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________________ सारा जगत ताओ का प्रवाह हैं 55 हूं, कि तुम अब मेरे हुए, कि तुम पर अब मेरी मालकियत है। क्षुद्र का अस्वीकार नहीं है; श्रेष्ठ के ऊपर कोई स्वामित्व का दावा नहीं है। परमात्मा शून्यवत है। परमात्मा एक परम स्वतंत्रता है, जिसमें आप जो भी होना चाहें, हो सकते हैं। वह आपको न रोकता है, न धक्के देता है। धर्म को इस भाषा समझें कि धर्म है आपका परम स्वातंत्र्य | आप जो भी होना चाहें वह हो सकते हैं। परमात्मा के विपरीत भी जाना चाहें तो भी जा सकते हैं; तो भी उसका सहारा मिलता रहेगा। वह आपको अस्वीकार न करेगा । और उसके अनुकूल आना चाहें तो अनुकूल भी आ सकते हैं; तो भी वह स्वामित्व की घोषणा नहीं करेगा कि तुम अब मेरे हुए। उसकी तरफ से कभी भी कोई दावा नहीं किया जाता; अस्तित्व दावे से रहित है। यह बहुत सुखद है । यह अनूठी घटना है। इसकी कोई तुलना में दूसरी घटना जीवन में दिखाई नहीं पड़ती। समझें, एक मित्र मेरे हैं। उनके एक लड़के की मृत्यु हो गई। लड़का मंत्री था, और मित्र सोचते थे कि जल्दी ही मुख्यमंत्री होगा। और आशाएं थीं कि कभी हिंदुस्तान का प्रधानमंत्री भी होगा। लड़का मर गया तो भारी दुख में थे। आत्महत्या की दो-तीन बार कोशिश की। कोशिश निश्चित ही अधूरी थी और आधे हृदय से थी; नहीं तो दो-तीन बार करने की कोई जरूरत नहीं पड़ती। शायद वह भी एक दिखावा था । राजनीतिज्ञ हैं; राजनीतिज्ञ की किसी बात का कोई भरोसा नहीं। खुद बड़ा रोना-धोना करते थे । तो मैंने उनसे पूछा कि इतने आप क्या परेशान हैं! और आपका दूसरा लड़का भी है। उनका दूसरा लड़का भी है। मैंने उनसे पूछा कि अगर यह दूसरा लड़का मर जाता तो आप इतने दुखी होते? मैंने कहा, ईमानदारी से ही मुझे जवाब देना। उन्होंने कहा कि दुखी नहीं होता, यह दूसरा लड़का मर जाता तो। क्योंकि इसे मैंने कभी चाहा ही नहीं । यह मुझे कभी स्वीकृत ही न हुआ। वह दूसरा लड़का साधारण है— उनकी भाषा में। बाप को कोई बेटा साधारण तो नहीं होना चाहिए। लेकिन कौन बाप बाप होता है? असाधारण बेटा वह है जो मंत्री हो गया है; और यह बेटा साधारण है, क्योंकि दुकान करता है, धंधा करता है; साधारण है। इस दूसरे बेटे से अहंकार की कोई तृप्ति नहीं होती, इसलिए साधारण है। उस बेटे से अहंकार की तृप्ति होती थी। वह बाप की महत्वाकांक्षा था। बाप उसके कंधे पर बंदूक रख कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था। वे खुद भी प्रधानमंत्री होना चाहते थे; वे नहीं हो सके। अब वे बेटे के द्वारा होने की कोशिश में लगे थे। तो उन्होंने मुझसे कहा कि दूसरा बेटा मर जाता तो इतना दुख मुझे नहीं होता। वह स्वीकार नहीं था। और सच तो यह है कि वे चाहते नहीं कि कोई समझे कि वह उनका बेटा है, दूसरा । जब तक उनका पहला बेटा नहीं मर गया तब तक लोगों को पता ही नहीं था कि उनका दूसरा बेटा भी है। वे एक की ही बात करते थे । परमात्मा, वह जो निकृष्टतम है, उसके विरोध में नहीं है, और वह जो श्रेष्ठतम है उसका भी दावेदार नहीं है। क्योंकि अस्तित्व की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। ऐसा नहीं है कि वह राम के पक्ष में हो और रावण के विरोध में हो । क्योंकि अगर दोनों उसी से पैदा होते हैं तो रावण का भी उसे अस्वीकार नहीं है और राम के होने में भी कोई गौरव और अहंकार नहीं है। उसका भी कोई दावा नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि परमात्मा या ताओ या धर्म परम स्वतंत्रता है। उसमें आप जो भी होना चाहें हो सकते हैं। होने का सारा जिम्मा आपके ऊपर है, सारा दायित्व आपके ऊपर है। आप परमात्मा से विपरीत चलते हैं तो दुख पाएंगे। इस कारण बड़ा उपद्रव हुआ है। आप परमात्मा से विपरीत चलते हैं तो दुख पाएंगे; आप अनुकूल चलते हैं तो सुख पाएंगे। इस कारण दुनिया के बहुत से धर्मग्रंथ बड़ी भ्रांति पैदा कर दिए हैं। उन्होंने इसको ऐसा समझाना शुरू कर दिया कि जो उसके विपरीत चलेगा उसको वह दुख देता है और जो उसके अनुकूल चलेगा उसको वह सुख देता है।
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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