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________________ धर्म का मुख्य पथ सरल है वह पहली भूल यह है कि तुमने जीवन में साधारण होने का राजीपन न दिखाया। तुम असाधारण होना चाहते हो। और आदमी का मन बड़ा अजीब है। तुम साधुता से असाधारण होने की कोशिश करो तो भी तुम भ्रष्टाचारी हो। कोई नहीं पहचान पाएगा तुम्हारे भ्रष्टाचार को। लोग कहेंगे कि इस आदमी के पास तो कुछ भी नहीं है, नंगा खड़ा है; इसको कैसे भ्रष्टाचारी कहते हो? यह तो कोई राजधानी में भी नहीं गया, राजनीति में भी नहीं है, धन-दौलत भी इकट्ठी नहीं की, कोई लाइसेंस का घोटाला भी नहीं करता, कुछ भी नहीं है; यह तो बेचारा अपना नंगा खड़ा है; भगवान का भजन करता है। यह भी भ्रष्टाचारी है, अगर यह विशिष्ट होना चाहता है। अगर यह भगवान का भजन भी बीच बाजार में करता है ताकि लोग सुन लें, अगर यह भगवान का भजन भी जोर-जोर से करने लगता है अगर लोग पास हों तो यह भ्रष्टाचारी है। क्योंकि मूल स्रोत भ्रष्टाचार का एक ही है और वह यह, कि तुम असाधारण होने की कोशिश करो। लाओत्से कहता है कि इस जगत में साधारण हो जाना ही कला है। और जो साधारण हो गया-सब अर्थों में साधारण—जिसका कोई दावा ही नहीं है, जो किसी पद, इस जगत में या परलोक में, कोई फिक्र नहीं कर रहा है, जिसने व्यर्थता समझ ली इस बात की, जो जीवन की बहुत छोटी चीजों से प्रसन्न है, कि रोटी मिल गई, कि पानी मिल गया, कि श्वास मिल गई, कि प्रेम मिला, कि प्रार्थना मिल गई, बस काफी है; जो इतने ना-कुछ से राजी है, वही राजी हो पाएगा, और उसके जीवन में ही असाधारण का जन्म होता है। जो साधारण होने को राजी है, उससे ज्यादा असाधारण पुरुष कोई भी नहीं। नहीं तो भ्रष्टाचार है। और जब तक हम भ्रष्टाचार के इस मूल को न समझें तब तक हम ऊपर-ऊपर सब कुछ करते रहें, कुछ भी न होगा। जो पद में होते हैं वे भ्रष्टाचारी मालूम होते हैं। जब वे पद में नहीं थे तब वे भी क्रांतिकारी थे। फिर दूसरे खड़े हो जाते हैं जो पद पर नहीं हैं, वे क्रांति की चर्चा करते हैं। वे भ्रष्टाचार के विरोध में हैं। लेकिन उनको पद दो, वे भी भ्रष्टाचारी हो जाते हैं। अब तक सभी क्रांतियां असफल हो गई हैं। आदमी की आशा अदभुत है! कोई क्रांति कभी सफल नहीं हुई, फिर भी आदमी सोचता है क्रांति से सब ठीक हो जाएगा। क्रांति करने वाले भी छिपे भ्रष्टाचारी हैं जो अपने समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे आज भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, क्योंकि जनता भ्रष्टाचार से परेशान है, लोग पीड़ित हैं, जनता का साथ मिलेगा। कल वे सत्ता में पहुंचे कि सब वही का वही हो जाएगा। क्योंकि उनको भी मौलिक भूल का कोई पता नहीं है। मौलिक भूल विशिष्ट होने की भूल है। फिर विशिष्ट होने के हजार ढंग हैं। तुम विशिष्ट हो सकते हो धन से, पद से, ज्ञान से, त्याग से, लेकिन विशिष्ट होना। - लाओत्से कहता है, एक बात ही भ्रष्टाचार है स्वभाव का। जहां तुमने विशिष्ट होना चाहा, तुम भ्रष्ट हुए, और तुमने भ्रष्टाचार की हवा पैदा की। साधारण हो रहो! भूख लगे, खा लो; प्यास लगे, पी लो; प्रार्थना लगे, कर लो। किसी को दिखाना क्या? किसी को बताना क्या? ऐसे जीओ जैसे तुम हो ही नहीं। चुपचाप जी लो कि तुम्हारी कोई रेखा भी न छूटे। __ लेकिन मन कहता है, इतिहास में नाम रह जाए। अगर इतिहास में नाम रखना है तो तुम फिर भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो सकते। क्योंकि इतिहास तो सिर्फ भ्रष्टाचारियों का है। इतिहास में तो जो जितना भ्रष्ट है उतना ही ज्यादा नाम आएगा। क्योंकि वह उतने ही उपद्रव करता है, उतनी ही घटनाएं पैदा होती हैं। अच्छे आदमी का कोई इतिहास होता है? वह कुछ करता ही नहीं जिससे इतिहास बने। या वह जो कुछ भी करता है वह अखबारों में छापने योग्य नहीं होता, सुर्खियां उससे नहीं बनतीं। तुम ध्यान कर रहे हो। कोई अखबार उसको पहले पेज पर छापेगा कि फला-फलां सज्जन ध्यान में बैठे हैं? कोई नहीं छापेगा। तुम जाओ और किसी की छाती में छुरा भोंक दो; तुम सुर्जी में आ गए। दुनिया में छुरा भोंकना 107
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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