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ताओ उपनिषद भाग ५
जाता है, पानी-पानी मालूम होता है। ऐसा लगता है कि तुम्हारे चरणों में सिर रख देने को लालायित है। फिर पद पर पहुंच जाने पर यह तुम्हें पहचानेगा नहीं। यह यह बात भी नहीं मानेगा कि कभी यह तुम्हारे द्वार गया था। तुम भूल कर इसके पास मत चले जाना कि आप हमारे द्वार आए थे और हमने आपको मत दिया था, और आप हाथ जोड़ कर खड़े हुए थे। सच तो यह है कि चूंकि इसे हाथ जोड़ना पड़ा, यह तुमसे बदला लेकर रहेगा, यह तुम्हें नीचा दिखा कर रहेगा। क्योंकि परिस्थिति ऐसी थी, हाथ जोड़ने पड़े, तुम्हें भुला नहीं सकता; यह तुम्हारा अपमान करके रहेगा।
तो यह एक आचरण है। ऐसा आचरण ऊपर आचरण भीतर गहन पाखंड है। जीसस निरंतर अपने वचनों में कहते हैं, अरे ओ पाखंडियो! अपने शिष्यों को कहते हैं कि तुम पाखंडियों जैसे आचरण से मत भर जाना, उससे तो दुराचरण भी ठीक है। कम से कम ईमानदार तो है; कम से कम सच्चा तो है। जीसस अपने शिष्यों को कहते हैं कि ध्यान रखना, दुराचारी पहले पहुंच जाएंगे तुम्हारे सदाचारियों से। क्योंकि दुराचारी कम से कम सीधे-साफ हैं, चालाक नहीं हैं। ये तुम्हारे सदाचारी बिलकुल चालाक हैं और पाखंडी हैं। और जिस-जिस को ये दिखा रहे हैं कि इनमें नहीं है, वही-वही इनमें छिपा है।
अगर तुम्हारे साधुओं के सिर में एक खिड़की बनाई जा सके और तुम उसके भीतर झांक सको तो तुम बहुत हैरान होओगे। वहां तुम महान अपराध को होते देखोगे; यद्यपि वे आचरण से नहीं करते ऐसा अपराध, यह उनके विचार में ही चलता है। पर विचार और आचरण का कोई फर्क नहीं है धर्म के लिए। तुमने सोचा कि हो गया; तुमने किया या नहीं, यह सवाल नहीं है। क्योंकि धर्म का इससे कुछ लेना-देना नहीं है कि तुमने क्या किया। धर्म का इससे ही संबंध है कि तुमने क्या करना चाहा, तुम्हारे भीतर क्या करने का विचार उठा। अगर तुमने व्यभिचार सोचा तो व्यभिचार हो गया। कानून तुम्हें न पकड़ पाएगा, लेकिन परमात्मा के कानून से तुम बच न सकोगे। इस जमीन का कानून तुम्हें न पकड़ पाएगा। तुम अपने मन में बैठ कर किसी की भी हत्या करते रहो, कोई अदालत तुम पर मुकदमा नहीं चला सकती। कम से कम सपने की स्वतंत्रता है। तुम स्वप्न देख सकते हो हत्या के, कोई कुछ नहीं कह सकता। . जब तक तुम कृत्य न करो तब तक तुम गिरफ्त में नहीं आते। क्योंकि संसार कृत्य से जीता, कृत्य से सोचता है। संसार का सिक्का कृत्य है। लेकिन परमात्मा का सिक्का और। वहां सोच-विचार...आखिरी हिसाब इसका नहीं है कि तुमने क्या किया, आखिरी हिसाब इसका है कि तुम क्या करना चाहते थे।
तब तुम पापियों में और पुण्यात्माओं में बहुत फर्क न पाओगे। तब तुम अपने पुण्यात्माओं को पापियों से भी बड़ा पापी पाओगे। क्योंकि पापी तो गुजर जाता है, कर लेता है, निपट जाता है; पुण्यात्मा सोचता ही रहता है, सोचता ही रहता है। वही-वही पुनरुक्त होता रहता है। उसकी आत्मा एक गर्त में पड़ती जाती है। उसकी आत्मा के चारों तरफ एक ही धुआं घूमने लगता है; वह पाप का धुआं है।
ऐसा आचरण बेबुनियाद है। और ऐसा आचरण रेत पर बनाए गए भवन की तरह है जो गिरेगा ही देर-अबेर। संयोग है कि थोड़ी देर टिक जाए। कागज की नाव है, इससे तुम यात्रा न कर सकोगे। यह तुम्हें डुबाएगी। इससे तो बेहतर है तुम बिना नाव के ही यात्रा कर लो। क्योंकि बिना नाव के जो यात्रा करता है वह तैरने का इंतजाम करके चलता है। कागज की नाव में जो चलता है वह सोचता है, नाव पास है; तैरने की जरूरत क्या? तैरना सीखने का प्रयोजन क्या? लेकिन कागज की नावें पार नहीं जाती, बीच में डूब जाती हैं।
और फिर यह जो ऊपर-ऊपर से साधा गया आचरण है, यह तुम्हें बड़ी भीतरी कलह में डाल देगा। एक कांफ्लिक्ट, एक द्वंद्व तुम्हारे भीतर चलता ही रहेगा। क्योंकि जो भी तुम करना चाहोगे, करोगे नहीं; और जो भी तुम करोगे वह तुम करना न चाहोगे। मुस्कुराओगे ऊपर, भीतर क्रोध से भरे रहोगे। तुम्हारा जीवन नरक बन जाएगा। तुम दोनों दिशाओं में तने रहोगे।
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