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संगठन, संप्रदाय, समृद्धि, समझ और सुरक्षा
लेकिन तुम्हें कुछ भी अंदाज नहीं, इसलिए तुम्हारी अपनी मुश्किलें हैं। और बहुत सी बातें तुमसे कही भी नहीं जा सकतीं। अगर मैं शरीर छोड़ता हूं तो मेरे कमरे का टेंपरेचर वही का वही रहना चाहिए। जिस टेंपरेचर में मैंने छोड़ा, उसी टेंपरेचर में मैं शरीर में प्रवेश हो सकता हं, नहीं तो संभव नहीं है।
तो दो ही उपाय हैं। या तो मैं हिमालय की गुफा में चला जाऊं जहां टेंपरेचर बराबर रहता है। इसीलिए हिमालय की गुफा खोजते रहे लोग। लेकिन तब तुम पर इतना काम न कर सकूँगा। अगर मुझे अपने पर ही काम करना हो तो हिमालय की गुफा ठीक है। लेकिन वह काम पूरा हो चुका है। मुझे अपने पर कोई काम नहीं करना है। अगर तुम पर काम करना है तो यहां भीड़ और बाजार और बस्ती में मुझे होना जरूरी है।
तुम्हारी धारणाएं तुम्हारी समझ के ऊपर नहीं जा सकती। तुम्हारा भी कोई कसर नहीं है। लेकिन जब भी तुम्हें यहां कुछ ऐसा मालूम पड़े जो तुम्हारी समझ के पार जा रहा है तो जल्दी निर्णय लेने की कोशिश मत करना; कोशिश करना कि समझ थोड़ी और बढ़ जाए। जैसे-जैसे तुम्हारी समझ बढ़ेगी वैसे-वैसे चीजें तुम्हें साफ होने लगेंगी%B वैसे-वैसे तुम्हें दिखाई पड़ने लगेगा कि क्या प्रयोजन है।
शत्रु से बचने का कोई सवाल नहीं है; कोई कभी किसी को शत्रु से बचा नहीं सकता। उसकी कोई जरूरत भी नहीं है। मित्रों से बचाने का सवाल है। क्योंकि वे ही अपने भावावेश में सारे काम को बाधा डाल दे सकते हैं। तो मुझे निरंतर सख्त होता जाना पड़ेगा। अगर मैं सच में ही तुम्हें इसी जीवन में कहीं पहुंचा देना चाहता हूं तो मुझे और सख्त होता जाना पड़ेगा। वह भी तुम तभी समझ पाओगे जब तुम उस ऊंचाई पर पहुंचोगे। तभी तुम मुझे धन्यवाद दे पाओगे, उसके पहले तुम धन्यवाद भी नहीं दे सकते। तब तक तुम न मालूम कितने तरह की आलोचना करते रहोगे।
और तुम ऐसा मत सोचना कि तुम्हारी आलोचना का मुझे पता नहीं चलता है। तुम्हारी बुद्धि को मैं जानता हूं। इसलिए मुझे पता है कि उस बुद्धि से क्या-क्या सवाल उठ सकते हैं। तुम्हारे बिना कहे मैं जानता हूं कि तुम्हारे सवाल क्या हैं।
निर्णय भर मत लेना। कोई मत मत बनाना। जल्दी मत करना। समझ को थोड़ा बढ़ने दो, थोड़ी ऊंचाई पर आने दो; थोड़ा प्रकाश फैलने दो। तुम्हें सब चीजें साफ दिखाई पड़ने लगेंगी कि क्यों ऐसा है।
लाओत्से कुछ काम नहीं कर सका, क्योंकि झाड़ के नीचे बैठा था। बहुत से ज्ञानी इस संसार से ऐसे ही चले गए हैं बिना काम किए। क्योंकि तुम्हारी मान्यताएं बड़ी अजीब हैं। तुम्हारी मान्यताओं के अनुसार काम ही करना मुश्किल है। तुम अपनी ही मान्यताओं के कारण हजार तरह की हानियां झेलते रहे हो।
एक संन्यासी को मैं अपने बचपन से जानता रहा हूं, परम ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति वे हो गए। तुम में से शायद कभी कोई जबलपुर आता-जाता रहा हो तो शायद कभी उनका देखना भी हुआ हो। जबलपुर में एक परम योगी थे; उनका नाम भी किसी को पता नहीं। लेकिन चूंकि वे अपने हाथ में हमेशा एक मग्गा लिए रहते थे इसलिए उनका नाम मग्गा बाबा था। वे कहीं भी बैठे रहते थे-खुले झाड़ के नीचे, या किसी दुकान के बाहर, छप्पर के नीचे, किसी की दहलान में। और जब भी मैं उनके पास कभी जाता तो उनको हमेशा परेशानी में पाता; और परेशानी यह थी कि उनको लोग छोड़ते ही नहीं थे। रात-दिन लोग बैठे हैं। क्योंकि लोगों को यह खयाल था कि उनके चरण दबाने से बड़े पुण्य का अर्जन होता है और तुम्हारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं!
तुम सोच सकते हो कि उनकी क्या गति कर दी! चौबीस घंटे लोग उनके पैर दबा रहे हैं। न वे सो सकते हैं-उनको मतलब ही नहीं लोगों को उनसे-न वे कोई काम कर सकते हैं। कोई उपाय ही नहीं है। वहां कतार लगी रहती लोगों की, एक ने पांव दबा लिए तो दूसरा कतार लगाए खड़ा है। और रात में, जो लोग दिन भर काम करते हैं-रिक्शेवाले हैं, ड्राइवर हैं, फलां हैं, ढिका हैं-वे सब रात में वहां इकट्ठे हैं। रात में कोई किसी के रिक्शे को काम नहीं है, रिक्शेवाले अपनी कतार लगाए खड़े हैं-मग्गा बाबा का पैर दबा रहे हैं।
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