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ताओ उपनिषद भाग ५
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कोई उपाय न सोच कर — शंकर को तो चिंता न थी, शंकर ने कहा कि ठीक । विवाद हुआ। और मंडन मिश्र की पत्नी ने जितना निष्पक्ष होकर निर्णय दिया, बड़ा कठिन है। उसने मंडन मिश्र को पराजित घोषित किया। लेकिन एक शर्त लगा दी, और शर्त बड़ी मुश्किल की हो गई। उसने कहा कि ये तो मंडन तो हार गए, लेकिन यह हार आधी है, क्योंकि अभी पत्नी...। और शंकर से कहा, यह तो आप भी मानेंगे कि पत्नी अर्धांग है; तो अब मुझे भी हराना पड़ेगा आपको; तभी पूरी जीत समझना; नहीं तो आधी जीत है।
शंकर इसके लिए तैयार भी न थे। यह कभी सोचा भी न था कि यह दांव-पेंच हो सकता है इसमें। विवाद के लिए तैयार होना पड़ा। और मंडन मिश्र की पत्नी ने बड़ी कुशलता की; उसने ब्रह्म और माया, ये सब बातें ही नहीं पूछीं; उसने तो काम - ऊर्जा और कामवासना के संबंध में सवाल उठाए।
शंकर ब्रह्मचारी, मुश्किल में पड़ गए। उन्होंने कहा कि तुम ऐसे सवाल उठा रही हो जिनका मुझे अनुभव नहीं है । तो मंडन मिश्र की पत्नी ने कहा, तुम समय चाहो तो समय ले लो। अनुभव करके आ जाओ ।
छह महीने का समय मांग कर शंकर किसी तरह विदा हुए। बड़ी मुश्किल में पड़ गए कि क्या किया जाए ! तो छह महीने तक शंकर ने अपनी देह छोड़ दी और उनकी लाश पर छह महीने तक सतत उनके बारह शिष्य पहरा देते रहे। चौबीस घंटे पहरा देना पड़ा। क्योंकि शंकर एक दूसरे आदमी के शरीर में प्रविष्ट हुए जो कि गृहस्थ था - जो अभी-अभी मरा था- एक राजा । उसके शरीर में प्रविष्ट हो गए। उसकी पत्नी के साथ काम के सारे रहस्यों का अनुभव करके वापस अपनी देह में लौटे। वह सतत पहरा था, कि उसमें एक क्षण भी पहरे में चूक हो जाती तो वह देह अस्तव्यस्त हो जाती, वापस लौटना मुश्किल हो जाता।
बहुत क्षणों में मैं देह के बाहर हूं। अब मैंने जितने लोगों को दीक्षा दी है, जितने लोगों को संन्यास दिया है, उन पर बहुत तरह के काम मुझे करने हैं। कोई हजारों मील दूर है और उसे जरूरत है; तो मैं इस शरीर के बाहर हूं। और मेरे कमरे में उस समय अगर कोई भी घुस जाए तो मेरा लौटना मुश्किल है। अगर मेरे शरीर को कोई हिला दे, कोई पैर ही दाबने लगे, तो फिर मेरे लौटने का कोई उपाय नहीं है।
इन सारी बातों का तुम्हें कोई खयाल नहीं है। इसलिए तुम अपनी बुद्धि से जितना सोच सकते हो, सोच लेते हो। तुम सोचते हो कि इतने पहरेदार यहां खड़े हैं; इसकी क्या जरूरत? तुम बड़े तर्क अपने मन में उठा लेते हो ।
ये पहरेदार अभी कम हैं। जैसा काम मैं कर रहा हूं, उसके लिए और भी व्यवस्था की जरूरत है। क्योंकि अभी इनको भी पार करके लोग पहुंच जाते हैं। दो महीने पहले ही यहां मीटिंग पूरी हुई, दो महिलाएं पीछे की गैलरी में पहुंच गईं। मैं अंदर कमरे में पहुंचा और वे दोनों वहां पीछे से दरवाजा खटखटा रही हैं। वे सब प्रेमी हैं, भाव से भरे हुए लोग हैं! यह जो पहरा है, यह कोई शत्रुओं से बचाने के लिए नहीं है; यह तुमसे ही बचाने के लिए है और तुम्हारे ही काम के लिए है। और तुम अपने भावावेश में कुछ कर सकते हो। लेकिन तुम्हारा भावावेश सवाल नहीं है; तुम्हारा भावावेश बिलकुल ठीक है। लेकिन तुम कुछ कर सकते हो जो तुम्हारे लिए ही अंततः घातक हो जाए।
मुझे लोग पूछते हैं कि आपसे मिलने-जुलने में इतनी अड़चन क्यों है ? साधु-संतों से मिलने-जुलने में कोई
अड़चन नहीं होती।
मैं भी जानता हूं। मैं भी झाड़ के नीचे बैठ सकता हूं। पर तब मैं सिर्फ तुम्हारी पूजा ले सकता हूं; तुम्हारे लिए कुछ कर नहीं सकता। सो तुम्हारे साधु-संत तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं। मगर तुम बड़े प्रसन्न हो, क्योंकि जब चाहो तब तुम जाकर मिल सकते हो। लेकिन काम असंभव है।
तुम्हारे लिए कुछ करना हो मुझे तो मैं झाड़ के नीचे नहीं हो सकता। तुम्हारी बुद्धि से तुम सोचते हो कि क्यों मैं एयरकंडीशंड कमरे में हूं ? साधु-संत को एयरकंडीशंड कमरे की क्या जरूरत ?