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धर्म का मुख्य पथ सरल हुँ
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क्योंकि धैर्य के खेत में ही परमात्मा के बीज बोए जा सकते हैं। और जिसका धीरज इतना अनंत है कि जो किसी जल्दी में ही नहीं है, जो कहता है अगर अनंत में होना हो तो ठीक, अगर अनंत काल में होता हो तो भी हम राजी हैं। और तब बड़ी अनूठी घटना घटती है कि जो अनंत काल ठहरने को राजी है वह इसी क्षण भी पहुंच जाता है। क्योंकि यह जो थ है स्वभाव का, यहां पथ और मंजिल अलग-अलग नहीं हैं, मार्ग ही मंजिल है। यहां तुम जहां खड़े हो वहीं परमात्मा भी खड़ा है। फासला जरा भी नहीं है। तुम राजी हुए विश्राम के लिए, तुम राजी हुए तनाव छोड़ने को, तुमने जल्दी की आकांक्षा छोड़ी, तुम्हारे मन ने जल्दी के कारण यहां-वहां भटकना बंद किया, तुम अपने गृह-नीड़ में बैठ गए, जैसे सांझ पक्षी अपने नीड़ में आकर बैठ जाता है ऐसे संसार को छोड़ कर तुम अपने भीतर के नीड़ में आ गए और विश्राम बैठ गए, और तुमने कहा, मुझे कोई जल्दी नहीं है - इसी क्षण भी घटना घट सकती है।
जिस स्कूल में, जिस गुरुकुल में जीसस ने शिक्षा पाई उस गुरुकुल का नाम था इसेनीस। उस परंपरा को मानने वाले लोग इसेनीस कहलाते थे। यह शब्द बड़ा अदभुत है । इस शब्द का अर्थ है : धैर्य रखने वाले, जो धीरज रख सकते हैं। बस यही उनका गुण था। लेकिन जो धीरज रख सकता है उसे सब मिल जाता है। क्योंकि धीरज रखते ही मन की पगडंडियों का जो हमारे मन में प्रलोभन है वह छूट जाता है। मन कहता है, मैं जल्दी करवा दूंगा; हम कहते हैं, जल्दी ही नहीं है। मन कहता है, मैं छोटा रास्ता बता देता हूं; हम कहते हैं, हमें कहीं जाना नहीं है, हम जहां हैं तृप्त हैं, हम जैसे हैं ठीक हैं। उसकी मर्जी ही हमारी मर्जी है। अब हमारा कोई मार्ग नहीं, उसका मार्ग ही हमारा मार्ग है। तब बड़ा सरल है। तब कुछ भी इससे ज्यादा सरल नहीं है।
लेकिन सरलता कठिन हो गई। सरलता इसलिए कठिन हो गई कि सरलता में चुनौती नहीं मालूम होती तुम्हें । सरलता में चुनौती हो भी नहीं सकती। कठिनता में चुनौती होती है। तो तुम ध्यान रखना कि तुम अक्सर कठिन चीजों को चुनते हो। तुम इसीलिए चुनते हो कि वह कठिन है। क्योंकि कठिन लगने से तुम्हें लगता है कि जीतने का कोई उपाय है, जीत कर दिखा देंगे। अहंकार को तृप्ति मिलती है, अहंकार हमेशा कठिन के प्रति आकर्षित होता है। सरल के प्रति अहंकार को क्या आकर्षण ? क्योंकि सरल को कर लिया तो भी तो कर्ता का भाव न जगेगा। कठिन को किया तो कर्ता का भाव जगेगा। अति कठिन को किया तो बड़ा कर्तृत्व का बोध पैदा होगा। अगर महा कठिन को कर लिया, अगर तुम गौरीशंकर के शिखर पर चढ़ गए, तो तुम्हारे अहंकार का कोई ओर-छोर न रहेगा।
कठिन में बुलावा है; सरल में कोई बुलावा नहीं है। और ध्यान रखना, कठिन में जैसे अहंकार की तृप्ति है और जीत का आकर्षण है, ठीक उससे उलटी दशा सरल की है। सरल में कोई चुनौती नहीं है, जीत का कोई उपाय नहीं है। जो हारने को राजी है वही सरल में उतर सकता है। क्योंकि सरल में उतरना तो समर्पण है, चुनौती नहीं । सरल में उतरने में कोई संकल्प ही नहीं है, विश्राम है। कठिन में कर्तृत्व है। सरल में तो समर्पण है। कठिन में तुम हो, सरल में तुम न रहोगे। कठिन तैरने जैसा है, सरल बहने जैसा है। धारा ले जाएगी। तो कठिन को तुम चुनना पसंद करते हो। तुम कहते कितना ही हो कि जल्दी कैसे हो जाए, कुछ सरल मार्ग बता दें, लेकिन तुम्हारे भीतर गहन आकांक्षा कठिन की है। और तुम जब तक कोई कठिन न बताए तब तक तुम कहोगे, यह इतना सरल है, इससे क्या होगा ?
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं कि क्या होगा ? शांत ही बैठने से क्या हो जाएगा ? न वे कभी बैठे हैं, न कभी उन्होंने स्वाद चखा। वे कहते हैं, ऐसा खाली आंख बंद करके बैठने से क्या होगा ? क्या परमात्मा इससे मिल जाएगा? क्या नाचने-कूदने, नृत्य, इससे परमात्मा मिल जाएगा? तब 'नाचने वालों को ही मिल जाता ।
उन्हें पता नहीं कि नाचने वाला परमात्मा से मिलने के लिए नाच ही नहीं रहा है; नाचने वाला पैसे के लिए नाच रहा है। ध्यानी किसी और बात के लिए नाचता है। ऊपर से दोनों नाचते हुए दिखाई पड़ते हैं। मीरा भी नाचती दिखाई पड़ती है। एक फिल्म अभिनेत्री भी नाचती दिखाई पड़ती है । और हो सकता है, फिल्म अभिनेत्री ज्यादा