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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ 88 भद्रता घटित न होती। इस भद्रता के कारण ही जीसस जीते। लेकिन यह जीत किसी और लोक की है। शक्ति हार गई; शक्ति अपने आप बिखर गई। जीसस को जो मार डालना चाहते थे, मिटा डालना चाहते थे, वे मिट गए, और जीसस एकदम अमर हो गए, अमृत को उपलब्ध हो गए। यह केवल ऐतिहासिक अर्थों में ही नहीं, बल्कि जीसस के अंतस्तल में भी यही घटित हुआ। जो बड़े से बड़ा चमत्कार जगत में हो सकता था वह हुआ। क्योंकि जीसस परम जीवन को अनुभव करते हुए भी, परम शक्तिशाली होते हुए भी झुक गए भद्रता में। लाओत्से कहता है, भद्रता अंततः जीतती है। अंततः ! प्रारंभ में तो शक्ति जीतती हुई मालूम होती है । और इसीलिए हम शक्ति पर भरोसा करते हैं। क्योंकि अंततः तो हम देख ही नहीं पाते; हमें तो जो प्रथम है वही दिखाई पड़ता है। हमारे पास आंखें तो बहुत पास देखने वाली हैं, दूर तक हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता है। तो सब तरफ हम इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि कैसे शक्ति उपलब्ध हो। वह शक्ति चाहे धन की हो, चाहे ज्ञान की हो, चाहे तंत्र की, मंत्र की हो, लेकिन कैसे शक्ति उपलब्ध हो। चारों तरफ हमारी एक ही खोज होती है पूरे जीवन में कि हम शक्तिशाली कैसे हो जाएं। लेकिन शक्ति का करिएगा क्या ? शक्ति की इतनी आकांक्षा क्यों है ? नी ने एक किताब लिखी है। अनूठी किताब है, दि विल टु पावर । और किताब में उसने सिद्ध करने की कोशिश की है कि प्रत्येक आदमी की आत्मा एक आकांक्षा है शक्ति के लिए, विल टु पावर, और कुछ भी नहीं। हर आदमी शक्ति पाना चाहता है; शक्ति रूप कुछ भी हों। जब आप ज्यादा धन इकट्ठा करना चाहते हैं तो आप क्या चाहते हैं ? अनेक लोग पूछते हैं, ज्यादा धन इकट्ठा करके क्या करिएगा ? लेकिन उनको पता नहीं कि वे क्या पूछ रहे हैं। धन धन नहीं है, धन शक्ति का संचित रूप है। एक रुपया आपकी जेब में पड़ा है तो सिर्फ रुपया नहीं पड़ा है, शक्ति संचित पड़ी है। इसका आप तत्काल उपयोग कर सकते हैं। जो आदमी अकड़ कर जा रहा था, उसको रुपया दिखा दीजिए, वह झुक गया; वह रात भर आपके पैर दबाएगा। उस रुपए में यह आदमी छिपा था जो रात भर पैर दबा सकता है। रुपए की इतनी दौड़ रुपए के लिए नहीं है। रुपया तो संचित शक्ति है, कनडेंस्ड पावर है। और अदभुत शक्ति है। क्योंकि अगर आप एक तरह की शक्ति इकट्ठी कर लें तो उसको दूसरी शक्ति में नहीं बदला जा सकता। रुपया बदला जा सकता है। एक रुपया आपकी जेब में पड़ा है, चाहें आप किसी से पैर दबवा लें, चाहें किसी से सिर की मालिश करवाएं, चाहे किसी से कहें कि पांच दफे उठक-बैठक करो। उसके हजार उपयोग हैं। अगर आपके पास एक तरह की शक्ति है तो वह एक ही तरह की है, उसका एक ही उपयोग है। रुपया अनंत आयामी है। इसलिए इतना पागलपन है रुपए के लिए। पागलपन ऐसे ही नहीं है, जैसा साधु-संन्यासी समझाते हैं कि आप व्यर्थ ही पागल हैं। लोग व्यर्थ पागल नहीं हैं, लोग बड़े गणित से पागल हैं। चाहे उन्हें भी पता न हो, चाहे उन्हें भी स्पष्ट न हो कि वे क्यों पागल हैं, क्यों इतना रस है रुपए में, क्यों रुपए को पकड़ने और बचाने की इतनी आकांक्षा है। शायद उन्हें भी साफ न हो; दौड़ अचेतन हो; उन्हें चेतना न हो पूरी की वे क्या कर रहे हैं। लेकिन बात बिलकुल साफ है। और बात इतनी है कि वे धन के माध्यम से शक्ति इकट्ठी कर रहे हैं। कोई आदमी किसी और ढंग से शक्ति इकट्ठी कर रहा है। एक आदमी युनिवर्सिटी में पढ़ रहा है, शिक्षित हो रहा है; वह भी शक्ति इकट्ठी कर रहा है। वह ज्ञान के द्वारा शक्ति इकट्ठी कर रहा है। एक तीसरा आदमी कुछ और उपाय कर रहा है। लेकिन अगर सारे लोगों को हम देखें तो अलग-अलग रास्तों से वे शक्ति की तलाश कर रहे हैं । एक आदमी मंत्र सिद्ध कर रहा है बैठ कर; वह भी शक्ति की तलाश में है। वह भी सोचता है कि मंत्र सिद्ध हो जाए तो लोगों को आंदोलित कर दूं, प्रभावित कर दूं, कि हजारों लोग चमत्कृत हो जाएं कि जो चाहूं वह करके दिखा दूं। वह भी उसी कोशिश में लगा है। जो आदमी प्रार्थना कर रहा है, पूजा कर रहा है, ठीक से समझें तो वह क्या कर
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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