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ताओ उपनिषद भाग ४
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होने लगता है । और अगर आप ऐसे व्यक्ति के पीछे चल पड़े जो स्वभाव में डूबा हुआ है तो आप ज्यादा दिन बच न पाएंगे। यह स्वभाव में डूबना संक्रामक है।
इस संदर्भ में आपको एक शब्द का अर्थ समझा दूं। हमारे पास एक बहुत मीठा शब्द है, सत्संग । उसको साधु-संन्यासी बुरी तरह खराब कर दिए हैं। सत्संग का मतलब यह नहीं होता कि वहां जाकर गुरु कुछ समझा रहा है। और आप कुछ समझ रहे हैं। सत्संग का सिर्फ मतलब होता है कि गुरु है और आप हैं; सिर्फ गुरु मौजूद है और आप उसके पास मौजूद हैं। यह पास होने का नाम सत्संग है; सिर्फ पास होने का नाम, निकट होने का नाम, समीपता का नाम। सत्संग का अर्थ कोई बौद्धिक शिक्षा नहीं है; सत्संग का अर्थ एक आत्मिक सामीप्य है। कोई जो अपने स्वभाव को उपलब्ध हुआ है, उसके पास बैठ कर आपके भीतर भी वही धुन बजने लगेगी जो उसके भीतर बज रही हैं।
लेकिन बड़ा अदभुत है। आप गुरु के पास जाएं तो गुरु-गुरु खुद, अगर चुप बैठे तो आपके सत्संग में हो जाएगा - वह चुप बैठ नहीं सकता। कुछ बोलना चाहिए उसे । क्योंकि बोल कर वह आपसे बचता है। आपको पता नहीं कि भाषा एक बचाव की तरकीब है। जिस व्यक्ति का सत्संग आप नहीं करना चाहते उससे आप बातचीत शुरू कर देते हैं। क्योंकि बातचीत से एक दीवाल बन जाती है बीच में। अगर पति पत्नी का सत्संग नहीं करना चाहता तो वह चर्चा शुरू कर देगा; वह कुछ भी बात करेगा। आप सबको अनुभव है कि आप बात करेंगे कुछ भी, ताकि निकटता का पता न चले। कुछ भी बात करो । प्रेमी चुप बैठ सकते हैं, पति-पत्नी पास में चुप नहीं बैठ सकते । प्रेमी अक्सर चुप बैठ जाते हैं। बात करने का मन नहीं होता, क्योंकि निकट होने का मन होता है। जब निकट होने का मन होता है तो बात करने का मन नहीं होता। और जब निकट से बचने का मन होता है तो आदमी बात करता है। बातचीत एक सुरक्षा है, एक तरकीब है, जिससे हम एक पर्दा खड़ा कर लेते हैं और ओट में हो जाते हैं।
सत्संग का अर्थ है ऐसे व्यक्ति के पास चले जाना जो स्वभाव को उपलब्ध है। और उसके स्वभाव की तरंगें आप को भी छुएंगी, और शायद उसके मौन में आप भी मौन हो जाएंगे। वह जिस आनंद में नहा रहा है, आप पर भी कुछ बूंदें पड़ जाएंगी। वह जहां खड़ा है वहां की थोड़ी सी झलक आपको भी मिल जाएगी।
ऐसा ही दूसरा शब्द है हमारे पास, दर्शन। इस दर्शन के लिए दुनिया की किसी भाषा में अनुवाद करना आसान नहीं है। दुनिया की किसी भाषा में ऐसा शब्द नहीं है। सत्संग पास होने का नाम है। पर अगर, जो व्यक्ति स्वभाव उपलब्ध हुआ है, उसकी दृष्टि भी आप पर पड़ जाए या आपकी दृष्टि उस पर पड़ जाए तो उतने में भी एक संबंध स्थापित हो जाता है; एक क्षण को एक धारा, एक लहर आपको बहा ले जाती है।
तो पश्चिम के लोग आते हैं, वे नहीं समझ पाते। वे नहीं समझ पाते कि किसी गुरु के दर्शन को जाने का क्या मतलब? जब तक कि बातचीत न हो, इंटरव्यू न हो, कुछ चर्चा न हो, कुछ प्रश्न-उत्तर न हो, तो दर्शन का क्या मतलब ? सिर्फ देखना ? तो देख कर क्या फायदा? उनका कहना ठीक है। क्योंकि साधारणतः देख कर क्या फायदा होगा ? तो तस्वीर ही देख सकते हैं हम |
लेकिन इस मुल्क को पता है कि दर्शन का बड़ा अदभुत फायदा है। लेकिन वह फायदा तभी है जब दूसरा व्यक्ति स्वभाव को उपलब्ध हो। वह ऐसे ही है जैसे कि आप एक पहाड़ के पास जाएं और एक गहन खाई में झांक कर देखें। तो खाई में झांकते वक्त आपको पता है, जो आप कंप जाते हैं, वह कंपन किस बात से आता है ? अभी खाई में आप गिर नहीं गए हैं; सिर्फ झांका है। लेकिन खाई की गहराई आपके भीतर की गहराई को जन्मा देती है। एक प्रतिफलन हो जाता है; आप कंप जाते हैं, उस गहराई से डर जाते हैं। जब कोई स्वभाव को उपलब्ध होता है तो उसके पास जाना एक मानवीय खाई के पास जाना है; एक चैतन्य की खाई – जहां एक अंतहीन गड्ड है, एक शून्य है । उसका एक क्षण भी दर्शन, और आप फिर वही नहीं होंगे जो आप थे।