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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ ज्यादा मूल्यवान मालूम पड़ता है ध्यान करने की बजाय। तुम उपद्रव करो कुछ, तुम कुछ मिटाओ तो तुम सुर्खियों में आ जाओगे अखबार की। तुम कुछ बनाओ; कौन पूछता है? तुम्हारे होने का कोई मूल्य नहीं है। तुम कुछ व्याघात पैदा करो, तुम चारों तरफ कुछ हलचल पैदा करो; तब तुम पूछे जाते हो। अगर तुम्हें इतिहास में रहना है तो तुम्हें आत्मा खोनी पड़ेगी। क्योंकि आत्मा की कोई पूछ इतिहास में नहीं है। अगर तुम्हें इतिहास में रहना है तो तुम्हें ताओ खोना पड़ेगा। क्योंकि ताओ का कोई उल्लेख इतिहास में नहीं है। अगर तुम्हें इतिहास में रहना है तो तुम्हें दुख और पीड़ा और अशांति में और नरक में जीना पड़ेगा। क्योंकि नरक का ही केवल इतिहास लिखा जाता है। स्वर्ग का क्या इतिहास? स्वर्ग में कहीं अखबार छपते हैं? नरक में छपते हैं। वहां कुछ घटता ही नहीं; घटना ही नहीं घटती तो अखबार क्या छपेगा? नहीं, अगर दुनिया शांत और आनंदित हो तो इतिहास धीरे-धीरे खो जाएगा। अगर लोग सिर्फ जीएं, और लोग सिर्फ प्रसन्न हों अपने न होने में, और कोई दौड़ न हो किसी से आगे निकलने की, लोग अपनी-अपनी जगह राजी हों- इतिहास खो जाएगा। इसीलिए तो पूरब के देशों के पास इतिहास नहीं है। हमने लिखना न चाहा। हमने लिखने योग्य न माना। क्योंकि जो भी लिखने योग्य लगना था वह कचरा था। जो लिखने योग्य था उसकी लहर ही न बनती थी, वह लिखा नहीं जा सकता था। इसलिए हमने पुराण लिखे; इतिहास नहीं लिखा। पुराण बड़ी अलग बात है। पुराण सार की बात है। पुराण का मतलब यह है कि हम एक बुद्ध के संबंध में नहीं लिखे, दूसरे बुद्ध के संबंध में नहीं लिखे, हमने बुद्धत्व के संबंध में लिखा। एक कहानी गढ़ ली जिसमें बुद्धत्व की कथा समा जाए, सार आ जाए। इसीलिए तो पश्चिम के लोग कहते हैं कि तुम्हारे बुद्ध संदिग्ध हैं-हुए या नहीं। तुम्हारे तीर्थंकर संदिग्ध हैं। इनका इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है। किस पत्थर पर इनका नाम लिखा है ? न, हमने अलग-अलग तीर्थंकरों की फिक्र न की। ___ तुम जाओ जैन मंदिर में, चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमा हैं। तुम कुछ फर्क न कर पाओगे कि कौन कौन है। शक्लें एक सी, बैठे एक से पालथी मारे, एक ही ध्यान में लीन। यह भी हमें पक्का पता नहीं कि इनकी शक्लें तो निश्चित अलग-अलग रही होंगी। चौबीस आदमी थे, शक्ल अलग थी, एक ही शक्ल के कैसे हो सकते हैं? लेकिन अब बिलकुल एक शक्ल के हैं; कोई फर्क नहीं है। भेद करने के लिए जैनियों को हर प्रतिमा के नीचे एक चिह्न बनाना पड़ता है। तो उन्होंने चिह्न बना दिए हैं। किसी के नीचे सिंह, किसी के नीचे कमल, किसी के नीचे सांप; वे चिह्न बनाने पड़े हैं, ताकि पता चले कि यह प्रतिमा है किसकी। नहीं तो वे चौबीस ही एक जैसे हैं। पश्चिम कहता है कि ये गैर-ऐतिहासिक हैं, क्योंकि चौबीस आदमी एक जैसी शक्ल के, एक जैसी ऊंचाई के, एक जैसे शरीर के कैसे हो सकते हैं? और अनंत काल में? यह बात कथा मालूम होती है। यह है भी कथा। हमने फिक्र नहीं की एक-एक तीर्थंकर की। क्योंकि तीर्थंकर का क्या प्रयोजन है? एक-एक का क्या अर्थ है? वह भीतर जो उसने पाया है वह इतना एक जैसा है, वह इतना सारभूत है, वह कथा इतनी एक जैसी है कि हमने एक ही कथा गढ़ ली और एक ही प्रतिमा बना ली। हमने सब बुद्धों को एक घटना में समा लिया, और हमने सब अवतारों को एक अवतार में समा लिया। सार को हमने सिद्धांत बना लिया। इतिहास की चिंता छोड़ दी, क्योंकि इतिहास घटनाओं की फिक्र करता है। हमने उसकी फिक्र की जो भीतर है; जो घटता नहीं, जो है ही; जो कोई घटना नहीं है, जो अस्तित्व है। इसलिए पुराण हमने रचा। पुराण बड़ी अनूठी बात है। पुराण उनका है जिनकी कोई लकीर पार्थिव जगत में नहीं छूटती; हमने उनकी सार-सुगंध इकट्ठी कर ली। अब हर गुलाब की क्या कथा लिखनी? हमने गुलाब का इत्र निचोड़ लिया। वह पुराण है। क्योंकि हर गुलाब की कथा एक है। बार-बार दुहराने का सार भी क्या है? गैर-जरूरी 108
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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