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शक्ति पर भद्रता की विजय होती है
थित धार्मिक लोग कहते सुन
ज
न
शक्ति को जरूर खोजी-
मालम पड़ता है। शक्ति
रहा है? वह भी शक्ति की तलाश कर रहा है। वह ईश्वर को प्रभावित करना चाहता है, मुट्ठी में लेना चाहता है, और उससे कुछ करवाना चाहता है कि वह कुछ मेरे लिए कर दे। तो पूजा करेगा, घुटने टेकेगा, मंदिर में गिरेगा। लेकिन आयोजन क्या है उसका? रोएगा, कहेगा कि मैं पतित हूं, तुम पावन हो। सब कहेगा; लेकिन उसका प्रयोजन क्या है? प्रयोजन है कि वह ईश्वर को अपने हाथ में लेकर संचालित करना चाहता है-अपनी मर्जी के अनुसार। इसलिए तथाकथित धार्मिक लोग कहते सुने जाते हैं कि क्या क्षुद्र शक्तियों की तलाश में पड़े हो, परम शक्ति को खोजो।
लेकिन क्षुद्र को खोजो या परम को, लेकिन शक्ति को जरूर खोजो-पावर! शक्ति का क्या उपयोग है?
शक्ति से स्वयं को तो कुछ भी नहीं मिलता, लेकिन दूसरे की तुलना में बल मालूम पड़ता है। शक्ति तुलनात्मक है। यह दूसरा सत्य शक्ति के संबंध में समझ लेना चाहिए। वह हमेशा तुलनात्मक है। किसी को आप शक्तिशाली नहीं कह सकते सीधा; आपको कहना पड़ेगा कि अ, ब से ज्यादा शक्तिशाली है। क्योंकि अ शक्तिशाली है, इतना कहने से कुछ हल नहीं होता। क्योंकि स ज्यादा शक्तिशाली हो सकता है। तो शक्तिशाली हमेशा तुलना में, कंपेरिजन में। आपको सिर्फ इतना कहना ठीक नहीं कि आप धनी हैं, क्योंकि आप किसी की तुलना में गरीब हो सकते हैं। तो यह बताना जरूरी है कि आप किसकी तुलना में धनी हैं। सब शक्तियां तुलनात्मक हैं। किसी को यह कहना काफी नहीं है कि यह विद्वान है; यह बताना जरूरी है कि किसकी तुलना में विद्वान है। क्योंकि किसी की तुलना में यह मूढ़ हो सकता है। सारी शक्तियां रिलेटिव हैं, सापेक्ष हैं। शक्ति का मजा अपने आप में नहीं है, शक्ति का मजा दूसरे को कमजोर करने में है। शक्ति से आप शक्तिशाली नहीं होते, लेकिन दूसरा कमजोर दिखता है। दूसरे के कमजोर दिखने से आपको एहसास होता है कि मैं शक्तिशाली हूं।
इसलिए धन का असली मजा धन में नहीं है, दूसरों की गरीबी में है। अगर कोई भी गरीब न हो, धन का मजा ही चला जाता है। कोई रस नहीं है फिर उसमें। थोड़ा समझिए कि कोहनूर हीरा आपके पास है। उसका मजा क्या है? मजा सिर्फ यह है कि आपके पास है, और किसी के पास नहीं है। सबके पास कोहनूर हीरा है, बात व्यर्थ हो गई। आप इस कोहनूर हीरा को बिलकुल फेंक देंगे। इसका कोई मूल्य ही न रहा। यह वही कोहनूर हीरा है, लेकिन अब इसका कोई मूल्य नहीं है। इसका मूल्य इसमें था कि दूसरों के पास नहीं था। यह बड़े मजे की बात है! आपके पास है, इसमें मूल्य नहीं है; दूसरे के पास नहीं है, इसमें मूल्य है।
तो सारी शक्ति दूसरे पर निर्भर है, और दूसरे की तुलना में है। अमीर अमीर है, क्योंकि कोई गरीब है। ज्ञानी ज्ञानी है, क्योंकि कोई अज्ञानी है। शक्तिशाली शक्तिशाली है, क्योंकि कोई निर्बल है। शक्ति की दौड़ आत्म-खोज नहीं बन सकती है। क्योंकि शक्ति की दौड़ दूसरे से बंधी हुई है। दूसरे की तुलना में है। और एक मजे की बात है कि जो दूसरे की तुलना में है वह दूसरे पर निर्भर भी है। इसलिए बड़े से बड़ा शक्तिशाली आदमी भी अपने से कमजोर लोगों पर निर्भर होता है। यह हमको भी दिखाई नहीं पड़ता। जब आप एक सम्राट को चलते देखते हैं और उसके पीछे गुलामों को चलते देखते हैं तो आपको खयाल नहीं होता कि सम्राट गुलामों का उतना ही गुलाम है जितना गुलाम सम्राट के गुलाम हैं। शायद सम्राट ज्यादा गुलाम भी हो। क्योंकि गुलामों को मौका मिले तो वे छोड़ कर सम्राट को भाग जाएं और स्वतंत्र हो जाएं, लेकिन सम्राट गुलामों को छोड़ कर नहीं भाग सकता। क्योंकि गुलामों के बिना वह सम्राट ही नहीं रह जाएगा; उसका सम्राटपन गुलामों पर निर्भर है। वह गुलामों की भी गुलामी है।
म्युचुअल स्लेवरी, पारस्परिक गुलामियां हैं। जिसको भी आप गुलाम बनाते हैं, उसके आप गुलाम बन जाते हैं। जिस पर भी आप कब्जा करते हैं, आप उसके कब्जे में हो जाते हैं। और जिसको भी आप अपने से निर्बल कर देते हैं, आप उससे भी निर्बल हो जाते हैं। यह गहरा हिसाब है। यह ऊपर से दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन हम सब एक-दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं।