________________
ताओ उपनिषद भाग ४
यह बात बिलकुल गलत है। क्योंकि परमात्मा भी अगर विपरीत चलने वाले को दुख देता है तो अति साधारण मनोदशा हो गई; और अनुकूल चलने वाले को सुख देता है तो मनुष्य की साधारण बुद्धि से ज्यादा बुद्धि वहां भी न रही। प्रशंसा जो करता है, स्तुति जो गाता है, पैरों में जो पड़ता है, उसको आकाश में उठा देता है; और जो इनकार करता है और स्वीकार नहीं करता, और शराबखाने में बैठता है और मंदिर में नहीं जाता, उसको नरकों में डाल देता है। ईसाइयत, यहूदी और इसलाम, तीनों धर्मों ने एक नैसर्गिक घटना को मनुष्य की व्याख्या देकर बहुत विकृत कर दिया।
जब आप उसके अनुकूल नहीं चलते तो वह आपको दुख नहीं देता, आप दुख पाते हैं। इस फर्क को समझ लेना चाहिए। वह आपको दुख नहीं देता। अपनी तरफ से वह आपको कुछ भी देता-लेता नहीं है। जैसे आप आग में हाथ डालते हैं तो आप जल जाते हैं; आग आपको जलाती है, ऐसा मत कहिए। आप आग से दूर हाथ ले जाते हैं तो ठंडक मालूम होने लगती है; आप पास हाथ लाते हैं तो गर्मी मालूम होने लगती है। आग अपने स्वभाव से चलती रहती है। न आपको जलाने को उत्सुक है; न आपको न जलाने को उत्सुक है। आपसे आग को कुछ संबंध नहीं है। आग जल रही है; उसका स्वभाव है जलना। आप दूर और पास आते हैं तो ठंडक और गर्मी बढ़ जाती है।
__परमात्मा का स्वभाव है स्वतंत्रता। आप दूर जाते हैं स्वतंत्रता से तो आप बंधन में पड़ने लगते हैं—बंधन से . दुख। आप पास आते हैं तो आप खुलने लगते हैं-स्वतंत्रता का सुख। लेकिन यह सुख और दुख आपके आने-जाने पर निर्भर है। इसमें परमात्मा कुछ करता नहीं। इसमें कोई मोटिवेशन, परमात्मा की तरफ कोई हेतु नहीं है। परमात्मा न आपको सुख देता है, न दुख देता है; न स्वर्ग भेजता है, न नरक भेजता है। आप ही जाते हैं। ये आपकी ही यात्राएं हैं। इनसे उसका कोई भी संबंध नहीं है। हां, आप नरक जाते हैं तो वह रोकता नहीं; आप स्वर्ग जाते हैं तो वह खींचता नहीं। अस्तित्व आपके ऊपर जबरदस्ती नहीं करता।
और ध्यान रहे, अच्छा है कि अस्तित्व जबरदस्ती नहीं करता। क्योंकि अगर अस्तित्व जबरदस्ती करे तो शायद आप फिर कभी भी ठीक न हो पाएंगे। क्योंकि जैसे ही जबरदस्ती की जाती है वैसे ही चित्त प्रतिकूल जाने के लिए आतुर हो जाता है। अगर आपको जबरदस्ती स्वर्ग में भी भेजा जाए तो आप निकल भागने की कोशिश करेंगे। स्वर्ग सुख नहीं देता, जबरदस्ती दुख देती है। आप अपनी मौज से नरक में भी चले जाएं तो आपको वहां भी बड़ी शांति मिलेगी। आप खुद ही वहां चले गए हैं। और जिस चीज का भी निषेध किया जाए वहां जाने का मन होता है। और जहां भी जबरदस्ती लाया जाए वहां से हट जाने का मन होता है।
आप सबको अनुभव होगा कि कोई सुखद से सुखद चीज भी दुखद हो जाती है अगर जबरदस्ती की जाए, और दुखद से दुखद चीज भी सुखद हो जाती है अगर आपने ही उसे चुना है। क्योंकि सुख स्वतंत्रता में है। इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। आपने चुना है, इसलिए स्वतंत्रता है; दूसरे ने थोपा है तो परतंत्रता हो गई। परतंत्रता में दुख है; स्वतंत्रता में सुख है। क्यों? क्योंकि जितने आप स्वतंत्र होते हैं उतने आप भी परमात्मा जैसे हो जाते हैं। और जितने आप परतंत्र होते हैं उतने प्रतिकूल होते चले जाते हैं।
___ परमात्मा जीवन का नियम है। वह कोई व्यक्ति नहीं है जो आपको कुछ देगा। आप रास्ते पर चलते हैं। तिरछे चलते हैं, गिर पड़ते हैं, टांग टूट जाती है। तो आप ऐसा नहीं कहते कि ग्रेविटेशन ने मेरी टांग तोड़ दी, कि जमीन की कशिश ने मेरी टांग तोड़ दी। जमीन की कशिश को आपकी टांग से क्या लेना-देना? जमीन की कशिश कोई व्यक्ति तो नहीं है कि वहां बैठा देख रहा है कि यह देखो, तिरछा चल रहा है, इसकी तोड़ो टांग! यह आदमी बिलकुल सीधा चल रहा है, इसको कुछ पुरस्कार दो। वहां कोई नहीं है। कशिश एक नियम है, एक लॉ है।
ताओ का अर्थ होता है नियम। आप तिरछे चलते हैं; अपने ही कारण आप गिर जाते हैं। आप सीधे चलते हैं; अपने ही कारण आप चलते हैं। कशिश का प्रभाव तो नीचे बह रहा है; ग्रेविटेशन तो मौजूद है हमेशा।
56