SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ४ 400 कुछ पाना है तो कहीं जाना होगा; हमारा गणित ऐसा है। अगर न मिले जाने से तो उसका मतलब हम गलत जगह गए, कहीं और जाना चाहिए। इस गुरु के पास गए, नहीं मिला; दूसरे गुरु के पास जाना चाहिए। दूसरे के पास न मिले तो तीसरे के पास जाना चाहिए। काशी न मिले तो मक्का खोजना चाहिए। मक्का न मिले तो जेरुसलम है। लेकिन जाना गलत है, यह खयाल में नहीं आता। जहां गए वह जगह गलत है तो दूसरी जगह चुननी चाहिए। लाओत्से कह रहा है कि तुम कुछ भी करो, अ के पास जाओ, कि ब के, कि सके, कि तुम संसार में कहीं भी जाओ, तुम उसे नहीं पा सकोगे। क्योंकि जाना गलत है। तुम जहां हो वहीं उसे पाओगे। तुम जहां हो वहीं रुक जाओगे तो उसे पाओगे। इसलिए सभी तीर्थ गलत हैं। सिर्फ एक तीर्थ सही है, वह तुम हो। सभी मंदिर और मस्जिद व्यर्थ हैं। एक ही शिवालय है, वह तुम हो। 'संत बिना इधर-उधर भागे ही जानते हैं।' असल में, संत रुक कर जानते हैं। भागना अज्ञान का लक्षण है। रुकना ज्ञान का लक्षण है। इस जगत में जो भी पाना हो वह भाग कर पाया जाता है। और जो जितनी तेजी से भागता है उतने जल्दी पाता है। लेकिन उस जगत में - इस माया के, स्वप्न के, व्यर्थ के जगत में दौड़ कर पाया जाता है—उस सत्य के, यथार्थ के जगत में रुक कर पाया जाता है। यहां के और वहां के नियम बिलकुल विपरीत हैं। यहां रुके कि खो देंगे। कोई आदमी अगर दौड़े न तो धन कैसे पाएगा? जितना दौड़े उतना ही पा सकता है। घर बैठा रहे...। इस सूत्र को समझ कर, धन कमाना हो तो घर मत बैठ जाना। घर कोई बैठा रहे आंख बंद करके तो धन नहीं आ जाएगा। धन के लिए तो दौड़ना जरूरी है। धन के लिए तो पागल होकर दौड़ना जरूरी है। धन के लिए तो अपना होश छोड़ कर दौड़ना जरूरी है। एक दिन धन आ जाएगा, आप नहीं बचेंगे। क्योंकि दौड़ में आप खो जाएंगे, नष्ट हो जाएंगे। और जितने जल्दी आप नष्ट हो जाएंगे, उतना ज्यादा धन आप इकट्ठा कर ले सकते हैं। धनी जब धन को पाता है तब पीछे लौट कर देखता है कि जो निकला था खोजने वह तो है ही नहीं, वह कभी का मर चुका। वह जितनी जल्दी मर जाए उतनी आप कठोरता से धन इकट्ठा भी कर सकते हैं। वह अगर जिंदा रहे तो बाधा डालेगा। कभी-कभी वह कहेगा, रुको, कहां दौड़ते हो, क्यों व्यर्थ परेशान होते हो ? उसकी तो गर्दन घोंट देनी जरूरी है। भीतर की आवाज तो बंद ही हो जानी चाहिए। वह कभी कहे ही नहीं, भीतर कोई इशारा न करे कि रुको। क्योंकि रुकना खतरनाक है। नहीं, धन पाना हो तो रुक कर नहीं मिलेगा। लेकिन अगर धर्म पाना हो तो रुक कर मिलेगा। उनकी यात्राएं अलग हैं; उनके नियम, उनकी व्यवस्थाएं विपरीत हैं। संसार का जो नियम है, सत्य का ठीक विपरीत नियम है। यहां दौड़ो तो मिलता है; वहां ठहरो तो मिलता है। झेन फकीर रिझाई ने कहा है, रुको! और जो भी तुम पाना चाहते हो वह तुम्हारे पास है। खोजो मत, क्योंकि तुमने खोजा कि तुम भटके। सारे ज्ञानी एक ही बात समझा रहे हैं कि तुम ठहर जाओ। शरीर भी ठहर जाए, मन भी ठहर जाए; कोई गति न रहे भीतर। इसलिए इतना जोर दिया है: इच्छा नहीं, वासना नहीं। क्योंकि इच्छा और वासना का एक ही मतलब है कि वे दौड़ाने के उपाय हैं। इच्छा का मतलब है : दौड़ो। इच्छा का मतलब है: वह रहा स्वर्ग, दस कदम आगे; दस कदम पार किए कि स्वर्ग मिल जाएगा। इच्छा कभी भी नहीं कहेगी कि यहीं है स्वर्ग जहां तुम खड़े हो । वह कहेगी, सदा कहीं और है जहां तुम नहीं हो; दौड़ो। दौड़ की जो प्रेरणा है, वही वासना है। रुकने का जो भाव है, ठहरने की जो वृत्ति है, वही निर्वासना है। तो बुद्ध निरंतर अपने भिक्षुओं से कहते हैं कि तुम पाने की बात ही छोड़ दो। क्योंकि जब तक तुम्हारे मन में पाने का कुछ भी रोग सवार है तब तक तुम रुकोगे कैसे? इसलिए बुद्ध यहां तक भी कहते हैं कि न कोई परमात्मा है।
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy