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धर्म हैं समय के स्वास्थ्य की खोज
हो वहीं रहना और होश को सम्हालना। तब तुम बड़े चकित होओगे कि ये सारे मित्र, प्रियजन, परिजन, दुश्मन, भीड़, बाजार, कोई भी तुम्हारे विरोधी नहीं हैं; सब तुम्हें सहारा दे रहे हैं। क्योंकि सभी तुम्हारी परीक्षा हैं; और सभी तुम्हारी कसौटी हैं। तब मरते वक्त तुम मित्रों को ही धन्यवाद न दोगे, तुम अपने शत्रुओं को भी धन्यवाद दोगे। क्योंकि उनके बिना भी तुम पा न सकते थे।
'जिसकी पकड़ पक्की है, वह आसानी से छोड़ता नहीं है।' तुम्हारी पकड़ तो छूट-छूट जाती है। वह है ही नहीं। 'पीढ़ी दर पीढ़ी उसके पूर्वजों के त्याग अबाध रूप से जारी रहेंगे।'
दो तरह की पूर्वजों की यात्रा है। एकः तुम्हारे पिता, तुम्हारे पिता के पिता; तुम्हारी शरीर की परंपरा। और एकः तुम्हारा यह जन्म, और तुम्हारा पिछला जन्म, और तुम्हारा पिछला जन्म; तुम्हारी आत्मा की परंपरा। तुम दो तरह की वसीयत लेकर पैदा हुए हो। दोनों वसीयत सनातन हैं। क्योंकि तुम सदा से हो। तुम्हारा शरीर सदा से है। शरीर भी अपनी संपदा को संगृहीत करके चलता है, और आत्मा भी अपनी संपदा को संगृहीत करके चलती है। जो तुमने किया है अतीत जन्मों में, उसकी हवा तुम्हारे साथ आज भी है। क्योंकि तुम्हारा सारा अतीत सिमट आया है इस वर्तमान के क्षण में। ऐसा मत सोचना कि अतीत नष्ट हो गया; कुछ भी नष्ट नहीं होता। इस वर्तमान में तुम्हारा सारा अतीत समाया हुआ है।
इसलिए तो हिंदू कर्म की बहुत-बहुत धारणा और विचारणा करते हैं। क्योंकि कर्म का अर्थ है, तुमने जो किया है कभी भी वह सब समाया हुआ है आज। तुम आज ही पैदा नहीं हुए हो, तुम्हारा सारा अतीत आज के भीतर छिपा है। न केवल तुम्हारा अकेला। इस संबंध में लाओत्से हिंदुओं से बड़ा भिन्न है, और ज्यादा सही है। हिंदू तो सिर्फ तुम्हारे अतीत की बात करते हैं। लाओत्से कहता है कि तुम्हारा अतीत तो समाया हुआ ही है, तुम्हारे पूर्वजों का अतीत भी समाया हुआ है। क्योंकि तुम जिनसे पैदा हुए हो, जिनका कण तुम्हारे जीवन का आधार बना है, जिनकी वीर्य-ऊर्जा ने तुम्हारे शरीर और मन को ढांचा दिया है, वे भी तुममें छिपे हैं, वे भी तुम्हारे भीतर छिपे हैं। और तुम्हारे चरित्र में उन सबका प्रकटन होता है। अगर तुम्हारी परंपरा पाखंड की ही रही हो तो वह पाखंड प्रकट होगा।
इसलिए तुम अकेले नहीं हो। और तुम सिर्फ अपने लिए ही मत सोचना। सारा अस्तित्व तुम्हारे पीछे गुंथा है। ताने-बाने हैं जीवन के; कोई व्यक्ति अकेला नहीं है। और तुम जो भी कर रहे हो वह सिर्फ तुम्हारे लिए ही नहीं है। तुम्हारा कृत्य तुम्हारे पूरे अतीत की कथा भी कहेगा।
. हिंदू कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति एक ऋण लेकर चल रहा है-पिता का ऋण, माता का ऋण, गुरु का ऋण। क्या है वह ऋण? वह ऋण यह है कि अगर तुम खिल गए वास्तविकता से तो तुम्हारे माता और पिता और तुम्हारी अनंत काल की परंपरा तुममें खिल कर प्रफुल्लित होगी। तुम जब तक न खिलोगे, वे भी पूरी तरह न खिल पाएंगे। क्योंकि वे तुममें समाविष्ट हैं। उनका खिलना भी अधूरा-अधूरा रहेगा।
इससे तुम कुछ बातें समझ पाओ; क्योंकि प्रत्येक बात बहुत सी बातों से जुड़ी है।
अधिकतम बुद्ध पुरुष अविवाहित रहे हैं। और रहने का एक कारण यह है कि अगर तुम्हें परिपूर्ण बुद्धत्व पाना हो तो तुम्हारे बच्चे भी जब तक बुद्धत्व को प्राप्त न हो जाएं, तुम्हारी श्रृंखला अधूरी रहेगी। क्योंकि जो मुझसे पैदा हो रहा है, जब तक वह भी न पा लेगा तब तक मैं अधूरा रहूंगा। क्योंकि वह मेरी ही यात्रा है। अधिक बुद्ध पुरुष अविवाहित रहे हैं। रहने के कारण बहुत हैं। उनमें एक बुनियादी कारण यह है-प्रसंगवशात तुमसे कहता हूं। तुम जब तक मुक्त न हो जाओगे, तुम्हारे पिता और पिता के पिता और पिता के पिता बंधे हैं। तुम्हारी मुक्ति उनकी मुक्ति भी बनेगी। व्यक्ति अकेला नहीं है, बंटा हुआ नहीं है, कटा हुआ नहीं है। हम सब एक बड़े ताने-बाने के धागे हैं।
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