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ताओ उपनिषद भाग ५
निकाल लेते हैं; उसके पीछे चलते हैं। लोकमान्य तिलक ने गीता से कर्म निकाल लिया और फिर वे कर्म के पीछे चलने लगे। फिर लोकमान्य के पीछे गांधी और विनोबा की कतार लगी। वे सब फिर कर्म को मान लिए। कृष्ण से किसी को मतलब है? तुम अपनी व्याख्या के पीछे चलते हो। और तुम अपने को समझाते हो कि हम कृष्ण के पीछे चल रहे हैं। धोखा किससे कहें?
तुम मुझे सुनते हो। तुम इस खयाल में मत रहना कि तुम वही सुनते हो जो मैं कहता हूं। उस भ्रांति में पड़ना मत। क्योंकि वह बहुत आसान है। लेकिन तुम वह करोगे न। तुम जो करोगे वह आसान नहीं है, कठिन है। न केवल कठिन है, भ्रांत है, गलत है। लेकिन करोगे तुम वहीं। तुम पहले, मैं जो कहूंगा, उसकी व्याख्या करोगे; व्याख्या . करके तुम उसे अपने अनुकूल बना लोगे; फिर तुम उसके पीछे चलोगे।
पगडंडी का अर्थ है, जो तुम्हारा पीछा करती हो। वह जो विराट पथ है ताओ का वह तुम्हारा पीछा नहीं करेगा; तुम्हें उसमें डूबना होगा। तुम उसे अपने पीछे आने वाली छाया नहीं बना सकते। महावीर ने तो एक ही बात कही, लेकिन दिगंबर एक व्याख्या करता है, श्वेतांबर दूसरी व्याख्या करता है। फिर दिगंबरों में भी छोटे-छोटे पंथ हैं जो अलग-अलग व्याख्या करते हैं। श्वेतांबरों में भी छोटे-छोटे पंथ हैं जो अलग-अलग व्याख्या करते हैं। और अगर तुम गौर से देखो तो हर आदमी का अपना ही पंथ है; वह अपनी व्याख्या करता है। धर्म के अनुसार तुम अपने को निर्मित नहीं करते, तुम धर्म को अपने अनुसार निर्मित करते हो।
और दुनिया में दो ही तरह के लोग हैं। एक जो सत्य के पीछे चलते हैं, और दूसरे वे जो सत्य को अपने पीछे चलाने की कोशिश करते हैं। सुगम मालूम पड़ेगा तुम्हें सत्य को अपने पीछे चलाना। क्योंकि सत्य का दावा भी हो गया और सत्य होने की जो झंझट है उससे भी बच गए। धार्मिक बिना हुए धार्मिक होने का मजा लोग ले रहे हैं।
व्याख्या मत करना। तुम व्याख्या कर भी कैसे सकोगे? सत्य की कोई व्याख्या नहीं हो सकती, सत्य का अनुभव होता है। अनुभव को कोई व्याख्या की जरूरत नहीं। और जब तुम व्याख्या करोगे अपनी अज्ञान की दशा से, तुम जो भी व्याख्या करोगे वह गलत होगी, वह भ्रांत होगी। फिर उसी व्याख्या को मान कर तुम चलते रहोगे। कहीं न पहंचोगे।
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं कि हम आपको दस साल से सुन रहे हैं और आपकी मान कर चलते हैं, लेकिन कहीं पहुंचे नहीं। मैं उनसे कहता हूं, तुम मेरी मान कर कभी चले नहीं। वे मुझसे विवाद करते हैं कि नहीं, हम मान कर चलते हैं। मैं कहता हूं, देखो, अभी भी मैं कह रहा हूं उसको भी तुम नहीं मान रहे! मैं कह रहा हूं कि तुम मेरी मान कर नहीं चले, उसमें भी तुम कह रहे हो कि नहीं, हम मान कर ही चलते हैं। तुम अपनी जिद्द कायम रखते हो।
तुम्हारी जिद्द ही तुम्हारा अहंकार है। तुम अपनी व्याख्या के अनुसार चल रहे हो। अगर पहुंच गए तो तुम कहोगे, अपनी व्याख्या से पहुंचे; अगर न पहुंचे तो गुरु गलत था। तुम्हारा गणित बिलकुल साफ है। अगर पहुंच गए तो तुम अपनी पीठ थपथपाओगे; अगर नहीं पहुंचे तो तुम कहोगे कि तुम्हारे पीछे दस साल से चल रहे हैं और भटक रहे हैं। पहुंच गए तो तुम कहोगे, कैसे कुशल हम! ठीक बिलकुल व्याख्या कर ली और पहुंच गए। तब तुम धन्यवाद देने भी न आओगे।
'मुख्य पथ पर चलना आसान है, तो भी लोग छोटी पगडंडियां पसंद करते हैं।'
छोटी, तुमसे भी छोटी। तुम वही पगडंडी पसंद करोगे जो तुमसे छोटी है। लोग अपने से छोटी चीजें पसंद करते हैं। क्योंकि उन छोटी चीजों के कारण वे बड़े मालूम पड़ते हैं। लोग अपने से छोटे लोगों का संग-साथ करते हैं। क्योंकि उनके बीच वे बड़े मालूम पड़ते हैं। हमेशा लोग अपने से छोटे की तलाश करते हैं। उस छोटे के पास खड़े होकर वे बड़े महिमावान मालूम पड़ने लगते हैं।
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