________________
ताओ उपनिषद भाग ५
146
पैगंबर अपने ही गांव में बड़ी मुश्किल में पड़ता है। और अपने ही परिवार में तो और भी मुश्किल में पड़ जाता है। पूरा परिवार कितनी ही बातें करे, लेकिन भीतर एक विरोध होता है। क्योंकि यह परिवार भरोसा ही नहीं कर सकता कि हमारे बीच और ऐसा आदमी पैदा हो जाए! और हम इतने छोटे रह जाएं और यह आदमी इतना आगे चला जाए ! वे अनजाने मार्गों से उसे नीचे खींच कर अपनी सतह पर लाना चाहते हैं।
इसलिए जब कोई एक व्यक्ति चरित्र की तरफ जाता है और परिवार नहीं जाता तो वह धारा के विपरीत उसे बहना पड़ता है । उसमें उसकी शक्ति बड़ी व्यय होती है। और चरित्र उसका हो भी जाए तो भी अतिशय न होगा। वह एक ऐसा वृक्ष होगा जो बामुश्किल जिंदा है, किसी तरह पानी प्राप्त कर रहा है। फूल खिलेंगे भी तो अधखिले होंगे, क्योंकि सब तरफ विरोध है। हवाओं में विरोध है, सूरज की किरणों में विरोध है, जमीन में विरोध है।
लाओत्से कहता है, 'परिवार में उसका पालन हो तो चरित्र अतिशय होगा।'
तब प्रगाढ़ता से होगा; बड़ी समृद्धि होगी । और तब उस धारा में कोई भी बह सकेगा ।
'गांव में उसके पालन से चरित्र बहुगुणित होगा।'
और अगर पूरा गांव पाखंडी न हो और लोग स्वभाव में थिर हों तो हजार-हजार गुना हो जाएगा। जरा सा करो और बहुत हो जाएगा। एक कदम चलो और हजार कदम हो जाएंगे। शुभ भी भूमि चाहता है, सत्य भी भूमि चाहता है। 'राज्य में उसके पालन से चरित्र महान समृद्धि को उपलब्ध होगा। संसार में उसके पालन से चरित्र सार्वभौम
होगा ।'
इसीलिए तो यह होता है कि कभी-कभी एक प्रगाढ़ धारा उठती है और एक श्रृंखलाबद्ध ज्ञानियों का जन्म होता है; जैसा बुद्ध के समय में हुआ। क्योंकि एक ज्ञानी दूसरे ज्ञानी के लिए सहारा बन जाता है। दूसरा ज्ञानी तीसरे के लिए सहारा बन जाता है। हवा भर जाती है एक नई उत्तेजना और गरिमा से, और उस गरिमा में लोग सहजता से बह जाते हैं। बुद्ध हुए, उसी वक्त जरथुस्त्र हुआ, उसी वक्त हेराक्लाइटस हुआ, उसी वक्त लाओत्से हुआ। उसी वक्त महावीर हुए, उसी वक्त च्वांगत्से हुआ। सारे जगत में एक प्रगाढ़ लहर उठी और उस लहर में हजारों लोग पार हो गए। ये लोग और किसी समय में शायद पार न हो पाते।
इसलिए जब हिंदू कहते हैं कि पंचम काल में या कलियुग में बुद्धत्व को उपलब्ध होना कठिन है, तो उसका कारण है। कठिन इसीलिए है कि परिवार झूठा, गांव झूठा, राज्य झूठा, समाज झूठा, सारी दुनिया ही झूठी है। इस पाखंड के बीच जब कोई बुद्धत्व को उपलब्ध हो तो उसे बड़ी धारा के विपरीत बहना पड़ेगा। उसकी सारी शक्ति तो धारा के विपरीत बहने में लग जाएगी। इसलिए कठिन है। और समय में कोई कठिनाई नहीं है।
लेकिन ठीक फिर वह घड़ी आ रही है। जैसा मैं बार-बार तुमसे कहा हूं कि हर पच्चीस सौ वर्ष में मनुष्य जाति का इतिहास एक वर्तुल पूरा करता है । बुद्ध के पच्चीस सौ वर्ष पहले कृष्ण, पतंजलि। बुद्ध के समय में बड़े ज्ञानियों की श्रृंखला। फिर पच्चीस सौ वर्ष पूरे होने के करीब आ गए हैं। इन आने वाले बीस-पच्चीस वर्षों में दुनिया में बड़ा प्रगाढ़ वेग उठेगा और तुम उस वेग को चूक मत जाना। क्योंकि वह चूक जाने पर फिर बहुत कठिनाई है । फिर शायद तुम पच्चीस सौ साल प्रतीक्षा करोगे, तब दुबारा उस वेग की घड़ी आएगी। ऐसे ही जैसे कि जब हवा बह रही हो पूरब की दिशा में, तुम नाव को खोल दो तो बिना पतवार उठाए नाव पूरब की तरफ बहने लगती है। और जब हवा पश्चिम की तरफ बह रही हो तब तुम्हें पूरब जाना हो तो तुम्हें बड़ा श्रम उठाना पड़ता है। पहुंच भी जाओ तो बिलकुल थके हुए पहुंचोगे ।
फिर एक घड़ी आ रही है । उत्तुंग लहर उठ रही है सारी दुनिया में, बड़ी नई चहल-पहल है अंतःकरण में; लोग सत्य के संबंध में, परमात्मा के संबंध में पुनर्विचार कर रहे हैं। जैसे रात करीब है टूटने के और सुबह होने के पास आ