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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ फिर मां चल बसी। पिता भी चल बसे। तो मरघट से लौटते वक्त महावीर ने अपने बड़े भाई को कहा कि अब मैं संन्यास ले लूं? बड़े भाई ने कहा कि तू पागल है! घर में इतनी बड़ी विपत्ति आ गई है कि माता-पिता चल बसे, हम अनाथ हो गए; तू यह बात ही मत उठाना। मेरे ऊपर और आघात मत कर। महावीर फिर चुप हो गए। यह भी हो सकता था कि महावीर कभी संन्यास न लेते, क्योंकि इस तरह जो चुप हो जाए! लेकिन दो वर्ष बाद घर के लोगों को लगा कि हम व्यर्थ ही रोक रहे हैं। महावीर घर में हैं और नहीं हैं। उठते हैं, बैठते हैं, चलते हैं, लेकिन जैसे हवा का झोंका आए और चला जाए और किसी को पता भी न चले। न किसी का विरोध करते हैं; न किसी बात में सलाह देते हैं; न कहीं बीच में अरुंगा डालते हैं। जैसे घर में उनका होना न होने के बराबर है, अनुपस्थित। तो घर के लोगों ने महावीर से प्रार्थना की कि जब ऐसे घर में रहना हो कि तुम जैसे यहां हो ही नहीं तो फिर हम अकारण तुम्हें संन्यास से रोकने का पाप अपने ऊपर न लेंगे। तुम जाओ! महावीर उसी दिन घर से चले गए। किसी राज्य को छोड़ने जैसी कोई घटना नहीं मालूम होती। राज्य राज्य है, ऐसा भी कोई सवाल नहीं है। वहां कुछ मूल्यवान है, ऐसा भी कोई सवाल नहीं है। महावीर के लिए वह सारा साम्राज्य, वह सारी सुख-सुविधा, वह सारा धन-वैभव स्वल्प रहा होगा। उसे ' छोड़ना ऐसे ही था जैसे कि कोई कौड़ी छोड़ कर और चला जाए। उसे पीछे लौट कर देखने योग्य भी नहीं था। हमें लगता है कि बड़ा राज्य छोड़ा, क्योंकि हम हिसाब रखने वाले लोग हैं। हम अपने से तौलते हैं। जिन्होंने भी छोड़ा है उनके पास इतना ज्यादा था कि वह स्वल्प हो गया। और जब ज्यादा स्वल्प हो जाए तो त्याग फलित होता है। जब ज्यादा को दिखाने का भाव न रह जाए, जब ज्यादा ज्यादा है ऐसी प्रतीति भी न रह जाए। उपनिषद कहते हैं कि जो कहता हो कि मैं जानता हूं परमात्मा को, समझ लेना कि वह नहीं जानता। क्योंकि जो जान लेगा वह अपने इस जानने की घोषणा भी नहीं करेगा। इसकी घोषणा का कोई मूल्य नहीं है। यह घोषणा व्यर्थ है। घोषणा में कहीं पीछे दर्द है।। 'सर्वाधिक प्रचुरता स्वल्प की भांति है, और इसकी उपयोगिता कभी समाप्त नहीं होगी। जो सर्वाधिक सीधा है, वह टेढ़ा-मेढ़ा दिखाई देता है। सर्वश्रेष्ठ कौशल अनाड़ीपन जैसा मालूम होता है। सर्वश्रेष्ठ वाग्मिता तुतलाहट जैसी लगती है।' एक-एक बिंदु समझने जैसा है। 'जो सर्वाधिक सीधा है, वह टेढ़ा-मेढ़ा दिखाई देता है।' ऐसा क्यों होता है? सीधापन टेढ़ा-मेढ़ा दिखाई ही देगा, क्योंकि हम सब टेढ़े-मेढ़े हैं। हम सब टेढ़े-मेढ़े हैं और हम नार्मल हैं। अंग्रेजी का शब्द नार्मल अच्छा है, नार्म। हम मापदंड हैं, हम औसत हैं। हमारे बीच अगर कोई भी सीधा आदमी होगा तो टेढ़ा-मेढ़ा दिखाई पड़ेगा। ऐसा ही समझें कि जहां सभी लोग शीर्षासन कर रहे हों वहां कोई एक आदमी पैर के बल खड़ा हो जाए, वे सब कहेंगे यह आदमी उलटा है। और उनके कहने में गलती भी नहीं है। उन्होंने अपने को सीधा माना हुआ है, उससे यह उलटा है। हम सब अपने को सीधा मान रहे हैं। हम बिलकुल तिरछे हैं, हमारा इंच-इंच तिरछा है। आपने शायद सुनी हो कहानी अष्टावक्र की। जनक ने एक उदघोषणा की। वह ज्ञान की तलाश में था और जानना चाहता था सत्य क्या है। तो उसने सारे देश के बड़े पंडितों को निमंत्रण भेजा कि वे आएं; विवाद करें और निर्णय करें। वह कोई निष्पत्ति चाहता है। और बड़ा पुरस्कार था। हजार गौओं के सींगों को उसने स्वर्णमंडित करवा कर दरवाजे पर खड़ा कर रखा था। अष्टावक्र को कोई निमंत्रण भी नहीं मिला, क्योंकि वह दीन-हीन आदमी था। और नाम अष्टावक्र था, क्योंकि शरीर उसका आठ जगह से टेढ़ा-मेढ़ा था। लेकिन सुन कर कि इतना बड़ा विवाद हो 356
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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