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________________ ताओ का स्वाद मादा है आप देखते हैं, स्कूल से बच्चे छूटते हैं तो किस तरह छूटते हैं। जैसे कारागृह से छूटे हों। कितने प्रसन्न होते हैं। उनकी प्रसन्नता में ही उनकी स्लेट टूट जाती है, किताबें फट जाती हैं, बस्ता फेंक देते हैं। एकदम आनंदित हो जाते हैं। लेकिन हम कर क्या रहे हैं उनके साथ? छह घंटे जबरदस्ती व्यवस्था बिठाए हुए हैं। डंडे के बल पर व्यवस्था बिठाए हुए हैं। इसलिए अगर आज सारी दुनिया में विश्वविद्यालय जलाए जा रहे हैं, कालेजों में आग लगाई जा रही है, तो आप यह मत समझना कि सिर्फ बच्चे ही जिम्मेवार हैं। यह तो होने ही वाला था। क्योंकि जो आप कर रहे हैं बच्चों के साथ वह जबरदस्ती है। उस जबरदस्ती का प्रतिकार होने वाला था। पहले नहीं हुआ, क्योंकि बहुत थोड़े स्कूल थे, बहुत थोड़े कालेज थे। बड़ा समूह शिक्षित नहीं किया जा रहा था। और जो लोग शिक्षा लेने जाते थे वे उन घरों के थे जिनके पास साधन-सामग्री थी; पैसा, सुविधा, जमीन-जायदाद थी। उन घरों के बच्चे विश्वविद्यालयों और स्कूलों में पढ़ रहे थे। जिनके पास सुविधा है वे बगावती नहीं होते; क्योंकि बगावत में उनका नुकसान होगा, कुछ खोएगा। लेकिन जिनके पास कुछ नहीं है वे बगावती हो जाते हैं। उनसे आप कुछ छीन नहीं सकते; उनका कुछ भी नष्ट नहीं होता। और जिनके पास है उनका नुकसान होता है; और जिनके पास नहीं है उनका कोई नुकसान नहीं होता। मार्क्स ने कहा है कि दुनिया के मजदूरो, इकट्ठे हो जाओ! क्योंकि तुम्हारे पास खोने के लिए सिवाय जंजीरों के और कुछ भी नहीं है। तो डर क्या है? तो सारी दुनिया में सार्वभौम शिक्षा! सब को शिक्षित होना चाहिए। स्वभावतः, विश्वविद्यालयों और कालेजों, स्कूलों में वे सारे बच्चे इकट्ठे हो गए हैं जिनके पास कुछ नहीं है। और उनको आप छह घंटे जबरदस्ती बिठाए हुए हैं, और उनके पास खोने को कुछ नहीं है। और छह घंटे की सजा, और यह बीस-पच्चीस साल तक सजा चलती है। इसका उपद्रव है। इस जबरदस्त व्यवस्था में से अव्यवस्था पैदा हो रही है। कोई विश्वविद्यालय बिना जले बच नहीं सकता। इस सदी के पूरे होते-होते ये बच्चे सारे विश्वविद्यालय, सब कालेजों को मिट्टी में मिला देंगे। और आपके पास कुछ उपाय नहीं। क्योंकि आप जो भी सोचते हैं वह गलत सोचते हैं। उपाय एक ही है कि कालेज और विश्वविद्यालय से व्यवस्था हट जाए और सहज व्यवस्था आए। वह तो हमारी संभावना के बाहर है। हम सोच ही नहीं सकते कि सहज व्यवस्था कैसे आ सकती है। क्योंकि उसका तो अर्थ होगा कि सारा ढांचा बदले जीवन का। क्योंकि शिक्षक सहज व्यवस्था ला सकता है, अगर वह सच में शिक्षक हो। लेकिन सच में शिक्षक कौन है? सौ में एक शिक्षक भी सच में नहीं है। निन्यानबे नौकरी करने गए हैं, जैसे वे कोई और नौकरी करने गए होते। और सच तो यह है कि आखिर में वे शिक्षक की नौकरी करने जाते हैं जब कोई नौकरी नहीं मिलती। पहले वे कोशिश करते हैं कि सब-इंस्पेक्टर हो जाएं, कि किसी दफ्तर में मैनेजर हो जाएं, कि हेड क्लर्क हो जाएं। जब कुछ भी नहीं हो पाते तब मजबूरी में वे शिक्षक हो जाते हैं। यह शिक्षक जो सब-इंस्पेक्टर होने गया था, यह अव्यवस्था पैदा करवाएगा। क्योंकि यह व्यवस्था लाने की इतनी चेष्टा करेगा कि सबके भीतर की ऊर्जा को दबा देगा। वह दबी हुई ऊर्जा विस्फोट बन जाएगी। लाओत्से कहता है, एक और भी व्यवस्था है-स्वभाव की। और जब कोई ऐसे व्यक्ति का अनुगमन करता है, लाओत्से कहता है, अगर संसार ऐसे व्यक्ति के अनुगमन में लीन हो जाए तो स्वास्थ्य, शांति और व्यवस्था सहज ही उपलब्ध हो जाती है। स्वास्थ्य क्या है? अपने साथ एक लयबद्धता, अपने साथ एक गहरी मैत्री, अपने भीतर कहीं भी कोई अराजकता न हो; अपने भीतर कोई कलह न हो; एक राजीपन कि सब ठीक है; एक भाव कि सब ठीक है; ऐसा स्वर-स्वर में, श्वास-श्वास में एक गूंज, कि कुछ भी गलत नहीं है। पर यह तभी होता है जब कोई स्वभाव में लीन 73
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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