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ताओ उपनिषद भाग ४
पहली बात, जो व्यक्ति भी स्वामित्व की दौड़ में पड़ा है वह कभी इस तथ्य से परिचित न हो पाएगा कि स्वामी भीतर छिपा है, मालिक भीतर है। वह मालकियत की तलाश बाहर करेगा; वह किसी का मालिक होना चाहेगा। और बाहर कोई मालकियत हो नहीं सकती। वह वस्तुओं का स्वभाव नहीं है। आप एक मकान बना सकते हैं। आप सोचते होंगे, आप मालिक हैं। तो आप गलती में हैं।
इब्राहिम एक सूफी फकीर हो गया। वह फकीर हुआ इसलिए कि एक रात सोया था और अचानक उसने अपने ऊपर छप्पर पर किसी के चलने की आवाज सुनी। उसने पूछा, कौन है? छप्पर पर चलने वाले आदमी ने कहा कि मेरा ऊंट खो गया है, उसे मैं खोजता हूं। इब्राहिम समझा कि यह आदमी पागल होना चाहिए। मकानों के छप्परों पर कहीं ऊंट खोते हैं?
दूसरे दिन सुबह उठ कर उसने कहा कि उस आदमी को खोजो। या तो वह पागल है और या फिर ज्ञानी है। क्योंकि मकानों के छप्परों पर कौन रात को ऊंट खोजने निकलता है? और मकानों के छप्परों पर ऊंट जाएंगे कहां खोने को? तो या तो वह विक्षिप्त है, और या फिर उसने कुछ इशारा किया है जो मैं समझ नहीं पाया।
बहुत खोज की गई, लेकिन कुछ पता न चला। लेकिन भरी दोपहर, जब इब्राहिम का दरबार भरा था, तो एक . फकीर ने आकर दरवाजे पर शोरगुल मचाया। वह फकीर यह कह रहा था कि मैं इस धर्मशाला में कुछ दिन रुकना चाहता हूं। और दरबान कह रहा था कि तू पागल है! यह धर्मशाला नहीं है, यह सम्राट का महल है, उनका निवास-स्थान है। और वह आदमी कह रहा था, अगर यह सच है कि कोई आदमी इसका दावेदार है तो मैं उसको देखना चाहता हूं। अंततः उसे लाना पड़ा।
इब्राहिम सिंहासन पर बैठा था। उस आदमी ने पूछा कि मैं कहता हूं यह धर्मशाला है, लेकिन दरबान कहता है कि यह आपका निवास-स्थान है; क्या आप भी यही सोचते हैं? इब्राहिम ने कहा, इसमें सोचने का क्या सवाल है? यह मेरा मकान है, और मैं इसका मालिक हूं। और बंद करो यह बातचीत, यह कोई सराय नहीं है। पर उस फकीर ने कहा, मैं बड़ी उलझन में पड़ गया। मैं इसके पहले भी आया था, तब एक दूसरा आदमी इस सिंहासन पर बैठा था,
और उसने भी यही कहा था कि यह मेरा मकान है। वह आदमी अब कहां है? तब इब्राहिम थोड़ा डरा और उसने कहा कि वे मेरे पिता थे। लेकिन वे स्वर्गीय हो गए। उस फकीर ने कहा, मैं उनके पहले भी आया था, लेकिन तब एक तीसरा आदमी इसी मकान का मालिक था। अब तुम हो। क्या तुम पक्का भरोसा दिलवाते हो कि जब मैं चौथी बार आऊंगा, तब भी तुम यहां रहोगे इस मकान के मालिक? मैं इतने मालिक देख चुका हूं कि मुझे लगता है यह धर्मशाला है। इसमें कई लोग ठहरे और गए। और मैं सिर्फ रात भर के लिए निवास चाहता हूं।
इब्राहिम ने कहा कि पकड़ लो इस आदमी को; यही वह आदमी होना चाहिए जो रात छप्पर पर ऊंट खोजता था। क्या तुम वही आदमी हो?
उस फकीर ने कहा, मैं वही हूं। और मैं तुमसे कहता हूं कि तुम भी छप्पर पर ऊंट खोज रहे हो, लेकिन तुमको कुछ होश नहीं है। छप्पर पर ऊंट खोजने का इतना ही मतलब है कि जो चीज जहां नहीं मिलती वहां खोजना। जहां मिल नहीं सकती वहां खोजना। और हर आदमी छप्पर पर ऊंट खोज रहा है, जहां होने का कोई उपाय ही नहीं है।
कहते हैं, इब्राहिम ने यह सुन कर उस आदमी से कहा कि तू इस सराय में ठहर और अब मैं जाता हूं। क्योंकि इसको मैं महल समझता था, इसलिए रुका था। जब यह सराय ही हो गई, और जब इसे छोड़ ही देना होगा, तो अब रुकने का कोई अर्थ नहीं। अब तक मैं सोचता था, मैं मालिक हूं।
मालकियत की जो दौड़ है वह आदमी को बाहर भटकाए रखती है। और जब तक आदमी बाहर भटकता है तब तक वह छप्परों पर ऊंट खोज रहा है। मिल सकता है वह जो चाहिए हमें, वह भीतर है, और जहां हम खोजते हैं
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