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________________ पांचवां प्रश्न : लाओत्से कहते हैं, कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, समझ काफी हैं। समझाएं कि समझना होना कब और कैसे बन पाता है? संगठन, संप्रदाय, समृद्धि, समझ और सुरक्षा कब और कैसे का सवाल ही नहीं; समझना होना है। . लेकिन तुम्हें सवाल उठता है। तुम्हें सवाल इसलिए उठता है कि तुम सोचते हो कि समझना एक चीज है और होना दूसरी चीज है। तुम सोचते हो, समझना शुरुआत है यात्रा का, प्रारंभ है, और होना अंत है। नहीं, समझने होने में रत्ती भर का भी फासला नहीं, इंच भर का भी फासला नहीं। हां, तुम्हें ऐसा अनुभव में आता है कि समझ लेते हो तुम कई चीजें, फिर भी हो तो नहीं पाते। तो उसका एक ही अर्थ हुआ कि तुम समझ ही न पाए। बौद्धिक समझ को समझ नहीं कहा जाता। मैं कुछ बोल रहा हूं, तुम समझ रहे हो; क्योंकि तुम भाषा समझते हो। हो सकता है, मुझसे बेहतर समझते होओ। तुम भाषा का गणित समझते हो, भाषा का तर्क समझते हो। तुम पढ़े-लिखे हो, बुद्धिमान हो, विचार कर सकते हो; सब तुम्हें समझ में आ जाता है। मैं कोई कठिन बातें तो नहीं बोल रहा हूं; कोई पहेलियां तो नहीं बूझ रहा हूं। सीधी-साधी बात है; बिलकुल समझ में आ जाती है। तब सवाल उठता है, अब करें कैसे? जैसे ही सवाल उठता है करें कैसे, खबर आ जाती है कि तुम समझे नहीं। बुद्धि से समझे, विचार से समझे, लेकिन आत्मसात न हुआ, तुम्हारे हृदय तक न पहुंचा; खोपड़ी में अटक गया। वहां कोई समझ नहीं है। वहां समझ का धोखा है। हृदय में उतर जाए। ऐसा समझो कि घर में आग लग गई और मैंने तुमसे कहा कि घर में आग लगी है। क्या तुम मुझसे कहोगे कि समझ गए, अब बाहर कैसे निकलें? समझ गए, यह तो शुरुआत हुई, अब धीरे-धीरे कोशिश करेंगे बाहर निकलने की; तो बाहर निकलने का उपाय बताइए। क्या तुम ऐसा कहोगे? जैसे ही तुम समझे कि घर में आग लगी है, तुम मुझे तो पीछे ही छोड़ दोगे, तुम छलांग लगा कर पहले बाहर निकल जाओगे। घर में आग लगी हो तो जैसी समझ आती है वह समझ बुद्धि की नहीं है। तुम्हारे तन-प्राण से, तुम्हारे रोएं-रोएं से, तुम्हारी श्वास-श्वास से समझ उठती है; तुम्हारे पूरे अस्तित्व से समझ आती है; तुम अपनी समग्रता में समझते हो। खोपड़ी का सवाल नहीं है। खोपड़ी को मौका भी नहीं दिया जा सकता सोचने का, क्योंकि समय है नहीं। और खोपड़ी बड़ा समय लेती है। तो जहां भी कहीं तत्क्षण कुछ करना हो वहां तुम बुद्धि को सोचने का मौका ही नहीं देते; वहां तुम बुद्धि को हटा देते हो और कुछ कर गुजरते हो; खिड़की से कूद कर बाहर हो जाते हो। . सांप रास्ते पर आ गया हो, दिखाई पड़ते ही तुम छलांग लगा लेते हो। इतना भी शब्द भीतर नहीं बनता कि सांप आ रहा है, कि सांप खतरनाक है, कि अनुभव कहता है, सांप से उछल कर बच जाना चाहिए। इतना भी तर्क नहीं चलता, इतना भी विचार नहीं चलता। विचार को मौका ही नहीं मिलता। तुम अपनी समग्रता से, इधर सांप दिखा नहीं कि उधर तुम कूदे नहीं। इन दोनों के बीच फासला नहीं होता। हां, कूदने के बाद फिर तुम बैठ कर वृक्ष के नीचे आराम से सोच सकते हो सांप के संबंध में, दर्शन-शास्त्र खड़ा कर सकते हो। लेकिन जब सांप सामने था तब तुम छलांग लगा कर कूद गए। न तुमने गुरु से पूछा, गुरु कोई इतना आसानी से मिलेगा भी नहीं वहां। न तुम शास्त्र को अध्ययन करने गए, क्योंकि कहां अध्ययन करने जाओगे, सांप सामने खड़ा है! न तुमने अपनी स्मृति से पूछा, क्योंकि हो सकता है पहले कभी सांप का मुकाबला ही न हुआ हो। तो स्मृति क्या कहेगी कि क्या करो। नहीं, अब तुमने किसी से न पूछा; अब तो तुम्हारी समग्रता ने एक कृत्य किया। समझ समग्रता का कृत्य है।। जब मैं कहता हूं, तुम्हारे जीवन में आग लगी है, तो तुम बद्धि से समझते हो। जब मैं कहता हं, तम्हारे घर में 123
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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