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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ आपको पीड़ा न हो जीभ की तो आप काट जाएंगे भोजन के साथ; आपको पता नहीं चलेगा। ऐसे बच्चे बच नहीं पाते, क्योंकि उनको सुरक्षा का कोई उपाय नहीं है। उनको पीड़ा नहीं होती, इसलिए वे कुछ भी उपद्रव कर सकते हैं। घर में आग लगी हो और बच्चा सो रहा हो तो निकल कर बाहर नहीं भागेगा; वह सोया रहेगा। उसे पता ही नहीं चलेगा कि वह कब जल गया। तो इस वैज्ञानिक के जीवन भर की खोज का परिणाम यह है कि उसने कहा कि पीड़ा जो है वह जीवन के अस्तित्व के लिए बड़ी सुरक्षा है। सारी व्याख्या बदल गई फिर। जीवन हो ही नहीं सकता बिना पीड़ा के। तो पीड़ा फिर बुरी नहीं रही। फिर तो पीड़ा जीवन की भूमि हो गई; फिर तो पीड़ा शुभ हो गई। क्योंकि उसी की भूमि में जीवन का फूल खिलता है। वह उसकी सुरक्षा है। इसलिए जितना संवेदनशील व्यक्तित्व होगा उतना जीवंत होगा। यह जरा मुश्किल बात है। जितना संवेदनशील व्यक्तित्व होगा, जितनी छोटी सी भी पीड़ा का जिसे अनुभव होता है, वह उतना ज्यादा बुद्धिमान, उतना ज्यादा चैतन्य, उतना ज्यादा जीवंत होगा। आप कोशिश कर सकते हैं पीड़ा से बचने की; आप तंतुओं को नष्ट कर सकते हैं। आप फकीरों को देखते हैं, लेटे हैं कांटों पर। अभ्यास से हो जाता है। वे जो तंतु पीड़ा की खबर ले जाते हैं, वे खबर नहीं ले जाते। लेकिन उसी मात्रा में वह फकीर मुर्दा हो गया। जिस मात्रा में पीड़ा पहुंचनी बंद हो गई उसी मात्रा में मुर्दा हो गया। आप प्रभावित होते हैं कि गजब का चमत्कार है कि कांटों पर लेटा हुआ है। लेकिन चमत्कार सिर्फ इतना ही है कि उसने अपने तंतुओं को जड़ कर लिया। और उन तंतुओं के जड़ होने के साथ ही उसी मात्रा में उसकी जीवन की ज्योति भी क्षीण हो गई। इसलिए कांटों पर लेटे फकीर की आंखों में आपको जीवन का दर्शन नहीं होगा। आप सिर्फ कांटे और फकीर को देख कर लौट आते हैं। उसकी आंखें भी देखें। वहां लगेगा: एक मुर्दगी, एक डेडनेस; सब कुछ मरा हुआ। वह एक लाश है। जैसे ही आप जीवन को पूरा का पूरा, एक देखना शुरू करेंगे, आपकी व्याख्याएं बदलनी शुरू हो जाएंगी। आप जिसे प्रेम करते हैं उससे कलह भी हो जाती है। हम सब सोचते हैं कि जिससे प्रेम है उससे कलह नहीं होनी चाहिए। कैसे होगी कलह? अगर प्रेम है तो कलह होनी ही नहीं चाहिए। कलह है बुरी; वह घृणा का हिस्सा है; प्रेम का कैसे हो सकता है? लेकिन मनसविद कहते हैं-और ठीक कहते हैं कि कलह दो प्रेमियों के बीच बड़ी जरूरी है। जैसे आप श्वास लेते हैं भीतर और फिर श्वास बाहर छोड़ते हैं, वह बाहर श्वास का जाना फिर भीतर श्वास लेने के लिए जरूरी है। चौबीस घंटे आप भीतर ही भीतर श्वास लें; चौबीस घंटे बचेंगे ही नहीं। आप कहें कि भीतर ही लेंगे श्वास, बाहर नहीं लेंगे। बाहर छोड़नी पड़ती है श्वास, फिर भीतर लेते हैं; खाली हो जाते हैं। प्रेम भी चौबीस घंटे नहीं किया जा सकता; वह भी जहर हो जाएगा। उसे छोड़ना भी पड़ता है। वह भी श्वास की तरह है; जैसे दिन और रात हैं; जैसे बाहर आती श्वास और भीतर जाती श्वास। दो प्रेमी कलह करके दूर हट जाते हैं। दूर हटने के कारण फिर पास आने का उपाय हो जाता है। अगर वे पास ही पास बने रहें तो ऊब जाएंगे और पास होना खतरनाक होने लगेगा। और फिर वे भागना चाहेंगे, बचना चाहेंगे। दूरी जरूरी है। फिर दूरी पास आने का आकर्षण पैदा करती है। फिर पास आना सुखद मालूम होने लगता है। अक्सर दो प्रेमी लड़ कर जैसा प्रेम करते हैं, वह प्रेम बहुत ताजा होता है। बिना लड़े प्रेम करते रहते हैं, वह बासा हो जाता है। दूरी जरूरी है पास आने की ताजगी के लिए। तब तो इसका अर्थ हुआ कि कलह की भी सार्थकता है और उसके प्रति भी दुश्मनी का भाव रखने की कोई जरूरत नहीं है। अगर यह समझ हो तो कलह भी सुखद हो गई। अगर यह समझ हो तो दूर हटना भी सारपूर्ण हो गया। और हम उसके लिए भी धन्यवाद देंगे, उसके लिए भी आभारी होंगे। | 50
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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