SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ सत्संग में रहोगे, तभी आएगी। हां, होशपूर्वक रहना, उतना मैं तुमसे कहता हूं। नहीं तो क्रोध के साथ तो तुम जन्मों से रह रहे हो, समझ नहीं आई। क्योंकि जब तुम क्रोध करते हो, तुम समझ का हिसाब ही छोड़ देते हो। तुम बेहोशी में क्रोध करते हो। उतना ही मैं तुमसे कहता हूं मत करो। क्रोध जब आए तो तुम होश के धागे को सम्हाले रहो। पहले कठिन होगा। धीरे-धीरे सुगम हो जाएगा। धीरे-धीरे तुम क्रोध भी करोगे और भीतर तुम जानते भी रहोगे कि क्या हो रहा है। इस जानने वाले तत्व का ही नाम तुम्हारा मालिक है। यह साक्षी ही भीतर बैठा मालिक है। इस साक्षी को जगाओ। क्रोध को छोड़ने की फिक्र मत करो, साक्षी को जगाओ। सो रहा है भीतर; दरवाजे खोलो, उसे उठाओ, और उसे और क्रोध को सामने-आमने कर दो; बस। तब तुम पाओगे एक दिन, कोई सांप इतना जहरीला नहीं जितना क्रोध है। वस्तुतः सत्तानबे प्रतिशत सांप में तो कोई जहर होता ही नहीं; केवल तीन प्रतिशत सांपों में जहर होता है। हालांकि लोग मर जाते हैं उन सांपों के काटे हुए भी जिनमें जहर नहीं होता। वे अपने खयाल से ही मर जाते हैं; कोई उन्हें मारता-वारता नहीं। सांप ने काट लिया, बस इसलिए मर जाते हैं। यह बड़ा चमत्कार है। चिकित्सा-शास्त्र के सामने बड़ा सवाल है। क्योंकि सांप तो बहुत कम हैं जिनके जहर से कोई मरता है-तीन प्रतिशत। आम तौर से वे तुम्हें काटते भी नहीं। क्योंकि उतना जहरीला सांप बहुत छिप कर रहता है। जो सांप तुम आस-पास घूमते देखते हो ये कोई जहरीले नहीं हैं। इनके काटने में कोई मामला ही नहीं है। लेकिन मर तुम जाओगे अगर सांप काट ले। यह मन का ही भाव है कि सांप ने काट लिया, अब मरे! अब कैसे बच सकते हैं। यह सम्मोहन है। सूफियों की एक कहानी है कि एक फकीर बैठा था एक नगर के द्वार पर और उसने एक बड़ी भयंकर काली छाया गुजरते देखी। उसने कहा कि रुक, तू कौन है? सूफी फकीर था, तो उसने कहा फकीर का जवाब दे देना उचित। उसने कहा, मैं मौत हूं, इस नगर में जा रही हूं। इस नगर में मुझे पांच सौ आदमी मारने हैं। फकीर ने कहा, ठीक। कुछ दिनों बाद मौत वापस निकली तो फकीर ने रोका, कहा कि रुक, तूने धोखा दिया। कहा था पांच सौ मारने हैं, पांच हजार मार डाले। उसने कहा, बाकी साढ़े चार हजार अपने आप मरे हैं; मैंने तो पांच सौ ही मारे। लेकिन हवा. फैल गई मौत की। बाकी साढ़े चार हजार का जिम्मा तुम मुझे मत देना। बहुत से लोग अस्पतालों में हवा के कारण पड़े हैं। बहुत से लोग इसलिए मर जाते हैं कि और लोग मर रहे हैं। प्लेग फैल गई; हैजा फैल गया। संक्रामक हो जाता है रोग; शरीर में कम, मन में ज्यादा। सांप ने काट लिया, मर गए। कैसे बच सकते हैं जब सांप ने काट लिया? सांप इतना जहरीला नहीं है। सांप का काटा बच जाता है; क्रोध का काटा नहीं बचता, लोभ का काटा नहीं बचता, मोह का काटा नहीं बचता, काम का काटा नहीं बचता। तुम कितनी बार मर चुके हो? सांप ने कब काटा था? तुम इतनी बार क्यों मरे? किसी ने तुम्हें जहर नहीं दिया; जहर तुम अपने को ही देते रहे। लोभ, क्रोध, माया, मोह, सब जहर हैं। लेकिन धीरे-धीरे तुम जहर पीते रहे और उससे ही मरते रहे। अगर तुम चाहते हो अमृत को पा लेना, तो जागो, इन जहरों को देखो; साक्षी को उठाओ। निर्णय की कोई जरूरत न आएगी। करने को कुछ है ही नहीं, सिर्फ साक्षी देख ले और पहचान ले भरपूर आंख-जहर कहां है? आग कहां है? बात खतम हो गई। आगे सवाल नहीं उठता। तुम छलांग लगा कर बाहर हो जाते हो। समझ क्रांति है। समझ ही एकमात्र क्रांति है। शेष सब क्रांतियां ऊपर-ऊपर हैं, धोखे की हैं। और तुम उन पर भरोसा मत करना। उन पर भरोसे के कारण तुम बहुत भटके हो। अगर और भटकना चाहते हो तो बात अलग। अन्यथा बुद्धि की बातों पर भरोसा मत करना। बुद्धि पहरेदार है। मालिक को जगाओ। मालिक से पूछो कि तेरी मर्जी क्या है। और मालिक की मर्जी तत्क्षण कृत्य बन जाती है। 126
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy