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ताओ उपनिषद भाग ५
ऊपर से देखने पर बात अजीब लगती है। क्योंकि कोई जबरदस्ती दस आदमी इकट्ठे होकर स्त्री का सतीत्व क्यों नष्ट नहीं कर सकते? लेकिन सतीत्व अगर सच में ही सतीत्व है तो स्त्री के प्राण-पखेरू उड़ जाएंगे, लेकिन बलात्कार नहीं हो सकेगा। सहयोग से ही होगा। सहयोग में ऊपर कितना ही विरोध हो, भीतर गहरी आकांक्षा होगी।
तुम डिगा नहीं सकते, अगर चरित्र की जड़ें स्वभाव में हैं। तुम कैसे किसी को लोभ में डाल सकोगे, अगर भीतर लोभ न बचा हो?
हर आदमी की लोभ की सीमा अलग हो सकती है। कोई तुम्हें पांच रुपया रिश्वत दे तो तुम हो सकता है, कह दो, नहीं लूंगा। क्या समझा है तुमने मुझे? मैं कोई भ्रष्टाचारी नहीं हूं। लेकिन पांच हजार दे तो इतनी आसानी से न कह पाओगे। और अगर पांच लाख दे तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। और अगर पांच करोड़ दे तो तुम्हारे मन में खयाल ही न उठेगा कि यह भ्रष्टाचार है।
इससे क्या फर्क पड़ता है कि पांच रुपए लिए कि पांच करोड़ लिए? यह भेद तो संख्या का है। इससे एक ही बात पता चलती है कि तुम्हारे लोभ की जो सीमा है वह पांच रुपए के बाद शुरू होती है। बस पांच रुपए तक तुम अलोभ में हो। उतना गहरा तुम्हारा चरित्र है। पांच रुपए की गहराई तुम्हारा चरित्र है। पांच करोड़ की गहराई पर तुम्हारा चरित्र नहीं है। वहां तुम डगमगा जाते हो।।
सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन की लड़की के साथ गांव के सम्राट ने अनैतिक संबंध स्थापित कर लिया और वह गर्भवती हो गई। मुल्ला बहुत नाराज हुआ; बहुत चीखा-चिल्लाया। उठाई तलवार और चला गांव के सम्राट की तरफ। आगबबूला हो रहा था, क्रोध से जला जा रहा था। और उसने कहा कि तुमने क्या किया? जीवन से मूल्य चुकाना पड़ेगा। तुमने मुझे समझा क्या है? लेकिन गांव का जो राजा था, उसने कहा, बैठो शांति से, पहले मेरी बात सुनो। क्या मामला क्या है? नसरुद्दीन ने कहा, मेरी लड़की को तुम्हीं ने गर्भ दिया, तुम्हीं ने उसे भ्रष्ट किया; यह मैं बरदाश्त नहीं कर सकता। राजा ने कहा, चिंता मत करो! क्योंकि अगर सच में ही तुम्हारी लड़की गर्भवती है तो पचास हजार रुपया तो मैं तुम्हें दूंगा, ताकि तुम बच्चे को पाल-पोस सको; और पांच लाख रुपए मैंने जमा कर रखे हैं बच्चे के भविष्य के लिए, वे बैंक में हैं। नसरुद्दीन एकदम हलका हो गया। क्रोध खो गया। और उसने कहा कि और अगर इस बार बच्चा पैदा न हुआ, कुछ भूल-चूक हो गई, मुर्दा पैदा हुआ, समय के पहले पैदा हो गया, मर गया, या कुछ हो गया, तो आप एक और अवसर देंगे या नहीं? मैं यही पूछने आया हूं कि मेरी लड़की को एक और अवसर देंगे या नहीं?
सीमा है। कोई तुम्हें कुछ कहे, तुम क्रोधित न होओ, फिर कोई तुम्हें और बड़ी गाली दे तो तुम क्रोधित हो जाओ, तो यह मत समझना कि तुम अक्रोध को उपलब्ध हुए हो। इतना ही समझना कि क्रोध की और तुम्हारे अक्रोध की पर्त की एक व्यवस्था है। एक सीमा तक तुम क्रोधित नहीं होते, वहां तक तुम्हारा आचरण है। उसके भीतर क्रोध उबल रहा है, वही तुम्हारी असली स्थिति है। जब तक तुम डिगाने के बाहर न हो जाओ तब तक तुम्हारा चरित्र चमड़ी के जैसा है, ऊपर-ऊपर है। जरा सा कांटा चुभे और उखड़ जाएगा। जिस दिन तुम डिग ही न सको, आसान न रह जाए यह बात, आसान क्या असंभव ही हो जाए।
तो ये दो हैं चरित्र के आयाम। एक आयाम है ऊपर से आरोपित करना। वह व्यवहार-कुशलता है, चरित्र नहीं है। लोगों के साथ व्यवहार करने के लिए तुम्हें थोड़ा शिष्टाचार सीखना पड़ता है। हर जगह, हर स्थिति में क्रोधित होना मंहगा है। तुम चालाक हो। तो तुम जानते हो, कहां क्रोधित होना, कहां नहीं होना, किस पर होना, किस पर नहीं होना। क्रोध में भी तुम मुस्कुराते रहते हो, अगर जिस पर क्रोध करने का मौका आया है वह बली है, शक्तिशाली है। अगर यही बात कमजोर ने कही होती, तुम गर्दन दबा देते। तो यह तुम्हारी चालाकी हो सकती है; चरित्र नहीं है। समाज में जीना है तो कुशलता चाहिए। अकेले तुम नहीं हो; चारों तरफ हजारों लोग हैं। उनके साथ चलना है, उठना
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