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________________ वह पूर्ण है और विकासमान भी रहा है और कोई बड़ी सत्य की खोज हो रही है, वह भी चला आया। जैसे ही वह सभा में आया तो जो पंडित थे वे देख कर उसे हंसने लगे। वह आठ जगह से टेढ़ा-मेढ़ा था। खुद जनक को भी हंसी आ गई होगी। और सारे पंडित जोर से हंसने लगे। तो अष्टावक्र भी, कहते हैं, जोर से हंसा। वह इतने जोर से हंसा कि लोग सहम गए। और जनक ने पूछा कि तुम क्यों हंसते हो? तो उसने कहा कि मैं तो सोचता था कि पंडितों की सभा है; यहां चमार इकट्ठे हुए हैं, जिन्हें शरीर दिखाई पड़ता है। ये सत्य की कैसे खोज करेंगे? और ये सब टेढ़े-मेढ़े हैं हजार तरह से, मेरा सिर्फ शरीर ही टेढ़ा-मेढ़ा है। पर इनको इतना ही दिखाई पड़ता है। वह जो भीतर की सरलता है, उसका इन्हें कोई भी पता नहीं। लाओत्से कहता है, 'जो सर्वाधिक सीधा है, वह टेढ़ा-मेढ़ा दिखाई देता है।' क्योंकि हम सीधे हैं नहीं, पर हम सीधे मालूम पड़ते हैं। हमने ढोंग कर रखा है कि हम सीधे हैं। हमारी हर चाल तिरछी है। हम जो भी करते हैं, वह तिरछा है। हम कहते कुछ हैं, सोचते कुछ हैं, करते कुछ हैं; वह हमारा तिरछापन है। आपने कभी खयाल किया कि आप में कितनी पर्ते हैं। आप जो कह रहे हैं वह आप सोचते नहीं हैं; जो आप सोच रहे हैं वह आप कह नहीं रहे हैं। और जो आप करेंगे वह तो तीसरी ही बात होने वाली है। लेकिन आपको यह साफ नहीं दिखाई पड़ता कि यह सब क्या है। भीतर इतने खंड हैं! इतना धोखा है! और जब भी आप कुछ करने जाते हैं तो आप कभी सीधा नहीं जाते। आप बड़े गोल चक्कर लेते हैं। अगर उत्तर जाना है तो आप दक्षिण जाने से शुरू करते हैं। लेकिन आस-पास भी सब तिरछे लोग हैं, और उनके साथ शायद ऐसे ही जीना संभव है। कभी कोई सीधा-सरल आदमी हो तो वह भी अड़चन में पड़ता है और आपको भी अड़चन में डालता है। छोटे बच्चे इसीलिए हमारे साथ दिक्कत में पड़ जाते हैं। बाप बच्चों को समझाता है कि झूठ नहीं बोलना। और घर कोई आया है बाहर, और वह अपने बेटे से कहता है : जाकर कह दो कि पिता घर पर नहीं हैं। यह बच्चे की समझ के बाहर है। यह उसकी बिलकुल समझ के बाहर है कि यह क्या हो रहा है। बाप बेटे से कहता है कि नाराज होना बुरा है। और बाप बेटे पर इसी बात पर नाराज हो सकता है कि तुम क्यों नाराज हुए। मैं एक घर में मेहमान था। बाप बेटे को पीट रहा था; और उससे कह रहा था, मैंने हजार दफे कहा कि छोटे भाई को मत मारा कर अपने से छोटे को मारना बहुत बुरा है। और वह पीट रहा है अपने बेटे को। और अगर छोटे भाई को मारना बुरा है तो यह बाप से यह बेटा और भी छोटा है, बहुत छोटा है, अनुपात में और ज्यादा छोटा है। लेकिन हमें खयाल नहीं है। और हमारे भीतर जो सबसे ज्यादा आड़े-तिरछे होते हैं वे सबसे ज्यादा सफल हो जाते हैं। चाहे धन की दौड़ हो, चाहे राज्य की दौड़ हो, हमारे भीतर जो सबसे ज्यादा तिरछे लोग हैं वे सबसे ज्यादा सफल हो जाते हैं। मैं बहुत से राजनीतिज्ञों को जानता हूं; उनकी सफलता का राज सिवाय बेईमानी, धोखाधड़ी के और कुछ भी नहीं है। जितना भी कपट हो सकता है और जितना लोगों को पीछे से उनकी गर्दन काटी जा सकती है और छुरे मारे जा सकते हैं, वे सब करते हैं। लेकिन एक बार जब वे पद पर पहुंच जाते हैं तो वे उपदेश देने लगते हैं पूरे मुल्क को-ईमानदारी का, सचाई का, सच्चरित्रता का। और वे रोने लगते हैं पदों पर बैठ कर कि देश का चरित्र-हास हो रहा है। और चरित्र का ह्रास न हो तो वे पद पर हो नहीं सकते थे। वे चरित्र के ह्रास की वजह से ही पद पर हैं। अगर देश चरित्रवान हो तो उनको कौन? एक वोट देने वाला उनको कोई नहीं मिल सकता। देश भी मजे से सुनता है। और सब उन्हें जानते हैं; वे सबको जानते हैं। लेकिन एक समझौता मालूम पड़ता है, एक कांसपिरेसी है, एक चुप्पी का वातावरण है कि अगर तुम ताकत में हो तो तुम जो भी कहो वह ठीक है। जैसे ही वे पद से नीचे होंगे कि चर्चाएं शुरू हो जाएंगी, उन्होंने क्या-क्या धोखाधड़ी, क्या-क्या गोलमाल किया। जब तक वे पद पर हैं तब तक वे बिलकुल सच्चरित्र हैं, साधु हैं। सत्ता में होना साधुता है। सत्ता के बाहर आप असाधु हो जाते हैं। 357]
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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