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________________ संगठन, संप्रदाय, समृद्धि, समझ और सुरक्षा समझ को पहले समझ लो कि समझ क्या है। जब समग्र की है तभी हम उसे समझ कहते हैं। तुम बुद्धि की समझ को समझ मत मानना। वह काफी नहीं है। क्योंकि तुम बुद्धि से बहुत बड़े हो। इसलिए तो अनेक बार तुमने तय कर लिया कि अब क्रोध न करेंगे, समझ कर तय कर लिया कि अब क्रोध न करेंगे। फिर टूट जाता है दूसरे दिन। घड़ी भर बाद टूट सकता है। इधर तुम तय किए बैठे थे कि क्रोध न करेंगे, और कोई आ गया और उसने गाली दे दी, तुम्हें याद ही नहीं रहता कि हमने क्या तय किया था। उस क्षण में सब भूल जाता है। फिर पछताते हो; फिर कसम खाते हो। यही तो तुम कर रहे हो-करो, पछताओ, कसम खाओ। फिर कसम टूट जाती है, फिर पछताते हो। इसी तरह तो तुम दीन होते गए हो। बुद्धि बहुत छोटी है। और बुद्धि जो तय करती है, वह तुम्हारे प्राणों तक पहुंचता ही नहीं। यह ऐसा ही है कि घर का मालिक तो भीतर बैठा है; द्वार पर पहरेदार बैठा है; और तुम पहरेदार से मिल कर लौट आते हो। पहरेदार कहता है, ठीक, चलो मकान तुम्हें बेच दिया। और घर के मालिक को पता ही नहीं है। तुम्हारी बुद्धि पहरेदार से ज्यादा नहीं है। वह राडार है। वह तुम्हारे बाहर की जांच-परख के लिए है। मालिक तो भीतर बैठा है। बुद्धि कोई निर्णय ले कैसे सकती है मालिक से पूछे बिना? मालिक निर्णय लेता है। बुद्धि क्या निर्णय लेगी? इसीलिए तो बुद्धि के निर्णय रोज टूटते हैं; छोटे-छोटे निर्णय टूट जाते हैं। एक आदमी सिगरेट पीता है; वह कसम खाता है। एक तो सिगरेट पीने के लिए कसम खाना ही मूढ़ता है। इतनी क्षुद्र बात के लिए व्रत लेना ही मूढ़ता है। व्रत बताता है कि तुम हद दर्जे के नासमझ हो। धुआं निकालते हो बाहर-भीतर, कुछ खास कर भी नहीं रहे हो; इतना कुछ मूल्य का भी नहीं है। और इसके लिए तुम्हें कसम लेनी पड़ती है, और वह भी टूट जाती है। तुमसे तो मुल्ला नसरुद्दीन ज्यादा होशियार है। वह मुझसे कह रहा था कि मैंने सब पढ़ा। धूम्रपान कैसा बुरा है, कैसा घातक है, कैसे अस्थमा पैदा कर सकता है, कैंसर आ सकता है; सब पढ़ डाला। फिर मैंने निर्णय कर लिया। मैंने पूछा, क्या निर्णय किया-धूम्रपान छोड़ने का? उसने कहा कि नहीं, पढ़ना छोड़ दिया। पक्का कर लिया, अब पढ़ना ही नहीं। वह तुमसे ज्यादा समझदार है। कम से कम पछताएगा नहीं। एक मेरे मित्र हैं; दिमाग थोड़ा खराब है। अक्सर पागल समझदारों से ज्यादा समझदार साबित होते हैं। जैन हैं। तीर्थयात्रा को गए। वहां जैन मुनि कोई ठहरे थे उनके; उनको नमस्कार करने गए। तो जैसा जैन मुनि कहते हैं कि कोई नियम ले लो, कोई व्रत ले लो; तीर्थयात्रा में आए हो तो कुछ करके जाओ। तो उन्होंने कहा, अच्छी बात, ले लिया व्रत। तो मुनि ने पूछा, क्या व्रत लिया? उन्होंने कहा, अब तक धूम्रपान नहीं करता था, अब से करूंगा। पागल हैं। लेकिन जब वे मेरे पास आए तो मैंने पूछा, तुमने ऐसा क्यों किया? तो उन्होंने कहा कि इसमें कम से कम पछताने का मौका नहीं आएगा। कुछ छोड़ो; छूटता नहीं है। तो उसमें पछतावा होता है, और व्रत टूट जाता है। यह कम से कम टूटेगा नहीं, इतना पक्का है। पीते रहेंगे मरते दम तक। इतना तो रहेगा कि एक व्रत पूरा किया। तुम्हारे व्रत टूटते हैं, क्योंकि बुद्धि से तुम सोचते हो। व्रत लेती ही बुद्धि है, और बिना जाने कि बुद्धि केवल पहरेदार है, घर का मालिक नहीं है। मालिक से पूछे बिना तुम क्या कर रहे हो? मेरी सुन कर अगर तुमने समझा कि समझ आ गई तो तुम गलती में पड़ोगे। मुझे सुन कर समझ आती होती तो समझ बड़ी सस्ती चीज है। शास्त्र को पढ़ कर आती, बड़ी सस्ती चीज है। समझ तो जीवन को जीने से आएगी। मैं तुमसे नहीं कहता कि क्रोध बुरा है। मैं तुमसे इतना ही कहता हूं कि क्रोध को परखो, जानो, पहचानो। जल्दी क्या है? क्रोध करो। क्रोध की पीड़ा झेलो। पछताओ। क्रोध को जीओ। क्रोध के अंग-अंग जानो। क्रोध को सब दिशाओं से पहचानो। तब समझ का उदय होगा। वह समझ मुझे सुन कर न आएगी। वह तो तुम क्रोध के साथ .. 125
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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