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________________ धर्म है समय के स्वास्थ्य की खोज है, बैठना है, व्यवहार करना है। तो तुम्हें एक गणित सीखना पड़ेगा। तुम अपने मनोवेगों को स्वतंत्रता नहीं दे सकते हो; अन्यथा जीना मुश्किल हो जाएगा। और तुम चौबीस घंटे अड़चन में रहोगे। इस गणित को तुम चरित्र मत समझ लेना। यह गणित तो ऊपर-ऊपर है। इसीलिए तो निरंतर यह होता है कि जब भी तुम थोड़े ज्यादा शक्तिशाली हो जाते हो, यह गणित बदलने लगता है। क्योंकि यह गणित तभी तक काम देता है जब तक तुम कमजोर थे। जैसे ही तुम्हारी शक्ति बढ़ती है, थोड़ा धन बढ़ता है, थोड़ा पद बढ़ता है, तो सारी स्थिति बदल जाती है। जो कल ताकतवर थे वे कमजोर हो जाते हैं। अब तुम उन पर क्रोध कर सकते हो। कल जो कमजोर थे वे और कमजोर हो जाते हैं; अब तुम उनके सिर पर पैर रख कर सीढ़ियां बना सकते हो। जो लार्ड एक्टन ने कहा है, पावर करप्ट्स, एंड करप्ट्स एब्सोल्यूटली, कि शक्ति लोगों को भ्रष्ट करती है और परिपूर्ण रूप से भ्रष्ट करती है, वह एक अर्थ में सही है और एक अर्थ में सही नहीं। ऐसा होता है, यह निश्चित है। तो लार्ड एक्टन जो कह रहा है वह ठीक कह रहा है। उसका निरीक्षण सही है कि जो भी व्यक्ति शक्ति में पहुंचता है वही भ्रष्ट हो जाता है। लेकिन फिर भी यह सही नहीं है। क्योंकि शक्ति किसी को भ्रष्ट नहीं करती। वह व्यक्ति भ्रष्ट तो था ही। कमजोर था, इसलिए भ्रष्टता को प्रकट नहीं कर सकता था। शक्ति ने, जो छिपा था, उसे प्रकट करने का मौका दिया। यह करना तो वह सदा से चाहता था, लेकिन करने की सुविधा नहीं जुटा पाता था। अब उसके पास सुविधा है। तुम देखते हो, भारत में ऐसा हुआ। आजादी के पहले जो राजनीतिज्ञ सेवक थे वे ही आजादी के बाद शोषक हो गए। आजादी के पहले जो बड़े त्यागी मालूम होते थे वे ही आजादी के बाद बड़े भोगी हो गए। उनका त्याग ऊपर से थोपा हुआ आचरण था, जो परिस्थिति की मजबूरी थी, जो वास्तविक नहीं थी। उनकी अहिंसा ऊपर-ऊपर थी। यह जान कर तुम हैरान होओगे कि इन पच्चीस वर्षों में इन्हीं राजनीतिज्ञों ने, जो अहिंसा का दिन-रात उदघोष करते रहते हैं, जितनी हत्या की है इतनी अंग्रेजों ने भारत में कभी भी न की थी। इसे कोई सोचता भी नहीं। जितनी गोली इन्होंने चलाई है उतनी एक विजातीय, एक परदेशी सत्ता ने भी न चलाई थी। अगर अंग्रेज इतनी ही गोली चलाने को राजी होते तो तुम कभी स्वतंत्र ही न हो पाते। जितने लोगों को तुमने जेल में डाला है इतनों को अगर अंग्रेज डालने को तैयार होते और इस बुरी तरह दमन करने को राजी होते तो गुलामी कभी टूट नहीं सकती थी। गोली चलाना खेल हो गया है। रोज कहीं न कहीं भारत में गोली चलती है। दो-चार, पांच आदमियों के मरने की कोई बात ही खास नहीं रही है। लाठी तो रोज पड़ती है। जेलों में बहुत बुरी दशा है। और ये सब अहिंसक हाथों से हो रहा है। हिंसा के करने वाले लोग अगर ऐसा करें तो संगति है। लेकिन अहिंसक दावेदार, जो गांधी की छाया में बड़े हुए और जो दिन-रात गांधी का गुणगान करते रहते हैं, उनके हाथ तले यह सब हो रहा हो, तो एक बात समझ लेनी चाहिए कि गांधी इस देश को चरित्र नहीं दे सके। गांधी ने इस देश को कुशलता दी, चालाकी दी। ऊपर-ऊपर रही बात, भीतर गहरे में न गई। और उनके सारे अनुयायी भ्रष्ट साबित हुए। लेकिन भ्रष्टता का पता सैंतालीस के पहले नहीं चला। चल नहीं सकता था। ताकत ही हाथ में न थी तो भ्रष्ट कैसे होंगे? तब वे बड़े शुद्ध मालूम पड़ते थे। शुभ्र खादी के वस्त्रों में उन जैसे साधु खोजना कठिन थे। वस्त्र अब भी वही हैं। शुभ्रता और भी बढ़ गई है। लेकिन भीतर का कालापन पूरी तरह प्रकट हो गया है। एक आचरण है जो आदमी सामाजिक व्यवहार की तरह सीखता है-कैसे बोलना, कैसे उठना, कैसे चलना-ताकि तुम व्यर्थ ही किसी के विरोध में न पड़ जाओ, व्यर्थ ही शत्रु न बना लो, कुशलता से काम लो, ताकि जो लक्ष्य तुम्हारे जीवन की महत्वाकांक्षा है, वह पूरी हो सके। राजनीतिज्ञ जब चुनाव के समय तुम्हारे पास आता है तो कैसे हाथ जोड़ कर मुस्कुरा कर खड़ा हो जाता है! इनकी मुस्कुराहट और हाथ जुड़े देख कर बुद्ध और महावीर की विनम्रता भी छोटी मालूम पड़ेगी। एकदम विनम्र हो 135
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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