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________________ स्वयं का ज्ञान ही बाब है भीतर कंपने लगेंगे। कुछ भी नहीं है जाना हुआ अपना। इतनी दरिद्रता में जी रहे हैं। लेकिन वह ज्ञान एक वहम, एक भ्रम पैदा कर देता है। उस भ्रम से ऐसा लगता है हम कुछ जानते हैं। और बड़े मजे की बात है, जैसा दूसरे हमें ज्ञान देते रहते हैं, वह उधार ज्ञान हम इकट्ठा करके हम भी दूसरों को देते रहते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यह मूढ़ता चलती ही चली जाती है। कोई बीच में रुक कर यह नहीं कहता कि मुझे कुछ पता नहीं है। इधर मैं देखता हूं। अभी एक जैन मुनि को कुछ दिनों पहले कोई मेरे पास ले आया था। दो भक्त उनके साथ थे। मुनि ने इशारा किया कि आप बाहर जाएं, मुझे साधना के संबंध में कुछ एकांत बातें करनी हैं। भक्त बाहर चले गए। मुनि ने मुझसे पूछा कि जो आप कहते हैं वही मैं भी कहता हूं, लेकिन मेरा प्रभाव क्यों नहीं पड़ता? कुछ रास्ता बताइए। मैंने उनसे कहा कि जो आप कहते हैं, वह हो सकता है, मुझसे भी बेहतर कहते हों। लेकिन जब तक आप प्रभाव डालना चाहते हैं, तब तक बात सब व्यर्थ है, तब तक उत्सुकता आपकी दूसरे में है, स्वयं में नहीं है। आखिर प्रभाव डालने की आकांक्षा क्या है? क्यों प्रभाव डालना चाहते हैं? प्रभावित क्यों करना चाहते हैं किसी को? और किसी के प्रभावित होने से क्या होगा आंतरिक लाभ? अहंकार बढ़ेगा। लेकिन वह आंतरिक लाभ नहीं है, हानि है। अकड़ बढ़ेगी। लेकिन वह अकड़ सहयोगी नहीं है, बाधा है। तो मैंने उनसे कहा, कुछ ऐसा करिए कि दूसरे बिलकुल आपसे अप्रभावित हो जाएं। दूसरे को प्रभावित करने की चेष्टा आप साधना कह रहे थे अपने भक्तों से कि मुझे साधना के संबंध में कुछ पूछना है। यह साधना है? और निश्चित ही आपको अपना कोई पता नहीं है, इसलिए आप दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं। क्यों हम दूसरे को प्रभावित करना चाहते हैं? ताकि उसकी आंखों से हमें हमारा पता चल सके कि हम कुछ हैं। जब दूसरा प्रभावित होता है और उसकी आंख में चमक आती है तो वह चमक हमें प्राण देती है। वैसे हम निष्प्राण हैं। उससे मजा आता है, रस आता है, शक्ति मिलती है। वह बड़ा अदभुत वाइटामिन है। वैसा वैज्ञानिक अभी कोई वाइटामिन नहीं खोज पाए। जो दूसरे की आंख में जो चमक आती है तो जो वाइटेलिटी, जो प्राण आपको मिलता है, वैसा अभी तक कोई वाइटामिन नहीं खोजा जा सका। दूसरे में उत्सुकता, मैंने उनसे कहा, इसी बात का सबूत है कि आपको अपना कोई भी पता नहीं है और आप दूसरों की आंखों से पता लगा कर अपना परिचय निर्मित करना चाहते हैं कि मैं कौन हूं। पंडित दूसरे को प्रभावित करके सोचता है मैं ज्ञानी हो गया। अगर मैं न जानता होता तो लोग प्रभावित कैसे होते? लोग प्रभावित हो रहे हैं; निश्चित ही मैं जानता हूं। उसके जानने का बोध भी लोगों के प्रभावित होने पर निर्भर करता है। ज्ञानी का भी प्रभाव होता है। लेकिन ज्ञानी का प्रभाव ज्ञानी की आकांक्षा नहीं है। ज्ञानी का प्रभाव ज्ञानी का सहज परिणाम है। जैसे आदमी चलता है तो धूप में छाया बनती है, ज्ञानी जब लोगों के बीच चलता है तो उसकी छाया पड़ती है। पड़ेगी ही। पर वह छाया ज्ञानी की चेष्टा नहीं है। पंडित की चेष्टा है। पंडित का सारा रस इसमें है कि दूसरे प्रभावित हो जाएं। लाओत्से कहता है, जो दूसरों को जानता है वह विद्वान है।' और पंडित भली-भांति दूसरों को जानता है। सच तो यह है कि वह दूसरों को ही जानता है। और दूसरों को जानने के कुछ फायदे हैं। क्योंकि दूसरों को मैनीपुलेट किया जा सकता है, दूसरों को चलाया जा सकता है, नचाया जा सकता है, अगर आप उन्हें जानते हैं। डेल कार्नेगी की बड़ी प्रसिद्ध किताब है-हाउ टु इनफ्लुएंस पीपुल, लोगों को कैसे प्रभावित करें। आज सारे जमीन पर ऐसी हजारों पुस्तकें लिखी जा रही हैं कि दूसरों को कैसे प्रभावित करें, दूसरों के साथ कैसे सफल हों। निश्चित ही, दूसरे के साथ सफल होना है तो दूसरे को जानना जरूरी है। और दूसरे को जानना जरा भी कठिन नहीं 27 |
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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