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________________ रित्र के दो आयाम हैं। एक तो चरित्र है जो बाहर-बाहर से आरोपित है। ऐसे चरित्र की कोई दृढ़ता नहीं। ऐसा चरित्र कितना ही मजबूत दिखाई पड़े, मजबूती धोखा है। ऐसा चरित्र किसी भी क्षण टूट सकता है। ऐसा चरित्र टूटा ही हुआ है। क्योंकि ऐसे चरित्र के पीछे उसका विरोधी, बड़ी शक्ति से मौजूद है। ऐसा चरित्र एकरस नहीं है। उसका तोड़ने वाला तत्व दबाया गया है। उसका तोड़ने वाला तत्व रूपांतरित नहीं हुआ है। दूसरा चरित्र है जो भीतर से आविर्भूत होता है, और बाहर की तरफ फैलता है। जिसे ऊपर से रंग-रोगन की तरह नहीं पोता जाता, बल्कि जो भीतर की गरिमा की तरह, भीतर की अग्नि की भांति बाहर की तरफ दौड़ता है; जिसका जन्म तुम्हारे अंतःकरण में होता है, जिसका जन्म तुम्हारे हृदय में __ होता है। जिसकी जड़ें स्वभाव में छिपी हैं; जो तुम्हारी आत्मा से आता है। एक है चरित्र जो आरोपित है, और एक है चरित्र जो अंतस से जाग्रत है। जो अंतस से जाग्रत है वह दृढ़ है; उसे तोड़ा नहीं जा सकता। उसके तोड़ने का उपाय ही नहीं बचा। उसके भीतर विरोधी तत्व मौजूद नहीं है। तुम उसे डिगा भी नहीं सकते। क्योंकि कोई दूसरा थोड़े ही किसी को डिगाता है। जब तुम डिगते हो तब डिगने का कारण तुम्हारे भीतर ही होता है। तुम्हें कोई डिगाता नहीं; तुम डिगने को तैयार होते हो, इसीलिए कोई डिगाता है। ____ एक स्त्री ने एक पुलिस दफ्तर में जाकर कहा कि मेरे साथ बलात्कार किया गया है, और जिसने किया है वह महामूर्ख है। चकित हुआ जो आफीसर ड्यूटी पर था! और उसने कहा, यह तो मैं समझ सकता हूं, बलात्कार की रोज ही घटनाएं घटती हैं, लेकिन दूसरी बात मेरी समझ में नहीं आती कि यह तुझे कैसे पता चला कि वह महामूर्ख था। उस स्त्री ने कहा, निश्चित महामूर्ख था, क्योंकि बलात्कार कैसे करना यह भी मुझे ही बताना पड़ा। कोई तुम्हें डिगाता नहीं। बलात्कार भी कोई नहीं कर सकता है, अगर तुम्हारे भीतर ही स्वर न छिपा हो। बलात्कार में भी तुम्हारे साथ की जरूरत पड़ेगी। अन्यथा बलात्कार भी संभव नहीं है। ___ यह थोड़ा कठिन लगेगा। क्योंकि तुम सोचोगे, बलात्कार तो जबरदस्ती की गई घटना है। लेकिन जबरदस्ती को भी तुम आमंत्रित करते हो। मनसविद कहते हैं कि कुछ स्त्रियां हैं जो बलात्कार को आमंत्रित करती हैं; कुछ स्त्रियां हैं, जब तक उनके ऊपर बलात्कार न हो तब तक उनको तृप्ति नहीं। वे सब तरह का आयोजन करती हैं कि उन पर बलात्कार हो। और बलात्कार में भी सहयोग की तो जरूरत है ही, क्योंकि अगर स्त्री का बिलकुल असहयोग हो तो वह मुर्दे की, लाश की भांति हो जाएगी; उससे बलात्कार नहीं किया जा सकता। अगर उसका पूर्ण असहयोग हो तो ठीक बलात्कार के क्षण में ही शरीर से प्राण अलग हो जाएंगे। भारत के पुराने शास्त्रों में कहा है, सती के साथ बलात्कार नहीं किया जा सकता, सती का सतीत्व भ्रष्ट नहीं किया जा सकता। 133
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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