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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ 398 आज से दो हजार साल पहले पश्चिम में केवल एक ही विज्ञान था। फिर जैसे-जैसे ज्ञान का पीछा हुआ, विज्ञान टूटा, ब्रांचेज, शाखाओं में बंटा । फिर एक-एक शाखा भी टूट गई, छोटी उपशाखाओं में बंट गई। एक-एक उपशाखा भी टूट गई। आज पश्चिम में, आक्सफोर्ड में कोई तीन सौ वैज्ञानिक शास्त्रों का अध्ययन करवाया जाता है। और इन तीन सौ विज्ञानों के बीच कोई संबंध नहीं है। एक विज्ञान दूसरे विज्ञान की भाषा नहीं समझ सकता। फिजिक्स क्या बोलती है, केमिस्ट्री जानने वाले को कुछ पता नहीं । बायोलाजी क्या कह रही है, साइकोलाजी जानने वाले को कुछ पता नहीं । इन सबके बीच कोई संबंध नहीं रहा है। और हर विज्ञान एक अंधा मार्ग हो गया है । और जितनी ज्यादा जानकारी बढ़ती जाती है उतने ही कम के संबंध में ध्यान जुटता जाता है। जितने कम के संबंध में ध्यान जुटता है उतनी ही ज्यादा जानकारी बढ़ती है। और जितनी ज्यादा जानकारी बढ़ती है उतने कम के संबंध में ध्यान बढ़ता है। तो विज्ञान – प्रत्येक विज्ञान - एक - एक बिंदु पर अटक गया है। समग्र का कोई चित्र नहीं उभरता । और सभी विज्ञान क्या कह रहे हैं इसका कोई संतुलित संगीत पैदा नहीं होता। सभी विज्ञानों की क्या सिंथीसिस होगी, असंभव है। क्योंकि आज कोई भी एक मनुष्य सभी विज्ञानों को, जान ले, यह असंभव है। इसलिए सिंथीसिस कैसे हो ? कौन इन सबके बीच सूत्र को खोजे ? अब तो एक ही उपाय है पश्चिम में । वैज्ञानिक कहते हैं कि कंप्यूटर और विकसित हो जाएं तो ही उपाय है कि सभी विज्ञान क्या कह रहे हैं, इनका सार खोजा जा सके। क्योंकि कंप्यूटर को सभी विज्ञान सिखाए जा सकते हैं। कंप्यूटर बता सकेगा कि सभी विज्ञान क्या कह रहे हैं, उनका सार-निचोड़ क्या है। अन्यथा करीब-करीब विज्ञान की हालत वैसी है जैसी पश्चिम में एक कहानी है। वह कहानी आपने सुनी होगी, बैबेल के एक टावर की कहानी है। बेबीलोनिया की बड़ी पुरानी सभ्यता थी, और बेबीलोनिया की सभ्यता नष्ट हुई एक घटना से वह घटना एक मिथ है, लेकिन बड़ी मूल्यवान, कि बेबीलोनियन सभ्यता के लोगों ने यह सोचा कि हम एक मीनार बनाएं, एक टावर बनाएं, जो स्वर्ग तक जाए। तो उन्होंने बनाना शुरू किया। उनके पास जितनी ताकत थी, उन्होंने एक टावर बनाने में लगा दी। फिर धीरे-धीरे टावर स्वर्ग के करीब पहुंचने लगा। देवता चिंतित हो गए, क्योंकि वे करीब आते जा रहे थे, रोज उनका मीनार ऊंचा उठता जा रहा था । और देवताओं को लगा कि यह तो हमला हो जाएगा, और अगर ये बेबीलोनिया के सारे लोग स्वर्ग आ गए तो स्वर्ग की शांति, स्वर्ग का सुख, सब नष्ट हो जाएगा। इतनी भीड़ को प्रवेश देने के लिए वे राजी नहीं थे। और सदा से स्वर्ग में इक्के-दुक्के लोग प्रवेश करते रहे थे। ऐसा सामूहिक हमला कभी हुआ भी नहीं था । और अगर एक दफा लोगों ने सीढ़ियां बना लीं तो फिर तो कोई उपाय नहीं है, फिर अच्छे-बुरे का भेद करना भी कठिन है। फिर कौन आए, कौन न आए, यह भी मुश्किल है। फिर तो जो बुरे हैं वे पहले चढ़ जाएंगे। शायद अच्छा चढ़ भी न पाए। इसलिए बड़ी चिंता व्याप्त हो गई। सारे देवताओं ने समिति बुलाई और उन्होंने कुछ निर्णय लिया । और जिस दिन उन्होंने निर्णय लिया उसके दूसरे दिन से टावर उठना बंद हो गया। वह निर्णय बहुत मजेदार था। वह निर्णय यह था कि देवताओं ने कहा कि जब सांझ को सारे बेबीलोनिया के निवासी थक कर सो जाएं तब उनकी बेहोशी में देवता जमीन पर जाएं और हर आदमी को सिर्फ एक खयाल दे दें कि यह टावर मैं बना रहा हूं, मेरी वजह से यह टावर स्वर्ग तक पहुंच रहा है। बस इतना काफी है सबको सिखा देना। दूसरे दिन उपद्रव शुरू हो गया। टावर बनाना तो एक तरफ रहा, मार-पीट, झगड़ा - झांसा नीचे शुरू हो गया। क्योंकि हर आदमी दावा करने लगा कि मैंने बनाया ! और हकदार मैं हूं ! और अंत में मेरा नाम ही इस पर खोदना होगा !
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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