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ताओ उपविषद भाग ४
है जब वह.झूठ बोला हो। सम्राट ने कहा कि तुमने मुझे मुसीबत में डाल दिया। और मैं तो सिर्फ एक ही बात जानता हूं; हिंसा और तलवार के सिवाय मैं कुछ नहीं जानता। लेकिन तुम चालाक हो, तुम निश्चित बुद्धिमान हो।
हमारी बुद्धिमानी भी सिर्फ दूसरों की हिंसा से बचने में लगती है। दो ही तरह के लोग हैं। एक वे, जिनकी सारी शक्ति हिंसा करने में लग रही है और दूसरे, जिनकी बुद्धिमानी अपने को बचाने में लग रही है। बाकी सारा खेल हिंसा का है। या तो हम हिंसा करने वालों में लगे हुए हैं, साथ हैं, और या फिर हिंसा से बचने की कोशिश में लगे हुए हैं। मगर सारा जीवन या तो हम स्वामी बनना चाहते हैं, या कोई हमें गुलाम न बना ले, इसकी फिक्र में हैं। पर दोनों हालत में हमारा संदर्भ सदा हिंसा है।
लाओत्से कहता है, जो अपने को अनाथ, अयोग्य और अकेला मान लेता है वह हिंसा से मुक्त हो जाता है। ऐसा व्यक्ति न तो दूसरे की मालकियत बनने की फिक्र में लगता है और न अपने को बचाने की फिक्र में लगता है। क्योंकि वह जानता है, बचने का कोई उपाय ही नहीं। मौत आएगी ही। न वह किसी को मारने जाता है, क्योंकि मौत सभी को मार डालेगी, उसके काम को बीच में करने की कोई जरूरत नहीं है; और न वह अपने को बचाने की बहुत चिंता में लगता है, क्योंकि मौत यह काम भी कर देगी। अहिंसा का जन्म तभी होता है जीवन में जब न तो हम किसी को गुलाम बनाना चाहते हैं और न हम किसी के गुलाम बनना चाहते हैं, न गुलाम बनने से बचना चाहते हैं। हम हिंसा की भाषा में सोचते ही नहीं। और जो व्यक्ति भी अनाथ, अयोग्य और अकेला मानने को राजी हो जाए वह एक सूक्ष्म द्वार से जैसे हिंसा के जगत के बाहर हो जाता है।
इसका यह मतलब नहीं कि हम उसे नहीं मार डाल सकते; हम उसे मार डाल सकते हैं। लेकिन फिर भी हम उसे छू नहीं सकते। हम उसकी गर्दन काट सकते हैं, लेकिन फिर भी हम उसे नहीं काट सकते। गर्दन कटते क्षण में भी उसे हम चोट नहीं पहुंचा सकते, क्योंकि उसने इसे स्वीकार ही कर लिया था कि यह जीवन का अनिवार्य अंग है मृत्यु। वह कैसे घटती है यह गौण है। घटना उसका अनिवार्य है। वह सुनिश्चित है।
'दूसरों ने भी इसी सूत्र की शिक्षा दी है, मैं भी वही सिखाऊंगाः हिंसक मनुष्य की मृत्यु हिंसक होती है।'
इस सूत्र में बहुत सी बातें हैं। जो दूसरों का मालिक बनना चाहता है वह आखिर में पाता है कि दूसरे उसके मालिक बन गए। जो किसी को गुलाम बनाता है, वह उसका गुलाम बन जाता है। जो हम दूसरों के साथ करते हैं, उसका ही प्रतिफल हम पर लौट आता है।
___ यही होगा भी। जीवन का सीधा नियम है। हम जो जीवन की तरफ फेंकते हैं वही जीवन हमें लौटा देता है। जो भी हमें मिलता है वह हमारा ही दिया हुआ है जो जीवन के हाथों वापस आया, चाहे समय कितना ही लगा हो और हम भूल भी गए हों कि हमने ही दिया था। जब कोई गाली आपके पास आती है तो शायद आपको याद भी न हो, क्योंकि हो सकता है बड़ा समय बीत गया हो, जन्म-जन्म बीत गए हों। लेकिन जो दिया है वही वापस लौट आता है। हम हिंसा करते हैं, हिंसा हमारे ऊपर चारों तरफ से बरस जाती है।
'हिंसक मनुष्य की मृत्यु हिंसक होती है।'
जो हम बोते हैं उससे अन्यथा काटने का उपाय नहीं है। और अगर हम हिंसा काट रहे हों, हमारे ऊपर हिंसा बरस रही हो, तो उसका अर्थ है कि उसे भी हम चुपचाप स्वीकार कर लें कि वह हमारा पिछला हिसाब है जो साफ हुआ जा रहा है। लेकिन प्रतिकार न करें। प्रतिकार फिर नए बीज बो देता है, और श्रृंखला का कोई अंत नहीं आता।
'इसे ही मैं अपना आध्यात्मिक गुरु मानूंगा।'
लाओत्से कह रहा है, यह सूत्र मार्ग-निर्देशक है। तुम न किसी के मालिक बनना, न तुम किसी से अपने को योग्य सिद्ध करना, न तुम अपने को इस भुलावे में डालना कि दूसरे का संग-साथ हो सकता है। तब तुम अचानक
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