है धर्म की जो पच्चीस सौ साल पूरे होने पर पैदा होती है : झेन, लाओत्से। छोड़ दो; तुम्हें कुछ करना नहीं है। तुम्हें कोई श्रम नहीं करना है। तुम्हें सिर्फ बह जाना है। ऐसी घड़ियों में सारा अस्तित्व तुम्हें साथ देता है। एक वर्तुल पूरा होने के करीब होता है।
__मुझसे लोग पूछते हैं कि आप इतने लोगों को संन्यासी बना रहे हैं! संन्यासी बनना तो बड़ा कठिन है।
__ वे ठीक कहते हैं। ऐसी घड़ियां होती हैं जब संन्यासी बनना अति कठिन है। एक ऐसी घड़ी करीब आ रही है जब संन्यासी बनना अति सरल है और संसारी बनना अति कठिन है। बस तुम राजी भर होओ कि घटना घट सकती है। यह ऐसे है जैसे सुबह तुम आंख खोलो, और सब तरफ रोशनी है, सब दिखाई पड़ता है। और आधी रात में आंख खोलो, आंख भी खोलो तो क्या होता है, अंधेरा है। रात के क्षण होते हैं, और दिन के क्षण होते हैं। पच्चीस सौ साल रात चलती है। बीच में थोड़े से समय के लिए अस्तित्व शिथिल होता है, चीजें विश्राम को उपलब्ध होती हैं। उस क्षण का जो उपयोग जान लेता है वह द्वार से प्रवेश कर गया। अन्यथा फिर दीवार में सेंध मारनी पड़ती है। उसमें बड़ा श्रम है।
'इसलिए : व्यक्ति के चरित्र के अनुसार व्यक्ति को परखो।'
लाओत्से कहता है कि धारणाओं से नहीं, पहले से पूर्व-निर्धारित विचारों से नहीं, व्यक्ति के चरित्र के अनुसार व्यक्ति को परखो।
तुम इससे ठीक उलटा करते हो। किसी ने कहा कि यह आदमी मुसलमान है और तुम हिंदू हो, तुमने बस मुसलमान सुनते ही से मान लिया कि आदमी बुरा है। मुसलमान और अच्छा हो सकता है? तुम व्यक्ति का चरित्र नहीं परखते। तुम्हारी पूर्व-धारणा है, उस पूर्व-धारणा से तुम तय करके चलते हो।
यह गलत है। एक-एक व्यक्ति को सीधा-सीधा परखो। हिंदू, मुसलमान, जैन, ईसाई में मत बांटो। व्यक्ति को सीधा देखो। क्योंकि जब तुम व्यक्ति को सीधा देखोगे तब तुम अपने को भी सीधा देखने में समर्थ हो पाओगे।
और पूर्व-निर्धारित धारणाओं में किसी को मत ढालो। क्योंकि कल जो आदमी बेईमान था, आज ईमानदार हो गया होगा। तुम कल की धारणा मत खींचो। कल जो तुम्हें गाली दे गया था वह आज फिर आ रहा है। तुम देख कर लकड़ी लेकर खड़े मत हो जाओ, क्योंकि हो सकता है, वह क्षमा मांगने आ रहा हो।
तुम कल को जाने दो; तुम आज ही देखो सीधा। सब बदलता है, तो आदमी की चेतना क्यों न बदलेगी? पापी पुण्यात्मा हो जाते हैं। असाधु साधु हो जाते हैं। जो दूर थे वे पास आ जाते हैं, जो पास थे वे दूर हो जाते हैं। यह बदलाहट रोज होती है। इसलिए तुम पूर्व-धारणाओं को मत बनाओ। तुम सदा तथ्य को सीधा देखो। आज जो हो उसे देखो। कल को बीच में मत लाओ।
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