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________________ ताओ उपनिषद भाग ४ तरफ एक बागुड़ लगाते हैं कि उसके भीतर हम सुरक्षित मालूम पड़ें और लगे कि हम कोई असहाय नहीं हैं, कोई अनाथ नहीं हैं। लेकिन आदमी असहाय है। मौत आएगी और हम किसी भांति उसे रोक न पाएंगे। विलियम जेम्स एक पागलखाने को देखने गया। खुद बहुत बड़ा मनसविद। लौट कर बहुत चिंतित हो गया। और फिर कहते हैं, जीवन भर वह चिंता उसे छूटी नहीं। और चिंता इस बात की कि पागलखाने में उसने लोगों को देखा और उसे यह खयाल आया एक मित्र को देख कर, क्योंकि कल तक वह ठीक था, और कोई सोच भी नहीं सकता था कि वह पागल हो जाएगा, कल्पना भी नहीं हो सकती थी कि वह पागल हो जाएगा; बिलकुल ठीक था, और पागल हो गया, तो विलियम जेम्स को एक खयाल पकड़ गया कि अगर मैं भी कल पागल हो जाऊं तो उपाय क्या है? मैं क्या कर सकंगा? और पक्का क्या है कि मैं कल नहीं हो जाऊंगा? क्योंकि कल यह मेरा मित्र भी ठीक था और कभी सोच भी नहीं सकता था कि पागल हो जाएगा। मैं भी कल पागल हो जा सकता हूं। मेरी सामर्थ्य क्या है? और उपाय क्या है करने का कि मैं न हो जाऊं? जो भी किसी मनुष्य को कभी घटा है वह आपको भी घट सकता है। किसी भी मनुष्य को जो भी घटा है! रास्ते पर कोई भीख मांग रहा है तो आप यह मत सोचें, कि वह उसको घटा है, आपको नहीं घट सकता। कल आप भीख मांग सकते हैं। आज सोच भी नहीं सकते। आज सोचने का कोई कारण भी नहीं है। सोचें तो भी खयाल में नहीं आएगा, क्योंकि सारी सुविधा है, सब सुरक्षा है। कोई वजह नहीं है व्यर्थ की बातें सोचने की। लेकिन यह घट सकता है। सम्राटों ने भीख मांगी है। शक्तिशाली लोग दीन-दरिद्र हो गए हैं। रूस में लेनिन के पहले, सत्ता में आने के पहले, करेंसकी प्रधान मंत्री था। बड़ा ही शक्तिशाली आदमी था। फिर क्रांति हुई, कम्युनिस्ट क्रांति में करेंसकी खो गया। फिर लोग उसको भूल ही गए कि करेंसकी की कभी कोई ताकत थी। उन्नीस सौ साठ में पता चला कि अमरीका में वह किराने का काम करता है; एक दुकानदार है छोटा सा और किराने का काम, बेचने का काम करता है। उन्नीस सौ साठ में, उन्नीस सौ सत्रह से खोया हुआ आदमी! कोई सोच भी नहीं सकता कि लेनिन दुकान पर बैठ कर कहीं किराना बेच रहा होगा। करेंसकी एक दिन लेनिन से बड़ी ताकत का आदमी था। जब लेनिन कुछ भी नहीं था तब करेंसकी प्रधान मंत्री था। लेकिन यह हो जाता है। जो किसी भी मनुष्य को घटा है वह आपको भी घट सकता है कोई दुख, कोई पीड़ा, कोई आघात, पागलपन, मृत्यु, दीनता, दरिद्रता-कुछ भी, मनुष्यता को जो भी हो सकता है वह प्रत्येक मनुष्य को हो सकता है। असहाय हम बिलकुल हैं। और जब हो तो हम कुछ भी नहीं कर सकते। हमारी नाव किसी भी क्षण डूब सकती है। क्योंकि नावें रोज डूबती हैं। और एक न एक दिन तो सभी नाव को डूबना ही पड़ता है। अगर किसी तरह हम बचा भी लिए तो बचा कर पहुंचेंगे कहां? कितने ही बच कर जाएं, आखिर में मौत में पहुंच जाते हैं। सब बचाव मौत में ले जाता है। असहाय होना हमारा जीवन का अनिवार्य तत्व है। लाओत्से कहता है, 'अनाथ, अयोग्य और अकेला होने से मनुष्य सर्वाधिक घृणा करता है।' और यह तथ्य है। और जो तथ्य से घृणा करता है वह सत्य को कभी भी नहीं जान सकेगा। 'तो भी राजा और भूमिपति अपने को इन्हीं नामों से पुकारते हैं।' लेकिन चीन के सम्राट अपने को इन्हीं नामों से पुकारते रहे हैं-अनाथ, अयोग्य, अकेला। किसी कारण से। इसलिए नहीं कि वे बहुत बुद्धिमान थे; बल्कि किसी कारण से। क्योंकि चीनी ज्योतिष ऐसा मानता है कि हमेशा अपने को उस जगह मानो जहां से प्रगति की संभावना हो। कभी भी पूर्णिमा का चांद अपने को मत मानो, क्योंकि उसके बाद सिवाय पतन के और कुछ भी नहीं होता। सदा दूज के चांद अपने को मानो। तो बढ़ सकते हो। इसलिए चीन के सम्राट अपने को सदा अनाथ, अयोग्य और अकेला मानते रहे हैं, ताकि बढ़ती की संभावना रहे। किसी बुद्धिमत्ता के 302
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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