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ताओ उपनिषद भाग ४
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सवाल नहीं है । ज्ञानियों ने बड़ी निंदा झेली, सब तरह की निंदा झेली, लेकिन पंडित को कोई निंदा नहीं झेलनी पड़ती। कारण क्या है ?
पंडित के पास जो ज्ञान है उससे आप प्रभावित होते हैं। वह बाहर से आया है, और बाहर के लोगों को प्रभावित करता है। ज्ञानी के पास जो ज्ञान है वह बाहर से नहीं आया, वह भीतर से आया है। वह अनूठा है, नया है, अद्वितीय है। वह ताजा है, कुंआरा है। उससे आपकी कोई पहचान नहीं। तो जब ज्ञानी से आपकी मुलाकात होती है तो आप बेचैनी में पड़ जाते हैं। आप उसको ठीक से समझ नहीं पाते, या समझने की कोशिश में हमेशा गलत समझ पाते हैं। क्योंकि वह जो कह रहा है इतना नया है कि आपकी बुद्धि, आपकी जानकारी, उससे उसका कोई तालमेल नहीं बैठता। वह कुछ ऐसी बात कह रहा है जिससे आपका कभी कोई संबंध नहीं रहा ।
तो ज्ञानी अजनबी मालूम पड़ता है। पंडित आपका ही आदमी है। जैसे आप हैं वैसा ही वह है । आप में और उसमें जो फर्क है वह मात्रा का है, गुण का नहीं है। आप थोड़ा कम जानते हैं, वह थोड़ा ज्यादा जानता है; लेकिन एक कतार में खड़े हैं। वह क्यू में थोड़ा आगे है, आप थोड़े पीछे हैं। उससे कोई दुश्मनी नहीं मालूम होती, उससे गहरी मैत्री मालूम होती है। ज्ञानी से सदा दुश्मनी मालूम होती है, क्योंकि वह आपकी पंक्ति में खड़ा ही नहीं है । और वह जो भी कहता है वह खतरनाक मालूम होता है। क्योंकि वह जो भी कहता है उससे आपका जो भवन है वह गिरता है। वह जो भी कहता है उससे आपका ज्ञान अज्ञान सिद्ध होता है। वह जो भी कहता है उससे आपकी जानकारी व्यर्थ होती है। वह आपसे छीनता है। वह आपको तोड़ता है। वह आपको मिटाता है। ज्ञानी सदा विध्वंसक मालूम होता है। पंडित हमेशा निर्माणकारी मालूम होता है। क्योंकि वह सिर्फ आपको आगे बढ़ाता है। वह आप में कुछ जोड़ता है। पंडित आपको कुछ देता हुआ मालूम पड़ता है; ज्ञानी आपसे कुछ छीनता हुआ मालूम पड़ता है।
इसलिए ज्ञानी के पास केवल वे ही लोग टिक सकते हैं जो अति साहसी हैं, जो कि निपट अज्ञानी होने को तैयार हैं। लेकिन अगर आप ज्ञान की तलाश में गए हैं तो पंडित ठीक जगह है। वह आपको ज्ञान देगा। वहां से आप ज्ञान इकट्ठा कर ले सकते हैं। अगर आप ज्ञानी के पास गए हैं तो आप मुश्किल में पड़ेंगे। पहले तो वह आपसे छीन लेगा सब कुछ - जो भी आपके पास है। वह आपको सब भांति निर्धन कर देगा; वह भीतर से आपको सब भांति दरिद्र कर देगा। जीसस ने शब्द उपयोग किया है: पुअर इन स्पिरिट । वह आपकी आत्मा तक को गरीब कर देगा । लेकिन उसी गरीबी से, उसी परम दारिद्र्य से, उसी परम अज्ञान से ज्ञान का जन्म होता है।
यह बड़ा विरोधाभासी है। क्योंकि हम तो सोचते हैं ज्ञान एक संग्रह है। ज्ञान संग्रह नहीं है; जो भी संग्रह है वह विद्वत्ता है, पांडित्य है, बौद्धिक कुशलता है, होशियारी है, चालाकी है। ज्ञान का उससे कोई लेना-देना नहीं है। ज्ञान तो एक जन्म है; संग्रह नहीं। जैसे मां के पेट में बच्चा जन्मता है, वैसा ज्ञान भी एक जन्म है। बच्चे को आप संगृहीत नहीं कर सकते कि कहीं से एक टांग खरीद लाए, कहीं से एक हाथ खरीद लाए, कहीं से एक सिर इकट्ठा कर लिया; फिर सब जोड़ कर तैयार कर लिया। ऐसा अगर बच्चा आप जोड़ कर तैयार कर लें तो वह जैसा मुर्दा होगा वैसा ही पंडित का ज्ञान होता है। कहीं से वह पैर ले आया है, कहीं से हाथ ले आया है, कहीं से सिर ले आया है; उसने ठीक प्रतिमा निर्मित कर ली है। लेकिन प्रतिमा मुर्दा है, क्योंकि जीवन को जन्म देना संग्रह से नहीं होता। और जैसे मां को गुजरना पड़ता है एक पीड़ा से, ठीक वैसे ही ज्ञानी को भी गुजरना पड़ता है। ज्ञानी की तलाश एक पीड़ा है, एक आत्म- प्रसव है। इस आत्म- प्रसव का पहला चरण है यह समझ लेना कि जो भी बाहर से जाना गया है वह ज्ञान नहीं है।
यह समझ भी बड़ी मुश्किल है। क्योंकि तत्काल हमें लगता है हम दरिद्र हो गए। क्योंकि जो भी हम जानते हैं वह सब बाहर से जाना हुआ है। कभी आप सोचते हैं एकांत में कि आप जो भी जानते हैं उसमें कुछ भी आपका है? भय लगता है, ऐसी बात ही सोचने से भय लगता है। क्योंकि आप सोचेंगे तो पसीना आना शुरू हो जाएगा; हाथ-पैर