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________________ धर्म का मुख्य पथ सरल है ___ थोड़ा सोचो। लोग सोने को इकट्ठा करने के पीछे पागल हैं। न खा सकते हो सोने को, न पी सकते हो, न ओढ़ सकते हो। और जीवन का बहुमूल्य अवसर उसे इकट्ठा करने में गंवाया जा रहा है। रोटी जरूरी है, मगर लोग रोटी चाहे न खाएं, सोना जरूर चाहिए। भूखे सो जाएं, लेकिन सोना जरूर चाहिए। क्या कारण होगा कि लोग अपनी वास्तविक जरूरतों को छोड़ कर भी गैर-जरूरी जरूरतों को भरने की पहले कोशिश करते हैं? क्या कारण है? क्योंकि जरूरतें तो साधारण हैं; उनको तुम पूरा भी कर लो तो भी तुम असाधारण की तरह दिखाई न पड़ोगे। भूख तुमने भर भी ली तो जानवर भी भर लेते हैं, पशु-पक्षी भी भर लेते हैं; उसमें क्या खूबी? सोना अगर तुमने ढेर लगा लिया तो कोई पशु-पक्षी ऐसा नहीं करता। पशु-पक्षी इतने नासमझ नहीं हैं। और सोना न्यून है, और अहंकार न्यून से ही भरता है। जो जितना कम है उतना मूल्यवान है। बड़ी हैरानी की बात है! उसकी उपयोगिता के कारण कोई चीज मूल्यवान नहीं है; उसकी कमी के कारण। सोने का क्या उपयोग है? एक ही उपयोग है कि वह न्यून है; इतना कम है कि सभी लोग उसको नहीं पा सकते। कुछ थोड़े से लोग ही ढेर लगा सकते हैं। उस ढेर के कारण वे विशिष्ट हो जाएंगे, खास हो जाएंगे, असाधारण हो जाएंगे। सोना न्यून है, इसलिए उसकी कीमत है। व्हाइट गोल्ड और भी कम है तो उसकी दुगुनी कीमत है। फिर प्लेटिनम और भी कम है तो उसकी और भी ज्यादा कीमत है। जो चीज जितनी न्यून है, उसके आधार पर उसका मूल्य हो रहा है। इसकी कोई चिंता ही नहीं कि उसका कोई उपयोग है? अहंकार को उपयोग से मतलब ही नहीं है। अहंकार को सिर्फ एक घोषणा करनी है जगत में कि मैं असाधारण हूं। पेट भूखा रह जाए, कंठ प्यासा हो, कोई फिक्र नहीं; शरीर गहनों से सजा हो। जीवन की गहरी से गहरी जरूरतें खाली रह जाएं, प्रेम से तुम वंचित रह जाओ, कोई फिक्र नहीं; हीरे-जवाहरात चाहिए। अन्यथा जीवन की तो जरूरतें बड़ी थोड़ी हैं। अगर अहंकार बीच में न आए तो पृथ्वी पर बड़ा संतोष हो। असंतोष का स्वर अहंकार से आता है। क्या है जरूरत तुम्हारी? कि पेट भरा हो! जीसस अपने शिष्यों से कहे हैं। कई बार लगता है कि जीसस इतनी सी छोटी सी बात क्यों प्रार्थना में जोड़े हैं! जीसस ने अपने शिष्यों को कहा है कि तुम यह प्रार्थना रोज करना; उसमें एक पंक्ति है: हे प्रभु, मुझे मेरी रोज की रोटी दे, गिव मी माइ डेली ब्रेड। समझ में नहीं आता कि इसको मांगने की क्या जरूरत है? रोटी! पर जीसस रोटी शब्द को प्रतीक की तरह चुन रहे हैं। वे यह कह रहे हैं कि जीवन की मेरी जो छोटी-छोटी जरूरतें हैं—प्यास है तो पानी चाहिए, भूख है तो रोटी चाहिए, जीवन है, तो प्रेम चाहिए-यह मेरी छोटी सी रोटी है, दि डेली ब्रेड, पानी, रोटी, प्रेम, छप्पर। इतना ही चाहिए जीवन के लिए और जीवन परम महिमा को उपलब्ध हो जाता है, उस कुलीनता को, जिसकी चर्चा लाओत्से करता है कि बाहर कुछ भी न हो, भीतर एक ऐसी संपदा हो जाती है; बाहर फटे कपड़े हों तो भी भीतर का सम्राट जगमगाता है। नहीं, लेकिन दुनिया उलटे रास्ते चलती है। भीतर कुछ भी न हो, भीतर भिखारी हो, भिखारी का पात्र हो, खंडहर आत्मा हो, बाहर चाकचिक्य हो, बाहर सब हो। क्योंकि भीतर की आत्मा तो किसको दिखाई पड़ेगी? बाहर की चीजें लोगों को दिखाई पड़ती हैं। आत्मा को गंवाओ। बदल लो आत्मा को धन-दौलत में, तिजोड़ी भर लो, खुद खाली हो जाओ। लाओत्से कह रहा है, इसलिए लोग स्वभाव से टूट गए हैं। क्योंकि स्वभाव में होने के लिए इतनी तो समझ होनी ही चाहिए कि जो जरूरी है वही जरूरी है; जो गैर-जरूरी है वह जरूरी नहीं है। और जो एक दफा गैर-जरूरी की दौड़ पर निकल गया वह माया में जा रहा है। अब उसका कोई अंत नहीं है। तुम कुछ भी पा लो तो भी बहुत कुछ पाने को शेष रहेगा। वह घड़ी कभी न आएगी जब तुम कह सको कि मैंने सब 105||
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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