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व्यक्ति पागल होगायन से जाहिर हुए ता पावलेकिन यह बड़ी मुश्किल
धर्म समय के स्वास्थ्य की खोज
परिवार का हिस्सा
तो अगर घर में एक आदमी पागल होता है, पागल तो पूरा घर है, वह एक आदमी तो सिर्फ शिकार है कमजोर होने के कारण। वह सबसे कमजोर कड़ी है जो टूट जाती है। और हम सब उसको जिम्मेवार ठहराते हैं। और तुम्हें पता नहीं कि वह सिर्फ तुम्हारा निकास है। अगर उस व्यक्ति को हटा लिया जाए तुम्हारे घर से सदा के लिए तो दूसरा व्यक्ति पागल होगा। अब जो कमजोर होगा वह पागल होगा। ... ये तथ्य बड़े वैज्ञानिक अध्ययन से जाहिर हुए तो पश्चिम में एक नई मनोचिकित्सा शुरू हुई। वह है परिवार की चिकित्सा। अकेले एक आदमी की चिकित्सा से कुछ न होगा। लेकिन यह बड़ी मुश्किल बात है। जब और थोड़ी खोज-बीन की तो पता चला कि परिवार तो पूरे गांव का एक हिस्सा है आर्गेनिक। जैसे व्यक्ति एक परिवार का हिस्सा है ऐसा परिवार गांव का हिस्सा है। तब तो झंझट बढ़ गई। वह पूरे गांव में जो पागलपन है, सबसे कमजोर परिवार से प्रकट हो रहा है। तो ग्रुप थेरेपी पैदा हुई : समूह की चिकित्सा करो।
__ लेकिन वह सफलता की तरफ जा नहीं सकते, क्योंकि गांव पूरे राष्ट्र से जुड़ा है, राष्ट्र पूरे संसार से जुड़ा है, संसार पूरे विश्व से जुड़ा है। इसका तो अर्थ यह हुआ कि जब तक पूरी विश्वसत्ता शुद्ध न हो, स्वस्थ न हो, तब तक हम आशा नहीं बांध सकते। एक-एक व्यक्ति को ठीक करके भी कुछ होगा न, कहीं और से बीमारी निकलने लगेगी। समग्र स्वस्थ होना चाहिए। इस समग्र की स्वस्थता की खोज ही धर्म है। एक-एक की चिकित्सा से हल नहीं होने वाला। अगर हम अलग-अलग होते तो हल हो जाता।
इसलिए तुम जब रास्ते पर किसी को पागल देखो तो यह मत सोचना कि तुम सौभाग्यशाली हो, यह दुर्भाग्यशाली है। तुम उसे धन्यवाद देना, क्योंकि तुम्हारा पागलपन वह प्रकट कर रहा है। हर गांव में एकाध-दो पागलों की जरूरत है-छोटे से छोटे गांव में भी। हर गांव का पागल होता है। और वह पागल पूरे गांव के पागलपन का निकास-द्वार है, जैसे घर में एक नाली होती है जिससे कचरा-कूड़ा सब निकल जाता है। ठीक ऐसे ही वह पागल तुम्हें स्वस्थ रख रहा है। तुम उसको धन्यवाद देना। और तुम उसके अनुगृहीत रहना। क्योंकि अगर वह पागल मर जाए तो दूसरे आदमी को पागल होना पड़ेगा। एक नाली टूट जाए तो दूसरी बनानी पड़ेगी। क्योंकि घर का कचरा तो बहना ही है। कचरा है।
समग्र का स्वास्थ्य!
तो लाओत्से कहता है, 'चरित्र जब व्यक्ति में पालन किया जाता है-वास्तविक चरित्र जो स्वभाव से उठता है-तो चरित्र प्रामाणिक होता है। परिवार में उसके पालन से चरित्र अतिशय होता है, एबनडेंट।'
. क्योंकि एक व्यक्ति अगर चरित्र का पालन भी करे और घर भर के लोग पाखंडी हों, तो एक तो उसे चरित्र के पालन में बड़ी कठिनाई होगी, क्योंकि सारा घर उसके विरोध में होगा। ऊपर-ऊपर भला प्रशंसा करे, लेकिन भीतर विरोध में होगा। इसलिए तुम जान कर हैरान होओगे कि ज्ञानियों के घरों में ज्ञानियों का बड़ा विरोध रहा है।
जीसस ने कहा है कि पैगंबर को उसके गांव में कोई पूजा नहीं मिलती।ऐसा हुआ कि जीसस ने बड़े चमत्कार किए। जहां वे गए चमत्कार हुए। व्यक्तित्व उनका वैसा था। लेकिन जब वे अपने गांव आए तो कुछ भी न कर सके। तो बाइबिल में इस बात का उल्लेख है कि उनके शिष्य बड़े चकित हुए कि आप दूर-दूर इतना चमत्कार किए हैं, हजारों लोग प्रभावित हुए हैं, गांव में कोई भी प्रभावित नहीं हो रहा आपसे? तो उन्होंने कहा, गांव में पैगंबर की पूजा नहीं होती। और गांव में लोग समझते हैं कि यह जीसस! वह जोसेफ बढ़ई का लड़का है, इसका दिमाग कुछ खराब है, अनाप-शनाप बातें करता है। किसी को गांव में आस्था नहीं है। आस्था नहीं तो चमत्कार असंभव है। क्योंकि चमत्कार पैगंबर से नहीं होता, आस्था से होता है। फिर जीसस दुबारा उस गांव नहीं गए, क्योंकि उस गांव का परिणाम उनके शिष्यों पर भी बुरा पड़ता था, यह देख कर कि अपने ही गांव में...। क्योंकि शिष्य बड़ी अपेक्षा रखते थे।
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