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________________ ताओ सब से परे हैं। 303 कारण नहीं, लेकिन एक पुरानी परंपरा के कारण। पर परंपरा बुद्धिमानों से जन्मी है। क्योंकि जिन्होंने यह कहा कि अपने को दूज के चांद की तरह समझो उन्होंने बड़ी कीमत की बात कही। उन्होंने यह कहा, ताकि तुम सदा फैल सको, सदा बढ़ सको; गुंजाइश हो, स्पेस हो, जगह हो; सिकुड़ न जाओ। इसलिए विनम्र आदमी बढ़ सकता है; अहंकारी नहीं बढ़ सकता। वहां जगह नहीं है बढ़ने की। वह जो भी हो सकता था, जो होने की संभावना थी, वह मानता है वह है ही। जो अपने को अज्ञानी मानता है वह कभी ज्ञानी हो सकता है, लेकिन जो ज्ञानी अपने को इसी क्षण मान रहा है उसके सारे द्वार बंद हो गए। जो अपने को शून्य मानता है वह पूर्ण हो सकता है। सब द्वार खुले हैं। कहीं से भी जीवन को रोकने का कोई उसने इंतजाम नहीं किया है। जीवन सब तरफ से आए, तो उसका निमंत्रण है। 'क्योंकि चीजें कभी घटाई जाने से लाभ को प्राप्त होती हैं, और बढ़ाई जाने से हानि को। दूसरों ने इसी सूत्र शिक्षा दी है, मैं भी वही सिखाऊंगा: हिंसक मनुष्य की मृत्यु हिंसक होती है। इसे ही मैं अपना आध्यात्मिक गुरु मानूंगा।' लाओत्से के सभी वचन बहुत सूक्ष्म हैं; नाजुक भी। और उसके इशारे न समझे जाएं तो भूल-चूक हो सकती है | लाओत्से कहता है, वही आदमी अहिंसक है जो अपने को अकेला, अनाथ और अयोग्य मानता है। यह बड़ी अनूठी बात है; क्योंकि अहिंसक से हम सीधा इसका कोई संबंध न जोड़ेंगे। लेकिन गहरा संबंध है। जो आदमी अपने को योग्य मानता है वह हिंसक होगा। इस घोषणा में ही कि मैं योग्य हूं, उसने हिंसा शुरू कर दी। इस घोषणा के साथ ही वह दूसरे को अयोग्य सिद्ध करने में लग जाएगा। संघर्ष शुरू हो गया। जिस आदमी ने कहा कि मैं अनाथ नहीं हूं, मैं नाथ हूं, स्वामी हूं, मालिक हूं, उसने हिंसा शुरू कर दी। इसे वह सिद्ध करेगा । मालिक होकर ही सिद्ध किया जा सकता है। दूसरे का मालिक होना ही हिंसा है, क्योंकि दूसरे को मिटाए बिना कोई भी मालिक नहीं हो सकता। स्वामी बनने की चेष्टा विध्वंसक है; दूसरे को नष्ट करना ही पड़ेगा, तोड़ना ही पड़ेगा; अंग-भंग करने पड़ेंगे। दूसरे की स्वतंत्रता छीन लेनी पड़ेगी। और दूसरे के व्यक्तित्व को नष्ट करके एक वस्तु बना देना होगा। तभी कोई स्वामी हो सकता है। हम सभी इसी कोशिश में लगे होते हैं कि हमारा स्वामित्व का दायरा बड़ा हो जाए। उसका मतलब, हमारी हिंसा का दायरा बड़ा हो जाए। हम ज्यादा लोगों को काट-पीट सकें, ज्यादा लोग हमारी मुट्ठी में हों कि जब भी हम हाथ दबाएं, उनको हम खत्म कर सकें। मुल्ला नसरुद्दीन को उसके सम्राट ने बुलाया था। खबर पहुंची सम्राट तक कि वह बहुत बुद्धिमान है, नसरुद्दीन बुद्धिमान है। सम्राट ने कहा कि बुलाओ; तलवार सब बुद्धिमानियों को नष्ट कर सकती है। वह तलवार का भरोसा ही था उसे । वह नंगी तलवार लेकर बैठा । नसरुद्दीन लाया गया। उस सम्राट ने नसरुद्दीन से कहा कि तुम एक वक्तव्य दे सकते हो, एक वचन, एक वाक्य बोल सकते हो। और सुना है मैंने कि तुम बुद्धिमान हो। तो एक वचन बोलो ! अगर वचन सत्य हुआ तो तुम्हें तलवार से काटा जाएगा, और अगर वचन झूठ हुआ तो तुम्हें सूली पर लटकाया जाएगा। और एक वचन बोलने की तुम्हें आज्ञा है। और सुना है मैंने कि तुम बुद्धिमान हो । सूली उसने तैयार करवा रखी थी; नंगी तलवार लिए आदमी सामने खड़ा था। नसरुद्दीन ने जो वचन कहा वह बहुत अदभुत है। नसरुद्दीन ने कहा, आई एम गोइंग टु बी हैंग्ड; मुझे सूली होने वाली है। सम्राट को मुसीबत में डाल दिया। क्योंकि उसने कहा था, अगर तू सच बोले तो तुझे तलवार से काटा जाएगा; अगर तू झूठ बोले तो तुझे सूली लगाई जाएगी। अब वह कहता है, मुझे सूली लगाई जाने वाली है। अगर उसको तलवार से काटा जाए तो वह सच बोला था, और अगर उसे सूली लगाई जाए तो सूली तभी लगाई जा सकती
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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